उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता

व्यापार समझौता Meaning in English
पुराण बाली पैकेज एक व्यापार समझौता है जिसकी प्रावधिक सहमति विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्यों में बाली, इंडोनेशिया में ३-६ दिसम्बर २०१३ को चले नौवें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में लेकिन यह सम्मेलन एक अतिरिक्त दिन के लिए चलते हुए ७ दिसम्बर २०१३ को समाप्त हुआ।
"" इसके साथ ही यह कई प्रमुख अन्तरराष्ट्रीय और अन्तर-सरकारी संस्थाओं या समूहों का हिस्सा हैं जिनमे संयुक्त राष्ट्र, उत्तर अटलाण्टिक सन्धि सङ्गठन, जी-8, प्रमुख 10 देशों के समूह, जी-20, उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता, एशिया-प्रशान्त महासागरीय आर्थिक सहयोग प्रमुख हैं।
1964 आटोमोटिव उत्पाद व्यापार समझौता या 'ऑटो संधि' कनाडाई मोटर वाहन उद्योग को उसकी वर्तमान स्थिति तक पहुंचाने वाला एक महत्वपूर्ण घटक रहा है: एक मजबूत, सफल उद्योग, जिसका कनाडा की अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव है।
इसके साथ ही यह कई प्रमुख अन्तरराष्ट्रीय और अन्तर-सरकारी संस्थाओं या समूहों का हिस्सा हैं जिनमे संयुक्त राष्ट्र, उत्तर अटलाण्टिक सन्धि सङ्गठन, जी-8, प्रमुख 10 देशों के समूह, जी-20, उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता, एशिया-प्रशान्त महासागरीय आर्थिक सहयोग प्रमुख हैं।
About bharat क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी आसियान के दस सदस्य राज्यों अर्थात् ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम के बीच एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौता है।
जिसे लोग विश्व व्यापार समझौता कहते हैं, वास्तव में यह एक तरह का इतिहास का दोहराव था।
7 जून 2015 को भारत और बांग्लादेश के बीच मुक्त व्यापार समझौता भी हुआ।
उत्तर अमेरिका मुक्त व्यापार समझौता (नाफ़्टा) कनाडा, मेक्सिको और अमेरिका के बीच हुआ एक समझौता है जिसका उद्देश्य सदस्यों के बीच सामानों (माल) प्रशुल्क समाप्त करना है।
परंपरा उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता (अंग्रेज़ी: North American Free Trade Agreement या NAFTA; स्पेनी: Tratado de Libre Comercio de América del Norte या TLCAN; फ़्रान्सीसी: Accord de libre-échange nord-américain या ALÉNA) (नाफ़्टा) मेक्सिको, कनाडा और अमेरिका के बीच हुआ एक व्यापार समझौता है।
""मध्य अमेरिका मुक्त व्यापार समझौता (काफ़्टा), संयुक्त राज्य अमेरिका और मध्य अमेरिकी देशों कोस्टा रिका, गुआटेमाला, एल सल्वाडोर और निकारागुआ के बीच हुआ एक समझौता है।
व्यापार-समझौता इसके अंग्रेजी अर्थ का उदाहरण
She joined with Democratic legislator Eric Croft in complaining that Gregg Renkes, then the attorney general of Alaska, had a financial conflict of interest in negotiating a coal exporting trade agreement.
The two countries signed a five-year trade agreement in January 1966 and a civil aviation agreement as well.
PMI was unable to do this itself as the Australia–United States free-trade agreement signed in 2004 did not have any investor-state dispute settlement clauses included—by design.
Orderly marketing arrangements are included under voluntary restraint agreements; however voluntary restraint agreements may also pertain to trade agreements made between industries and governments.
Regardless, उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता his demands for a trade agreement remained unsuccessful.
Von der Leyen supported the proposed European Union–Mercosur free trade agreement, which would form one of the world's largest free trade areas.
In September 1999, New उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता Zealand and Singapore announced intentions to negotiate a trade agreement.
Nazi Germany and Britain had no common land border, but a state of war existed between them; the Germans had an extensive land border with the Soviet Union, but the latter remained neutral, adhering to a non-aggression pact and by numerous trade agreements.
