ऑनलाइन टीचिंग

अब कमा रहे लाखों रुपए

अब कमा रहे लाखों रुपए

हाइड्रोपोनिक खेती: एमटेक के बाद नौकरी छोड़ खेती से लाखों कमा रहा विशाल, दूसरों को भी साथ जोड़ा

आमतौर पर आईआईटी ग्रेजुएट यानी किसी मल्टीनेशनल कंपनी में लाखों के पैकेज पर नौकरी करने की होड़ मची रहती है। वहीं सीहोर जिले के नसरूल्लागंज निवासी विशाल तिवारी ने आईआईटी बांबे से बीटेक व एमटेक की डिग्री हासिल करने के बाद खेती-किसानी की राह चुनी। अब वे खेती किसानी से ही लाखों रुपए कमा रहे हैं। दरअसल, विशाल 2017 तक एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम रहे थे, लेकिन बाद में नौकरी छोड़ खेती के इरादे से गांव की राह पकड़ी।

उन्होंने परंपरागत खेती को छोड़ सब्जी की खेती करने का फैसला लिया। विशाल ने इसकी शुरूआत करीब तीन साल पहले हाइड्रोपोनिक खेती (इसमें मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है) के जरिए की और उसको विस्तार दे रहे हैं। विशाल बताते हैं उनका परिवार शुरू से ही खेती से जुड़ा रहा है। पापा, चाचा को खेती करते देखते रहते थे। आईआईटी करने के बाद मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी लगी तो कुछ समय तक उन्होंने वहां काम किया लेकिन बाद खेती करने का फैसला लिया और नौकरी छोड़कर वापस आ गए।

खेती में कुछ अलग करते हुए शुरूआत की तो उन्होंने थोड़ी सी जगह पर ही सब्जियां लगाईं लेकिन बाद जब अच्छा मुनाफा हुआ तो उन्होंने इसका विस्तार किया। अब वे करीब 20 एकड़ रकबे में सब्जियां उगा रहे हैं। विशाल एक एकड़ में उगाई सब्जियों से एक साल में सात से आठ लाख रुपए कमा लेते हैं।

इन सब्जियों का कर रहे उत्पादन
विशाल इस समय मिर्ची, लौकी, टमाटर, ककड़ी, गिलकी अन्य सब्जियों की खेती कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि हाइड्रोपोनिक और ड्रिप मल्चिंग तकनीक से खेती करने से सब्जियों के उत्पादन में लागत कम आती है और उत्पादन भी अच्छा होता है। इस वजह से बाजार में अगर सब्जियों के दाम कम भी मिलते हैं तो भी उनको नुकसान नहीं होता है।

Stubble Management: आग की भेंट चढ़ने वाली पराली से अब लाखों रुपये कमा रहे हैं किसान, इन उपायों से मिले शानदार परिणाम

Crop Waste Management: अब किसानों को फसल अवशेष को निपटाने का एक इको फ्रैंडली विकल्प मिल चुका है. इससे प्रदूषण को रोकथाम और किसानों की आमदनी में भी इजाफा हुआ है. ये विकल्प है कृषि मशीनीकरण का.

By: ABP Live | Updated at : 07 Oct 2022 01:43 PM (IST)

फसल अपशेष प्रबंधन (फाइल तस्वीर)

Crop Residue Management: भारत में अक्टूबर आते-आते पराली (Stubble) एक बड़ी समस्या बन जाती है. फसल के इस कचरे का सही निपटारा ना कर पाने के कारण कई किसान इसे आग की भेंट चढ़ा देते हैं. गैर कानूनी काम होने के बावजूद पराली जलती (Stubble Burning) है और पर्यावरण के साथ-साथ पशु-पक्षी और लोगों को भी स्वास्थ्य से जुड़ी समस्यायें हो जाती है. इससे मिट्टी की भी उर्वरता पर भी बुरा असर पड़ता है.

हरियाणा सरकार (Haryana Government) इस समस्या की रोकथाम के लिये किसानों को प्रति एकड़ 1,000 रुपये का अनुदान भी दे रही है. इतने प्रयासों के बावजूद पराली जलाने के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे. दूसरी तरफ राज्य के कैथल जिले में कई किसान ऐसे भी है, जो फसल अवशेष प्रबंधन (Crop Waste Management) करके 10 से 20 लाख रुपये तक की आमदनी ले रहे हैं.

मशीनों से मिली खास मदद
अब किसानों को फसल अवशेष को निपटाने का एक इको फ्रैंडली विकल्प (Eco Friendly Solution for Stubble) मिल चुका है. इससे प्रदूषण को रोकथाम और किसानों की आमदनी में भी इजाफा हुआ है. ये विकल्प है कृषि मशीनीकरण का. जी हां, अब हरियाणा के कैथल जिले के कई किसान स्ट्रॉ बेलर मशीन के साथ चॉपर मशीन के साथ-साथ स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम के जरिये लाखों की आमदनी ले रहे हैं. जानकारी के लिये बता दें कि जहां बेलर मशीन से खेत में पड़ी पराली के बंडल बनाये जाते हैं. वहीं चॉपर मशीन पराली को जड़ से काटकर पूरे खेत में फैला देती है.

