विदेश व्यापार नीति में बदलाव की कवायद

जारी रहेगी मौजूदा विदेश व्यापार नीति!
पिछले साल सरकार ने विदेश व्यापार नीति 2015-20 को 31 मार्च 2021 तक के लिए विस्तार दिया था, जिससे कि कोविड-19 की तूफान में फंसे निर्यातकों को मदद मिल सके। कोविड-19 के प्रसार को देखते हुए देशव्यापी लॉकडाउन भी लगाया गया था, जिससे निर्यातकों को व्यवधान पहुंचा था। नीति को विस्तार दिए जाने से मिल रहे प्रोत्साहन जारी रहे, जो विभिन्न निर्यात संवर्धन योजनाओं के माध्यम से मिल रहे थे। इसका मकसद महामारी के कारण आए व्यवधान से जूझ रहे उद्यमों को मदद पहुंचाना था।
अधिकारियों ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय कारोबार पर 5 साल का नया खाका तैयार करने में देरी हो रही है और इस विस्तार से नीति निर्माताओं को अहम नीतिगत फैसला लेने के लिए और वक्त मिल सकेगा। इससे निर्यातकों को भी खुद को तैयार करने के लिए पर्याप्त वक्त मिल सकेगा और कोविड-19 से संबंधित अनिश्चितता के बीच उन्हें बदलाव के मुताबिक तैयारियों का मौका मिलेगा।
एक अन्य अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'मौजूदा नीति को 6 महीने के लिए और बढ़ाया जा सकता है। अगले कुछ महीनों के दौरान हमें स्थिति और ज्यादा साफ हो सकेगी कि महामारी की स्थिति में हम कहां खड़े हैं और इसके मुताबिक बेहतर फैसला लिया जा सकेगा। अगले कुछ महीनों में सरकार आगे की राह के बारे में फैसला करने में सक्षम हो सकेगी।' उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले छह महीनों में वैश्विक कारोबार का परिदृश्य और साफ हो जाएगा।
उम्मीद है कि बुधवार को इस नीति को विस्तार दिए जाने को लेकर आधिकारिक बयान जारी हो जाएगा।
इसी तरह से अगले कुछ महीनों में सरकार के राजस्व की स्थिति भी सुधरने की उम्मीद है। अधिकारी ने कहा, 'उसके बाद राजस्व से जुड़ी कुछ चिंता का भी ध्यान रखा जा सकेगा।'
इसके पहले सरकार ने कहा था कि नई नीति 1 अप्रैल, 2021 से प्रभाव में आ जाएगी, जो 5 साल के लिए होगी। सरकार ने इसे लेकर संबंधित हिस्सेदारों के साथ बैठक भी की थी।
जनवरी महीने में वाणिज्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा था, 'नई विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) का मकसद अंतरराष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में भारत को अग्रणी बनाने और सेवा व वाणिज्यिक वस्तुओं के निर्यात के माध्यम से वृद्धि और रोजगार बढ़ाने पर केंद्रित होगी, जिससे भारत को 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य हासिल किया जा सके। अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंचाने के लिए बनी समयसीमा में निर्यात बढ़ाना अहम है, जो वाणिज्यिक वस्तुओं और सेवा दोनों ही क्षेत्रों में होगा। साथ ही इस नीति के माध्यम से निर्यात की राह में आने वाली नीतिगत पर परिचालन ढांचे से संबंधित घरेलू व अंतरराष्ट्रीय बाधाएं दूर करने की कवायद होगी।'
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के पहले 11 महीनों के दौरान वाणिज्यिक वस्तुओं का निर्यात पिछले साल की तुलना में 12 प्रतिशत कम होकर 256.18 अरब डॉलर रह गया है। वित्त वर्ष 2019-20 में कुल 314 अरब डॉलर का निर्यात हुआ था।
व्यापार की रणनीति: विदेश व्यापार नीति में बदलाव की कवायद