He called for the federal government to scrap the national Goods and Services Tax (GST) and to renegotiate the country's free trade agreement with the United States of America (Hamilton Spectator, 8 June 1996).
Since then, it lies at the forefront of both Australia’s bilateral and multilateral trade agreements and is also tasked with organising policies on imports.
This appointment was made before globalisation took the international stage and propelled nations to take part in bilateral and multilateral trade agreements.
This often involves helping remove external barriers that prohibit international expansion and initiating long term trade agreements or exchange programs.
This has allowed for the Australian economy to engage in international trade through programs such as the Export Market Development Grants scheme, aimed at developing support for exporters by organising free trade agreements.
भारत और यूएई के बीच मुक्त व्यापार समझौता हुआ प्रभावी, घरेलू निर्यातकों को UAE के बाजार में मिलेगी शुल्क-मुक्त पहुंच
भारत और यूएई के बीच मुक्त व्यापार समझौता प्रभावी हो गया है. घरेलू निर्यातकों को UAE के बाजार में शुल्क-मुक्त पहुंच मिलने लगेगी. भारत से यूएई को होने वाले 99 फीसदी निर्यात पर सीमा-शुल्क शून्य होगा.
Published: May 2, 2022 9:15 AM IST
भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के बीच मुक्त व्यापार समझौता रविवार से प्रभाव में आ गया. इस समझौते में कपड़ा, कृषि, सूखे मेवे, रत्न और आभूषण जैसे क्षेत्रों के उत्पादों के घरेलू निर्यातकों को यूएई के बाजार में शुल्क-मुक्त पहुंच मिलेगी.
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इस समझौते को अमल में लाने की सांकेतिक शुरुआत करते हुए वाणिज्य सचिव बी वी आर सुब्रमण्यम ने रत्न एवं आभूषण क्षेत्र के तीन निर्यातकों को मूल स्थान प्रमाण-पत्र सौंपे. व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) के तहत दुबई भेजी जाने वाली इन खेप पर सीमा शुल्क नहीं लगेगा.
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) और विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) ने एक मई से समझौते के अमल में आने की अधिसूचनाएं जारी कीं.
सुब्रमण्यम ने कहा, ‘‘भारत और यूएई के बीच सीईपीए आज प्रभाव में आ गया. आज हम भारत से पहली खेप यूएई भेज रहे हैं, जिसमें इस समझौते का लाभ मिलेगा.’’
उन्होंने कहा कि भारत के लिए यूएई बड़ा कारोबारी साझेदार है और यह देश पश्चिम एशिया, नॉर्थ अमेरिका, मध्य एशिया और उप-सहारा अफ्रीका के लिए प्रवेश मार्ग भी है.
सीईपीए का उद्देश्य अगले पांच वर्षों में भारत और यूएई के बीच मौजूदा 60 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाकर 100 अरब डॉलर तक पहुंचाना है.
वाणिज्य सचिव ने कहा, ‘‘100 अरब डॉलर तो महज शुरुआत है, आगे जाकर यह 200 अरब डॉलर होगा और फिर आने वाले वर्षो में 500 अरब डॉलर तक जाएगा.’’ उन्होंने कहा कि भारत से यूएई को होने वाले 99 फीसदी निर्यात पर सीमा-शुल्क शून्य होगा.
(With IANS Inputs)
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अर्थात्ः व्यापार कूटनीति का शून्य
मुक्त व्यापार समझौते या एफटीए दुनिया में व्यापार और निवेश बढ़ाने का सबसे प्रमुख जरिया बनकर उभरे हैं. इस होड़ में भारत काफी पीछे है.
अंशुमान तिवारी
- नई दिल्ली,
- 01 अप्रैल 2016,
- (अपडेटेड 04 अप्रैल 2016, 12:56 PM IST)
विदेश नीति की सफलता को मापने का क्या कोई ठोस तरीका हो सकता है, ठीक उसी उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता तरह जैसे कि आर्थिक विकास दर को देखकर आर्थिक नीतियों की कामयाबी या नाकामी मापी जाती है? कूटनीतिक संवादों में अमूर्त रणनीतियों का एक बड़ा हिस्सा होता है लेकिन इतनी अमूर्तता तो आर्थिक नीतियों में भी होती है. फिर भी आर्थिक विकास दर से आर्थिक नीतियों के असर का संकेत तो मिल ही जाता है.
यदि विदेश नीति के सैद्धांतिक पहलू को निकाल दिया जाए तो विदेश व्यापार यानी निर्यात-आयात प्रदर्शन से किसी सरकार की विदेश नीति की सफलता को नापा जा सकता है, क्योंकि द्विपक्षीय व्यापार और पूंजी की आवाजाही किसी देश के ग्लोबल कूटनीतिक रिश्तों की बुनियाद है. विदेश नीति की सफलता को ठोस ढंग से नापने का फॉर्मूला शायद यह हो सकता है कि किसी सरकार के मातहत विभिन्न देशों के साथ हुए वरीयक (प्रिफ्रेंशियल) व्यापार समझौतों को देखा जाए, क्योंकि जितने अधिक समझौते, उतना अधिक विदेश व्यापार.
यह फॉर्मूला हमने नहीं, 2015-16 की आर्थिक समीक्षा ने दिया है जो विदेश नीति की सफलता को परखने का एक नया पैमाना सुझाती है. अब जबकि मोदी सरकार के भव्य कूटनीतिक अभियानों की गर्द बैठ चुकी है और भारत का निर्यात अपनी सबसे लंबी मंदी से जूझ रहा है, तब आर्थिक समीक्षा के इस फॉर्मूले की कसौटी पर मोदी सरकार की विदेश नीति सवालों में घिरती नजर आती है.
दरअसल, बीते बरस जब प्रधानमंत्री न्यूयॉर्क, सिडनी या वेम्बले के स्टेडियमों में अनिवासियों से संवाद कर रहे थे, ठीक उसी समय उनकी सरकार के रूढ़िवादी आग्रह भारत के विदेश व्यापार में उदारीकरण की कोशिशों को श्रद्धांजलि दे रहे थे और मुक्त व वरीयक व्यापार संधियों को रोक रहे थे जो ताजा अध्ययनों में भारत की व्यापारिक सफलता का आधार बनकर उभरे हैं. एफटीए को लेकर स्वदेशी दबावों और दकियानूसी आग्रहों के चलते सरकार ने पिछले साल अगस्त में यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार संधि (इंडिया-ईयू एफटीए) पर बातचीत रोक दी जिसे आसियान के बाद भारत का सबसे महत्वाकांक्षी एफटीए माना जा रहा है.
आर्थिक समीक्षा की रोशनी में एफटीए की व्यवस्था के भारत के विदेश व्यापार पर असर की ठोस व तथ्यपरक पड़ताल की जा सकती है. इस पड़ताल का एक सूत्रीय निष्कर्ष यह है कि जिन देशों के साथ भारत ने दोतरफा या बहुपक्षीय मुक्त या वरीयक व्यापार समझौते (एफटीए/पीटीए) किए हैं, उनके साथ 2010 से 2014 के बीच कुल व्यापार में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. वजहः एफटीए/पीटीए में शामिल देश दूसरे देश से होने वाले आयात के लिए कस्टम ड्यूटी में कमी करते हैं और व्यापार प्रतिबंधों को सीमित करते हैं जिसका सीधा असर व्यापार में बढ़त के तौर पर सामने आता है.
दुनिया में व्यापार समझौतों को लेकर तीन तरह के मॉडल सक्रिय हैं. पहला वर्ग डब्ल्यूटीओ, ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) जैसी बहुपक्षीय व्यापार संधियों का है. डब्ल्यूटीओ बहुत सफल नहीं रहा जबकि टीपीपी की जमीन अभी तैयार हो रही है. दूसरा वर्ग क्षेत्रीय ट्रेड ब्लॉक आसियान (दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन), नाफ्टा (उत्तर अमेरिका), ईयू (यूरोपीय समुदाय) का है जो क्षेत्रीय व्यापार बढ़ाने में काफी सफल रहे हैं. तीसरा वर्ग एफटीए का है जो दुनिया में व्यापार और निवेश बढ़ाने का सबसे प्रमुख जरिया बनकर उभरे हैं. इनमें देशों के बीच द्विपक्षीय समझौते और ट्रेड ब्लॉक के साथ समझौते शामिल हैं. इस होड़ में भारत काफी पीछे है.