सरकार आने वाले दिनों में एक नई विदेश व्यापार नीति का ऐलान करने वाली है। इस नई नीति में वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात को बढ़ाने में मदद करने के साथ-साथ बढ़ते आयात के खर्चों पर लगाम लगाने के उपाय शामिल हो सकते हैं। मौजूदा व्यापार नीति 2015 में लाई गई थी। इस नीति का पांच साल का कार्यकाल महामारी पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन की घोषणा के एक सप्ताह बाद समाप्त हो गया था। तब, उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए इसे एक साल के लिए बढ़ा दिया गया था। हालांकि, मार्च 2021 से आगे इस पुरानी नीति को बढ़ाया जाना समझ से परे है। विशेष रूप से मौजूदा छह महीने का विस्तार, जो इस नीति की समाप्ति तिथि को 30 सितंबर तक बढ़ा देती है। एक नए वित्तीय वर्ष में बिल्कुल नए सिरे से आगाज करने की पारंपरिक रवायत के उलट, किसी वित्तीय वर्ष के मध्य में नई नीति की शुरुआत करना आदर्श कदम नहीं है। इसके अलावा निर्यात कोविड से उबरने के बाद की स्थितियों में विकास के उन चंद इंजनों में से एक रहा है, जो कुलाचे मार रहा है। लिहाजा, ‘आउटबाउंड शिपमेंट’ को बढ़ावा देने की नीति को बंद करने का फैसला चौंकाने वाला है। चीन पर कम निर्भर होने की दुनिया की चाहत को भुनाने के लिए भारत की रणनीति को स्पष्ट कर देने से निर्यातकों (और आयातकों) को अपने निवेश की योजना बनाने में भी मदद मिलेगी। पिछले साल जनवरी में, निर्यातकों को घरेलू कर वापस करने के लिए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के प्रावधानों के अनुरूप निर्यात प्रोत्साहन योजना शुरू की गई थी। लेकिन, दरों को कुछ महीनों के बाद ही अधिसूचित किया गया था। उसमें भी, कुछ क्षेत्रों को छोड़ दिया गया था। पूरी तरह से टाली जा सकने वाली इस अनिश्चितता के बावजूद, वस्तुओं का निर्यात वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान 422 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया।
इस साल, सरकार को वस्तुओं का निर्यात कम से कम 450 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। लेकिन जुलाई और अगस्त माह में विकास दर लुढ़क कर इकाई अंकों में सिमट गया है। उधर, मार्च से हर महीने आयात 60 बिलियन डॉलर से अधिक का हो गया है। विकास दर में वैश्विक सुस्ती और यूरोप एवं अमेरिका में मंदी की आशंका अच्छे संकेत नहीं दे रही है। यों तो ऑर्डर हुए विदेश व्यापार नीति में बदलाव की कवायद पड़े हैं, लेकिन ढेर सारे खरीदार डिलीवरी को टालना चाहते हैं। नई नीति में निर्यात
को गति प्रदान करने और बढ़ती ब्याज दरों पर लगाम सहित उद्योग जगत की कुछ प्रमुख चिंताओं को दूर करने के तरीके खोजने होंगे। अब जबकि राजस्व में उछाल है, यह समय फार्मा, रसायन, और लोहा एवं इस्पात जैसे विकास के प्रमुख क्षेत्रों को शुल्क छूट योजना से बाहर रखने के रुख पर पुनर्विचार करने का भी है। फिलहाल के लिए भारत-प्रशांत आर्थिक ढांचे के व्यापार के रास्ते से दूर रहने का निर्णय लेने के बाद, यह कहना कि सरकार के पास नई मुक्त व्यापार संधि वार्ता के लिए 'कोई दायरा या बैंडविड्थ' नहीं बचा है विदेश व्यापार नीति में बदलाव की कवायद जबकि कई देश इसके लिए मनुहार कर रहे हैं और वह खाड़ी सहयोग परिषद के साथ बातचीत को धीमा करना चाहती है, गैरजरूरी है। अगर कोई वास्तविक समस्या है, तो उसका समाधान बचे हुए बैंडविड्थ के साथ आर्थिक नीति निर्माताओं को शामिल करके खोजा जाना चाहिए। लेकिन यह तय है कि संभावित साझेदार देशों, छोटे ही सही, को दूर भगाने के मुकाबले भारत के बढ़ते दबदबे को सुनिश्चित करने के बेहतर विकल्प उपलब्ध हैं।
अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध में अल्पविराम
अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में जी-20 सम्मेलन में डिनर के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीनी आयात पर टैरिफ 10 से बढ़ाकर 25 फीसदी करने के कदम को रोकने की घोषणा की। लेकिन, इससे व्यापार युद्ध खत्म नहीं हुआ है। इसे अल्पविराम कहा जाना चाहिए। ट्रम्प और शी जिस राह पर चल पड़े हैं वह अंतत: टकराव की ओर ही जाता है।
मार्क लैंडलर, व्हाइट हाउस कॉरेस्पॉडेन्ट
अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर में तब विराम आ गया जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प टैरिफ रोकने पर राजी हो गए और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन द्वारा अमेरिकी सामान की खरीद बढ़ाने का संकल्प जताया। दोनों ने व्यापार को लेकर मौजूद गहरे मतभेदों को दूर करने के लिए बातचीत का आधार भी तैयार किया है।
समझौता अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में जी-20 सम्मेलन के दौरान आयोजित डिनर में हुआ। व्हाइट हाउस से जारी एक बयान में यह जानकारी दी गई पर इसे बड़ी सफलता की बजाय दोनों देशों की बीच बड़ा टकराव टालने की कवायद ज्यादा माना जा रहा है। दोनों नेताओं में बाजार तक पहुंच और व्यापार नीति के बुनियादी मुद्दों पर दूरी बनी हुई है और इस बात के कोई संकेत नहीं है कि दोनों की उससे पीछे हटने की कोई योजना है। फिर भी व्हाइट हाउस
जिसे ‘अत्यधिक सफल मुलाकात’ बता रहा है, वह सीधी आर्थिक भिड़ंत की ओर दौड़ते दोनों देशों में एक विराम तो है। यह घबराए वित्तीय बाजारों और अमेरिकी किसानों को भी थोड़ी राहत देगा, जिन्हें लंबी चलने वाली व्यापारिक लड़ाई को लेकर बहुत चिंता थी।
महत्वपूर्ण राहत देते हुए ट्रम्प ने 1 जनवरी से चीनी सामान पर टेरिफ 10 से बढ़ाकर 25 फीसदी करने का कदम फिलहाल टाल दिया है। चीन ने अमेरिका के औद्योगिक, ऊर्जा और विदेश व्यापार नीति में बदलाव की कवायद कृषि संबंधी उत्पादनों का आयात बढ़ाने का वादा किया है पर कोई आंकड़ा नहीं बताया। दोनों देशों ने 90 दिनों में व्यापक व्यापार समझौते की महत्वाकांक्षी समयसीमा तय की है और व्हाइट हाउस ने चेतावनी दी है कि यदि तब तक कोई समझौता नहीं होता तो ट्रम्प टेरिफ की मौजूदा दर को 25 फीसदी कर देंगे।
लंबी डिनर टेबल पर ट्रम्प ने कहा, ‘राष्ट्रपति शी के साथ मेरे जो संबंध है, वे बहुत खास हैं और मुझे लगता है कि उसके कारण मुझे कुछ ऐसा मिलेगा, जो चीन के लिए भी अच्छा होगा और अमेरिका के लिए भी।’ इसके जवाब में शी ने कहा, ‘केवल हमारे बीच सहयोग से ही हम वैश्विक शांति व समृद्धि के लिए काम कर सकते हैं।’ डिनर खत्म होने पर चीन व अमेरिका के अधिकारियों ने संयुक्त रूप से तालियां बजाकर दोनों की सराहना की। सम्मेलन के दूसरे दिन ट्रम्प ने कूटनीति और सुरक्षा के बारे में कुछ नहीं कहा और पूरा ध्यान व्यापार में लगाया। उसके कारण जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल जैसे नेताओं के लिए विचित्र स्थिति पैदा हो गई, क्योंकि यूरोपीय संघ का सदस्य होने के कारण जर्मनी अकेला व्यापार पर अमेरिका से चर्चानहीं कर सकता। अमेरिकी और चीनी अधिकारियों ने पिछले कई हफ्तों में समझौते पर चर्चा की लेकिन, उसका नतीजा तब तक अनिश्चित था जब तक कि अपने शीर्ष सहयोगियों विदेश व्यापार नीति में बदलाव की कवायद के साथ ट्रम्प शी व उनकी टीम के सामने डिनर पर नहीं बैठ गए।
ट्रम्प की इकोनॉमिक टीम ने उन्हें विरोधाभासी सलाहें दी थीं। वित्तमंत्री स्टीवन मनुचिन समझौते की सलाह दे रहे थे तो कठोर रुख अपनाने के पक्षधर व्हाइट हाउस ट्रेड डायरेक्टर पीटर नैवेरो दबाव बढ़ाने की सलाह दे रहे थे। मध्यमार्गी आर्थिक सलाहकारों ने ैवेरो को इस यात्रा से बाहर रखने के प्रयास किए थे लेकिन, ब्यूनस आयर्स में डिनर टेबल पर वे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन अार. बोल्टन और चीफ ऑफ स्टाफ जॉन केली के बीच बैठे थे। उन्होंने आगे झुककर ट्रम्प की कोई बात सुनी और चीनी राष्ट्रपति शी से घातक मादक पदार्थ ओपियॉड फेंटानाइल के खिलाफ कार्रवाई का आग्रह किया।
टेरिफ के लिए 250 अरब डॉलर के चीनी सामान की पहचान की गई है, जिसमें से 50 अरब डॉलर के सामान पर पहले ही 25 फीसदी टेरिफ है, जबकि शेष पर 10 फीसदी टेरिफ लगाया गया है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रम्प ने जिन ताकतों को गतिशील कर दिया है उन्हें रोकना मुश्किल होगा। अमेरिका चीन की व्यापार नीति में आमूल बदलाव चाहता है, जिसे करना कम्युनिस्ट सरकार के लिए राजनीतिक रूप से कठिन है और लागू करना तो असंभव ही है। दोनों देशों के बीच जो व्यापार समझौता दो साल की चर्चाओं में नहीं हो पाया उसके लिए 90 दिन की समय-सीमा अपवाद ही कही जा सकती है। जॉर्ज डब्ल्यू बुश के राष्ट्रपति रहते व्यापार सलाहकार रहे डेनियल एम प्राइस ने कहा, ‘व्यापार युद्ध में विराम का स्वागत है पर इससे टकराव का वह रास्ता नहीं बदलेगा जिस पर ट्म्प और शी चलते प्रतीत होते हैं।’ उन्होंने कहा कि व्हाइट हाउस निर्यात पर नियंत्रण कड़ा कर रहा है और हुआवेई जैसी चीनी टेक्नोलॉजी कंपनी को अमेरिका की ढांचागत परियोजना में भाग लेने से प्रतिबंधित किया गया है। फिर वह अन्य देशों के साथ मिलकर चीन को दबावपूर्वक किए जाने वाले टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर प्रतिबंध लगवाने की कोशिश में लगा है।
चीन के उदय नहीं, पतन को मैनेज करने की चुनौती
वर्ष 2009 में इकोनॉमिस्ट ने आने वाली वैश्विक शक्ति ब्राजील के बारे में लिखा था। उसने कहा था कि उसकी अर्थव्यवस्था जल्द ही फ्रांस या ब्रिटेन को पीछे छोड़ दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बन जाएगी। ऐसा कभी हुआ ही नहीं और ब्राजील की अर्थव्यवस्था इतिहास की सबसे खराब मंदी से लड़खड़ाती हुई उबर रही है। जिन्हें ईश्वर नष्ट करना चाहता है, उन्हें वह पहले भविष्य के देश के रूप में प्रचारित करता है। मुझे यह तब याद आया जब में चीन के बारे में पढ़ रहा था। ‘चीन का उदय’ यह जुमला इतना आम हो गया है कि हमने इसे सच मान लिया है। भारत को छोड़कर चीन जैसी विशाल सप्लाई कोई नहीं कर सकता। पर यह क्रूरता की सप्लाई भी कर सकता है। लाओगाई रिसर्च फाउंडेशन का अनुमान है कि चीन में बलपूर्वक श्रम कराए जाने के शिकार मजदूर लाखों में हैं। वाॅलमार्ट के एक पर्स में बंधुआ विदेश व्यापार नीति में बदलाव की कवायद मजदूर का नोट मिला जिसमें रोज 14 घंटे काम और पिटाई की शिकायत की गई थी। तानाशाही लंबे समय तक नहीं चलती। बड़े पैमाने पर सप्लाई और ताकत के फायदों के बाद भी चीनी व्यवस्था सफल नहीं है। इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंस के मुताबिक 2015 में 676 अरब डॉलर चीनी पूंजी बाहर चली गई। 46 फीसदी धनी चीनी अमेरिका जाना चाहते हैं। अमेरिकी नीति निर्माता प्राय: ‘चीन के उदय को मैनेज’ करने की बात करते हैं, बेहतर होगा वे ‘चीन के पतन को मैनेज’ करने की चुनौती की बात करें।