भारत ने एफटीए की शुरुआत 1970 में इंडिया अफ्रीका ट्रेड एग्रीमेंट के साथ की थी लेकिन 2010 तक केवल 19 एफटीए हो पाए हैं जबकि विश्व में 2004 से लेकर 2014 तक हर साल औसतन 15 एफटीए हुए हैं, बीच के कुछ वर्षों में तो इनकी संख्या 20 और 25 से ऊपर रही है. भारत के ज्यादातर एफटीए एशिया में हैं. एशिया से बाहर दो एफटीए मर्कोसूर (ब्राजील, अर्जेंटीना, उरुग्वे, पैराग्वे, वेनेजुएला) और चिली के साथ हैं.
व्यापार की मात्रा के आधार पर एशिया में भारत के सबसे महत्वपूर्ण एफटीए आसियान, कोरिया और जापान के साथ हैं. आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, इन देशों के साथ एफटीए होने के बाद भारत के व्यापार में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इन देशों के अलावा जिन अन्य देशों से भारत के एफटीए हैं, उन देशों के साथ एफटीए से पहले, 2007 से 2014 के दौरान भारत के निर्यात की वृद्धि दर 13 फीसदी थी जो एफटीए के बाद 22 फीसदी हो गई जो मुक्त व्यापार समझौतों की सफलता का प्रमाण है.
आसियान के साथ भारत का एफटीए (2010) सबसे सफल माना जाता है. ताजा आंकड़े ताकीद करते हैं कि 2014 तक उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता चार वर्षों में आसियान देशों को भारत का निर्यात 25 फीसदी बढ़ा जो एफटीए से पहले 14 फीसदी था. आयात में बढ़ोतरी 19 फीसदी रही जो एफटीए से पहले 13 फीसदी थी. आसियान की सफलता के बाद भारत व यूरोपीय संघ के बीच एफटीए को लेकर उम्मीदें काफी ऊंची थीं क्योंकि यूरोप दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है और भारतीय निर्यात में नई ऊर्जा के लिए इस बाजार में प्रवेश जरूरी है.
लेकिन अफसोस कि मोदी सरकार के असमंजस और रूढ़िवादिता के चलते यह महत्वपूर्ण पहल जहां की तहां ठहर गई. नतीजतन इस सप्ताह ब्रसेल्स में ईयू के साथ भारत का शिखर सम्मेलन तो हुआ लेकिन सबसे महत्वपूर्ण एजेंडे यानी एफटीए पर कोई बात नहीं बनी और पूरा आयोजन केवल इवेंट डिप्लोमेसी बनकर रह गया.
यदि आर्थिक समीक्षा सही है तो स्वदेशी पोंगापंथी के दबाव में ईयू एफटीए को रोकना सरकार की गलती है. दरअसल, किसी भी तरह वरीयक व्यापार समझौतों को रोकना या उन पर अपनी तरफ से पहल नहीं करना एक बड़ी कूटनीतिक चूक है जो पिछले दो साल में सरकार ने बार-बार की है. भारत का निर्यात आज अगर 15 माह के न्यूनतम स्तर पर है तो शायद इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि संरक्षणवादी आग्रहों के चलते मोदी सरकार ने मुक्त बाजार समझौतों की रफ्तार तेज नहीं की. प्रधानमंत्री को यह समझना होगा कि किसी भी देश के विदेश व्यापार की सफलता अब प्रिफ्रेंशियल ट्रेड एग्रीमेंट्स पर निर्भर है और यह एग्रीमेंट कूटनीतिक अभियानों से निकलते हैं. उनके कूटनीतिक अभियानों का जादू इसलिए उतरने लगा है क्योंकि उनकी डिप्लोमेसी में मुक्त और उदार बाजार की चेतना नदारद है.
भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर जल्द बन सकती है सहमति
भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता व्यापार समझौते (एफटीए) पर जल्द सहमति बन सकती है . दोनों राष्ट्रों में इस अहम मुद्द को लेकर लंबे समय से बात चल रही है . अब भारतीय मूल के पीएम ऋषि सुनक के बाद यह आशा बढ़ गई है कि यह समझौता जल्द हो सकता है . इसके संकेत ब्रिटेन के पीएम कार्यालय से मिले भी हैं . दरअसल, ब्रिटेन के पीएम कार्यालय ने बुधवार को बोला कि नए पीएम ऋषि सुनक एक बैलेंस समझौते को लेकर प्रतिबद्ध हैं . ब्रिटेन के पीएम कार्यालय ‘10 डाउनिंग स्ट्रीट’ ने बोला कि पूरा ध्यान एक संतुलित व्यापार समझौते पर है जो दोनों पक्षों के लिए लाभदायक हो . एक प्रवक्ता ने कहा, ‘‘दोनों पक्ष इसे लेकर प्रतिबद्ध हैं, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विभाग के नेतृत्व में गहन वार्ता चल रही है . इसमें आगे बोला गया, ‘‘प्रधानमंत्री सुनक की पिछले सप्ताह पीएम मोदी से बहुत ही गर्मजोशी भरी वार्ता हुई . हम गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं करेंगे . एक संतुलित समझौता होने पर हम हस्ताक्षर करेंगे, ऐसा समझौता जो दोनों पक्षों के भलाई में हो . हालांकि दोनों पक्षों की प्रतिबद्धता कायम है .
प्रधानमंत्री मोदी और सुनक वर्ता के बाद तेजी
हाल ही में भारतीय पीएम मोदी और ऋषि सुनक के बीच वार्ता में दोनों नेता एक व्यापक और संतुलित मुक्त व्यापार समझौते के शीघ्र समाप्ति के महत्व पर सहमत हुए थे . मोदी ने एक ट्वीट में यह जानकारी दी थी . मोदी ने बोला था कि एक व्यापक और संतुलित मुक्त व्यापार समझौते के शीघ्र समाप्ति के महत्व पर भी वह और सुनक सहमत हुए . सुनक ने मोदी के ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ब्रिटेन और हिंदुस्तान बहुत कुछ साझा करते हैं . हम जब अपने सुरक्षा, रक्षा एवं आर्थिक साझेदारी को गहरा करने में लगे हैं, ऐसे में आने वाले सालों और महीनों में हमारे दो महान लोकतांत्रिक राष्ट्र क्या कुछ हासिल कर सकते हैं, इसे लेकर मैं उत्साहित हूं . उल्लेखनीय है कि हिंदुस्तान और ब्रिटेन ने इस वर्ष जनवरी में एफटीए के लिए वार्ता प्रारम्भ की थी और दीपवाली तक वार्ता को पूरा करने का अनौपचारिक लक्ष्य रखा गया था . हालांकि, कई मुद्दों पर आम सहमति की कमी के कारण समयसीमा चूक गई . सुनक हाल ही में हिंदुस्तान और ब्रिटेन के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते यानि फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के समर्थक रहे हैं . इस समझौते का उद्देश्य निवेश को बढ़ावा देने के अलावा, वस्तुओं और सेवाओं में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए मानदंडों को उदार बनाना और सीमा शुल्क को उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता कम करना है .
ब्रिटेन कर रहा है काम
हाल ही में ब्रिटेन के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सचिव ग्रेग हैंड्स ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सचिव ने एक प्रश्न के उत्तर में बोला था कि हिंदुस्तान के साथ एफटीए मामले पर हमने पहले ही ज्यादातर वार्ता को पूरा कर लिया है और जल्द ही अगले दौर की वार्ता प्रारम्भ की जायेगी . उन्होंने कहा, ‘‘एक मजबूत एफटीए ब्रिटेन और हिंदुस्तान के बीच आर्थिक संबंधों को मजबूत कर सकता है . यह साल 2035 तक ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को तीन अरब पाउंड से अधिक करने के साथ परिवारों और समुदायों की सहायता कर सकता है . ’’ हैंड्स ने बोला कि एफटीए ब्रिटेन की कंपनियों के लिए हिंदुस्तान के गतिशील बाजार में बिक्री को सस्ता बना सकता है . इससे आर्थिक वृद्धि को गति देने और हर राष्ट्र एवं क्षेत्र में नौकरियों का समर्थन करने में सहायता मिल सकती है . उन्होंने बोला कि हिंदुस्तान निश्चित रूप से एक ‘आर्थिक महाशक्ति’ है, जिसका साल 2050 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने का अनुमान है .