एक्सपोर्ट क्रेडिट के दायरे में आ सकते हैं ज्यादा छोटे कारोबारी
नई विदेश व्यापार नीति के तहत एक्सपोर्ट क्रेडिट की सुविधा के दायरे में ज्यादा छोटे और मझोले कारोबारी आ सकते हैं। इसके अलावा कारोबारियों के लिए निर्यात संबंधी कागजी प्रक्रिया को भी आसान बनाने की भी सरकार कवायद कर रही है।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय के सचिव माधव लाल ने कहा कि हमारी कोशिश है कि एक्सपोर्ट क्रेडिट का लाभ मैन्यूफैक्चरिंग करने वाले ज्यादा से ज्यादा छोटे कारोबारी उठाएं। साथ ही कारोबारियों को ऐसी सुविधाएं मिले, जिससे वह बेहतर कारोबार कर सके। इस संबंध में मंत्रालय ने अपने सुझाव संबंधित विभागों को दिए हैं।
माधव लाल ने यह जानकारी बृहस्पतिवार को एमएसएमई के लिए शुरू हुए आईपीआर (इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स) एक्सचेंज को लांच करने के दौरान दी। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार अभी बहुत से छोटे मैन्यूफैक्चर्स अपने उत्पाद एक्सपोर्ट हाउस आदि को बेच देते हैं। जिससे उन्हें एक्सपोर्ट क्रेडिट का लाभ नहीं मिलता है।
मंत्रालय की कोशिश है कि ऐसे मैन्यूफैक्चर्स एक्सपोर्ट क्रेडिट का लाभ उठा सके, जिससे उन्हें फोकस मार्केट, ड्यूटी ड्रॉ बैक जैसी योजनाओं का लाभ मिल सके। इसके अलावा कई ऐसे क्षेत्र के छोटे कारोबारी है, जिनके उत्पाद लागत की अवधि लंबी होती है, ऐसे में निर्यात के लिए उनके उत्पाद, कीमत के आधार पर प्रतिस्पर्धी नहीं रह जाते हैं। मंत्रालय इस संबंध में भी नए बदलाव करने की तैयारी कर रहा है।
नई विदेश व्यापार नीति के तहत एक्सपोर्ट क्रेडिट की सुविधा के दायरे में ज्यादा छोटे और मझोले कारोबारी आ सकते हैं। इसके अलावा कारोबारियों के लिए निर्यात संबंधी कागजी प्रक्रिया को भी आसान बनाने की भी सरकार कवायद कर रही है।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय के सचिव माधव लाल ने कहा कि हमारी कोशिश है कि एक्सपोर्ट क्रेडिट का लाभ मैन्यूफैक्चरिंग करने वाले ज्यादा से ज्यादा छोटे कारोबारी उठाएं। साथ ही कारोबारियों को ऐसी सुविधाएं मिले, जिससे वह बेहतर कारोबार कर सके। इस संबंध में मंत्रालय ने अपने सुझाव संबंधित विभागों को दिए हैं।
माधव लाल ने यह जानकारी बृहस्पतिवार को एमएसएमई के लिए शुरू हुए आईपीआर (इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स) एक्सचेंज को लांच करने के दौरान दी। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार अभी बहुत से छोटे मैन्यूफैक्चर्स अपने उत्पाद एक्सपोर्ट हाउस आदि को बेच देते हैं। जिससे उन्हें एक्सपोर्ट क्रेडिट का लाभ नहीं मिलता है।
मंत्रालय की कोशिश है कि ऐसे मैन्यूफैक्चर्स एक्सपोर्ट क्रेडिट का लाभ उठा सके, जिससे उन्हें फोकस मार्केट, ड्यूटी ड्रॉ बैक जैसी योजनाओं का लाभ मिल सके। इसके अलावा कई ऐसे क्षेत्र के छोटे कारोबारी है, जिनके उत्पाद लागत की अवधि लंबी होती है, ऐसे में निर्यात के लिए उनके उत्पाद, कीमत के आधार पर प्रतिस्पर्धी नहीं रह जाते हैं। मंत्रालय इस संबंध में भी नए बदलाव करने की तैयारी कर रहा है।
अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध में अल्पविराम
अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में जी-20 सम्मेलन में डिनर के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीनी आयात पर टैरिफ 10 से बढ़ाकर 25 फीसदी करने के कदम को रोकने की घोषणा की। लेकिन, इससे व्यापार युद्ध खत्म नहीं हुआ है। इसे अल्पविराम कहा जाना चाहिए। ट्रम्प और शी जिस राह पर चल पड़े हैं वह अंतत: टकराव की ओर ही जाता है।
मार्क लैंडलर, व्हाइट हाउस कॉरेस्पॉडेन्ट
अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर में तब विराम आ गया जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प टैरिफ रोकने पर राजी हो गए और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन द्वारा अमेरिकी सामान की खरीद बढ़ाने का संकल्प जताया। दोनों ने व्यापार को लेकर मौजूद गहरे मतभेदों को दूर करने के लिए बातचीत का आधार भी तैयार किया है।
समझौता अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में जी-20 सम्मेलन के दौरान आयोजित डिनर में हुआ। व्हाइट हाउस से जारी एक बयान में यह जानकारी दी गई पर इसे बड़ी सफलता की बजाय दोनों देशों की बीच बड़ा टकराव टालने की कवायद ज्यादा माना जा रहा है। दोनों नेताओं में बाजार तक पहुंच और व्यापार नीति के बुनियादी मुद्दों पर दूरी बनी हुई है और विदेश व्यापार नीति में बदलाव की कवायद इस बात के कोई संकेत नहीं है कि दोनों की उससे पीछे हटने की कोई योजना है। फिर भी व्हाइट हाउस
जिसे ‘अत्यधिक सफल मुलाकात’ बता रहा है, वह सीधी आर्थिक भिड़ंत की ओर दौड़ते दोनों देशों में एक विराम तो है। यह घबराए वित्तीय बाजारों और अमेरिकी किसानों को भी थोड़ी राहत देगा, जिन्हें लंबी चलने वाली व्यापारिक लड़ाई को लेकर बहुत चिंता थी।
महत्वपूर्ण राहत देते हुए ट्रम्प ने 1 जनवरी से चीनी सामान पर टेरिफ 10 से बढ़ाकर 25 फीसदी करने का कदम फिलहाल टाल दिया है। चीन ने अमेरिका के औद्योगिक, ऊर्जा और कृषि संबंधी उत्पादनों का आयात बढ़ाने का वादा किया है पर कोई आंकड़ा नहीं बताया। दोनों देशों ने 90 दिनों में व्यापक व्यापार समझौते की महत्वाकांक्षी समयसीमा तय की है और व्हाइट हाउस ने चेतावनी दी है कि यदि तब तक कोई समझौता नहीं होता तो ट्रम्प टेरिफ की मौजूदा दर को 25 फीसदी कर देंगे।
लंबी डिनर टेबल पर ट्रम्प ने कहा, ‘राष्ट्रपति शी के साथ मेरे जो संबंध है, वे बहुत खास हैं और मुझे लगता है कि उसके कारण मुझे कुछ ऐसा मिलेगा, जो चीन के लिए भी अच्छा होगा और अमेरिका के लिए भी।’ इसके जवाब में शी ने कहा, ‘केवल हमारे बीच सहयोग से ही हम वैश्विक शांति व समृद्धि के लिए काम कर सकते हैं।’ डिनर खत्म होने पर चीन व अमेरिका के अधिकारियों ने संयुक्त रूप से तालियां बजाकर दोनों की सराहना की। सम्मेलन के दूसरे दिन ट्रम्प ने कूटनीति और सुरक्षा के बारे में कुछ नहीं कहा और पूरा ध्यान व्यापार में लगाया। उसके कारण जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल जैसे नेताओं के लिए विचित्र स्थिति पैदा हो गई, क्योंकि यूरोपीय संघ का सदस्य होने के कारण जर्मनी अकेला व्यापार पर अमेरिका से चर्चानहीं कर सकता। अमेरिकी और चीनी अधिकारियों ने पिछले कई हफ्तों में समझौते पर चर्चा की लेकिन, उसका नतीजा तब तक अनिश्चित था जब तक कि अपने शीर्ष सहयोगियों के साथ ट्रम्प शी व उनकी टीम के सामने डिनर पर नहीं बैठ गए।