जानो मुक्त व्यापार क्या है? Free Trade Kya Hai? Mukt Vyapar Kya Hai
हालांकि, मुक्त व्यापार नीतियों को लागू करने के बहुत कम प्रयास सफल रहे हैं। मुक्त व्यापार क्या है? Mukt Vyapar Kya Hai अर्थशास्त्री इसे आम जनता से अलग क्यों देखते हैं?
- देशों के उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता बीच वस्तुओं और सेवाओं के अप्रतिबंधित आयात और निर्यात को मुक्त व्यापार कहा जाता है।
- संरक्षणवाद, जो एक प्रतिबंधात्मक व्यापार नीति है जो अन्य देशों से प्रतिस्पर्धा को खत्म करना चाहता है।
- अधिकांश औद्योगिक देश हाइब्रिड मुक्त व्यापार समझौतों या एफटीए (FTA) में भाग लेते हैं।
- FTA बहुपक्षीय समझौते टैरिफ, कोटा और अन्य व्यापार प्रतिबंधों की अनुमति देते हैं और उन्हें नियमित करते हैं।
मुक्त व्यापार की परिभाषा क्या है?
ऐसी व्यापारिक नीति जिसमें किसी भी देशों के बीच वस्तुओं के आयात और निर्यात पर कोई कर नहीं लगता है उसे मुक्त व्यापार या व्यापारिक उदारीकरण कहते हैं।
मुक्त व्यापार, इस अर्थ में, संरक्षणवाद के विपरीत है जो एक रक्षात्मक व्यापार नीति है जो विदेशी प्रतिस्पर्धा को समाप्त करती है।
हालांकि, भले ही सरकार के पास आम तौर पर उदार व्यापार नीतियां हों, फिर भी उन्हें आयात और निर्यात को प्रतिबंधित करने के लिए कुछ कदम उठाने होंगे।
अधिकांश औद्योगिक देशों में “मुक्त व्यापार समझौते”, या अन्य देशों के साथ एफटीए हैं जो आयात और निर्यात पर लगाए जा सकने वाले टैरिफ, शुल्क और सब्सिडी का निर्धारण करते हैं।
सबसे प्रसिद्ध एफटीए में से एक संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के बीच उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता है।
एफटीए में भागीदारी के बावजूद कई सरकारें अभी भी संरक्षणवादी व्यापार प्रतिबंध, जैसे टैरिफ या सब्सिडी लागू करती हैं। तथाकथित चिकन टैक्स, जो कुछ कारों, हल्के ट्रकों और वैन पर 25% टैरिफ लगाता है।
मुक्त व्यापार की अवधारणा
यह सिद्धांत बताता है कि सभी देशों को मुक्त व्यापार और सहयोग से लाभ होगा।
तुलनात्मक लाभ के नियम का श्रेय अक्सर एक अंग्रेजी अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डो को दिया जाता है, जिन्होंने 1817 में “राजनीतिक अर्थव्यवस्था और कराधान के सिद्धांत” लिखे थे।
किसी देश की अन्य देशों की तुलना में कम कीमत पर वस्तुओं का उत्पादन करने और सेवाओं की पेशकश करने की क्षमता को संदर्भित करता है।
तुलनात्मक लाभ के कई विशेषताओं को साझा करता है वैश्वीकरण। यह सिद्धांत बताता है कि अधिक व्यापार खुलेपन से सभी देशों में उच्च जीवन स्तर प्राप्त होगा।
तुलनात्मक लाभ से तात्पर्य किसी देश की अन्य देशों की तुलना में कम कीमतों पर अधिक माल का उत्पादन करने की क्षमता से है।
पूर्ण लाभ एक ऐसा देश है जो अन्य देशों की तुलना में अपने उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता माल के लिए कम शुल्क लेता है जबकि अभी भी लाभ कमा रहा है।
मुक्त व्यापार के लाभ
आइए पढ़ते हैं कि अगर कोई देश मुक्त व्यापार को लागू करता है तो उसके क्या-क्या फायदे होंगे।