ट्रम्प की इकोनॉमिक टीम ने उन्हें विरोधाभासी सलाहें दी थीं। वित्तमंत्री स्टीवन मनुचिन समझौते की सलाह दे रहे थे तो कठोर रुख अपनाने के पक्षधर व्हाइट हाउस ट्रेड डायरेक्टर पीटर नैवेरो दबाव बढ़ाने की सलाह दे रहे थे। मध्यमार्गी आर्थिक सलाहकारों ने ैवेरो को इस यात्रा से बाहर रखने के प्रयास किए थे लेकिन, ब्यूनस आयर्स में डिनर टेबल पर वे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन अार. बोल्टन और चीफ ऑफ स्टाफ जॉन केली के बीच बैठे विदेश व्यापार नीति में बदलाव की कवायद थे। उन्होंने आगे झुककर ट्रम्प की कोई बात सुनी और चीनी राष्ट्रपति शी से घातक मादक पदार्थ ओपियॉड फेंटानाइल के खिलाफ कार्रवाई का आग्रह किया।
टेरिफ के लिए 250 अरब डॉलर के चीनी सामान की पहचान की गई है, जिसमें से 50 अरब डॉलर के सामान पर पहले ही 25 फीसदी टेरिफ है, जबकि शेष पर 10 फीसदी टेरिफ लगाया गया है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रम्प ने जिन ताकतों को गतिशील कर दिया है उन्हें रोकना मुश्किल होगा। अमेरिका चीन की व्यापार नीति में आमूल बदलाव चाहता है, जिसे करना कम्युनिस्ट सरकार के लिए राजनीतिक रूप से कठिन है और लागू करना तो असंभव ही है। दोनों देशों के बीच जो व्यापार समझौता दो साल की चर्चाओं में नहीं हो पाया उसके लिए 90 दिन की समय-सीमा अपवाद ही कही जा सकती है। जॉर्ज डब्ल्यू बुश के राष्ट्रपति रहते व्यापार सलाहकार रहे डेनियल एम प्राइस ने कहा, ‘व्यापार युद्ध में विराम का स्वागत है पर इससे टकराव का वह रास्ता नहीं बदलेगा जिस पर ट्म्प और शी चलते प्रतीत होते हैं।’ उन्होंने कहा कि व्हाइट हाउस निर्यात पर नियंत्रण कड़ा कर रहा है और हुआवेई जैसी चीनी टेक्नोलॉजी कंपनी को अमेरिका की ढांचागत परियोजना में भाग लेने से प्रतिबंधित किया गया है। फिर वह अन्य देशों के साथ मिलकर चीन को दबावपूर्वक किए जाने वाले टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर प्रतिबंध लगवाने की कोशिश में लगा है।
चीन के उदय नहीं, पतन को मैनेज करने की चुनौती
वर्ष 2009 में इकोनॉमिस्ट ने आने वाली वैश्विक शक्ति ब्राजील के बारे में लिखा था। उसने कहा था कि उसकी अर्थव्यवस्था जल्द ही फ्रांस या ब्रिटेन को पीछे छोड़ दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बन जाएगी। ऐसा कभी हुआ ही नहीं और ब्राजील की अर्थव्यवस्था इतिहास की सबसे खराब मंदी से लड़खड़ाती हुई उबर रही है। जिन्हें ईश्वर नष्ट करना चाहता है, उन्हें वह पहले भविष्य के देश के रूप में प्रचारित करता है। मुझे यह तब याद आया जब में चीन के बारे में पढ़ रहा था। ‘चीन का उदय’ यह विदेश व्यापार नीति में बदलाव की कवायद जुमला इतना आम हो गया है कि हमने इसे सच मान लिया है। भारत को छोड़कर चीन जैसी विशाल सप्लाई कोई नहीं कर सकता। पर यह क्रूरता की सप्लाई भी कर सकता है। लाओगाई रिसर्च फाउंडेशन का अनुमान है कि चीन में बलपूर्वक श्रम कराए जाने के शिकार मजदूर लाखों में हैं। वाॅलमार्ट के एक पर्स में बंधुआ मजदूर का नोट मिला जिसमें रोज 14 घंटे काम और पिटाई की शिकायत की गई थी। तानाशाही लंबे समय तक नहीं चलती। बड़े पैमाने पर सप्लाई और ताकत के फायदों के बाद भी चीनी व्यवस्था सफल नहीं है। इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंस के मुताबिक 2015 में 676 अरब डॉलर चीनी पूंजी बाहर चली गई। 46 फीसदी धनी चीनी अमेरिका जाना चाहते हैं। अमेरिकी नीति निर्माता प्राय: ‘चीन के उदय को मैनेज’ करने की बात करते हैं, बेहतर होगा वे ‘चीन के पतन को मैनेज’ करने की चुनौती की बात करें।