- यह आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करता है। यहां तक कि जब टैरिफ लागू नहीं होते हैं, तब भी सभी देश अधिक आर्थिक विकास का अनुभव करते हैं।
- यह उपभोक्ताओं को लाभान्वित करता है टैरिफ और कोटा जैसे व्यापार प्रतिबंध, जो स्थानीय उद्योगों और व्यवसायों की रक्षा के लिए लागू किए जाते हैं
- कीमतों को कम करने में मदद करते हैं, जब व्यापार प्रतिबंध हटा दिए जाते हैं तो उपभोक्ताओं को कम कीमतों का अनुभव होता है।
- इससे विदेशी निवेश को प्रोत्साहन मिलता है, विदेशी निवेशक स्थानीय व्यवसायों में निवेश करने की अधिक संभावना रखते हैं जो विस्तार और प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।
- इससे सरकारी खर्च कम होता है, सरकार अक्सर कृषि जैसे स्थानीय उद्योगों को निर्यात कोटा से होने वाली आय के नुकसान के लिए सब्सिडी देती है। एक बार कोटा हटा लिए जाने के बाद सरकार अन्य उद्देश्यों के लिए अपने कर राजस्व का उपयोग कर सकती है।
- यह प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देता है: घरेलू व्यवसायों की बहुराष्ट्रीय भागीदारों द्वारा विकसित नवीनतम तकनीकों तक पहुंची है।
मुक्त व्यापार के नुकसान
इस नीति के कई लाभ हमने जाना अब आइए यह देखते हैं कि यदि इस नीति को कोई देश लागू करता है तो उस पर क्या बुरा प्रभाव पड़ेगा।
- नौकरी के नुकसान का कारण बन सकते हैं, कम मजदूरी वाले देशों से आयातित उत्पाद उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता बिना शुल्क के सस्ते होते हैं।
- यह बौद्धिक संपदा की चोरी को प्रोत्साहित करता है। कई विदेशी सरकार, विशेष रूप से विकासशील देशों की सरकारें अक्सर बौद्धिक संपदा अधिकारों को गंभीरता से लेने में विफल रहती हैं।
- यह असुरक्षित काम करने की स्थिति की अनुमति देता है। उसी तरह, विकासशील देशों में सरकारों के पास निष्पक्ष और सुरक्षित काम करने की स्थिति को विनियमित करने या सुनिश्चित करने के लिए शायद उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता ही कभी कानून होते हैं।
- मुक्त व्यापार आंशिक रूप से सरकार से प्रतिबंधों की अनुपस्थिति पर निर्भर है। इसका मतलब है कि महिलाओं और बच्चों को अक्सर मुश्किल काम करने की परिस्थितियों में कारखानों में काम करना पड़ता है।
- यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकता है। उभरते देशों में पर्यावरण संरक्षण कानून नहीं हैं, या बहुत कम हैं। चूंकि मुक्त व्यापार के कई अवसरों में लकड़ी या लौह अयस्क और साफ-सुथरे उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता जंगलों जैसे प्राकृतिक संसाधनों का निर्यात शामिल है।
- यह राजस्व कम करता है: अप्रतिबंधित व्यापार के कारण उच्च स्तर की प्रतिस्पर्धा अंततः व्यवसायों के लिए कम राजस्व में परिणाम देती है।
व्यवसाय का अंतिम लक्ष्य अधिक लाभ कमाना है, जबकि सरकार का लक्ष्य अपने नागरिकों की रक्षा करना है।
कुल संरक्षणवाद और अप्रतिबंधित व्यापार दोनों ही हासिल नहीं होंगे। बहुराष्ट्रीय मुक्त व्यापार समझौते दोनों को मिलाने का सबसे अच्छा तरीका रहा है।.
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निष्कर्ष : Mukt Vyapar Kya Hai
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