फसल अवशेष प्रबंधन से आमदनी
कैथल जिले के किसान और ग्रामीण अब फसल अवशेष प्रबंधन के जरिये रोजगार का अवसर पैदा कर रहे हैं. यहां पराली के प्रबंधन में स्ट्रॉ बेलर मशीन और सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे एक ही सीजन में 10 लाख रुपये तक की आमदनी हो जाती है.

News Reels

इन दोनों ही उपरकरणों को सब्सिडी पर खरीदकर किसान और ग्रामीण इन्हें दूसरे किसानों को किराये पर उपलब्ध करवाते हैं. जाहिर है कि धान की खेती बड़े-बड़े खेतों में की जाती है. जहां बिना मशीनों के पराली प्रबंधन करना नामुमकिन है. ऐसी अब कमा रहे लाखों रुपए स्थिति में ये उपकरण ट्रैक्टर के साथ जोड़ दिये जाते हैं और किसान चंद समय में खेतों में फसल अवशेषों का प्रबंधन कर लेते हैं.

क्या है स्ट्रॉ बेलर और स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम
स्ट्रॉ बेलर (Straw Baler Machine) को ट्रैक्टर के पीछे लगाकर इस्तेमाल किया जाता है. ये कंबाइन से धान और गन्ने की कटाई के बाद खेतों में बचे फसल अवशेषों को इकट्ठा करके उनकी अब कमा रहे लाखों रुपए गांठ बना देता है. इसके बाद इन गांठ-गठ्ठरों को इकट्ठा करके फैक्ट्रियों में बेच दिया जाता है. ये किसान के ऊपर निर्भर करता है कि वो फसल अवशेष प्रबंधन के बाद उसे बेचता है या किसी और काम में लेता है.

सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (Super Straw management System) भी एक तरह का उपकरण है, जिसे कंबाइन (Combine Harvester Machine)के साथ जोड़कर फसल की कटाई के साथ-साथ इस्तेमाल किया जाता है. ये उपकरण फसल की कटाई के बाद खेतों में बचे अवशेषों को हाथोंहाथ छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देता है और खेतों में मिला देता है. बाद में यही टुकड़े मिट्टी और फसल के साथ प्राकृतिक पोषण का काम करते हैं. इस तरह पराली जलाने की जरूरत ही नहीं पड़ती.

किसानों को भी फायदा
बता दें कि धान की फसल कटाई (Paddy Crop Harvesting) के बाद प्रति एकड़ से करीब 20 क्विंटल पर फसल अवशेष (Crop Waste Management) निकलते हैं. इन अवशेषों को फैक्ट्रियों में 135 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बचा जाता है.

इस तरह करीब एक एकड़ से करीब 2700 रुपये और राज्य सरकार की सब्सिडी (Subsidy on Stubble Management) मिलाकर प्रति एकड़ से करीब 1000 रुपये तक कमाई हो जाती है. इससे पर्यावरण को फायदा है ही, किसान और प्रशासन की चिंतायें भी दूर हो जाती है.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

इसे भी पढ़ें:-

Published at : 07 Oct 2022 01:43 PM (IST) Tags: Crop Residue Management Crop Waste Management Stubble Management हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Agriculture News in Hindi

Dragon Fruit: सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने वर्क फ्रॉम होम के दौरान उगाए ड्रैगन फ्रूट, अब कमा रहे लाखों रुपये

ड्रैगन फ्रूट के खेत में प्रदीप चौधरी

आगरा के अकोला के समीप नगला परमाल गांव में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने वर्क फ्रॉम होम के दौरान खेत में ड्रैगन फ्रूट के पेड़ लगाए। आज वह इसकी खेती से लाखों रुपये कमा रहे हैं। परमाल गांव के प्रदीप चौधरी सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। उन्होंने इंजीनियरिंग के साथ-साथ खेताबाड़ी में भी हाथ आजमाया। इसमें भी कामयाबी मिली। प्रदीप चौधरी ने बताया कि वह एक अमेरिकन कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। गुरुग्राम में कार्यरत थे। कोरोना संक्रमण के दौरान लॉकडाउन से ही वह वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि समय मिला तो करीब डेढ़ साल पहले एक एकड़ में ड्रैगन फ्रूट के करीब 3200 पौधे लगाए। अब उन पौधों में फल आ रहे हैं। इन फलों को ऑनलाइन ऑर्डर पर गुरुग्राम, दिल्ली, नोएडा आदि स्थानों पर बेच रहे हैं। प्रदीप ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती में करीब 20 लाख रुपये की लागत आई है। एक बार पौधा लगाने पर यह 20 वर्ष तक फल देता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

‘मन की बात’ से मिली प्रेरणा

प्रदीप चौधरी ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम को सुनने के बाद उन्हें ड्रैगन फ्रूट की खेती करने की प्रेरणा मिली। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने बताया थ कि गुजरात में बड़ी संख्या में लोग ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं।

ड्रैगन फ्रूट

संक्रमण से बचाने में मददगार

ड्रैगन फ्रूट अब कमा रहे लाखों रुपए में एंटी ऑक्सीडेंट व एंटी वायरल गुण पाए जाते हैं। जो संक्रमण से बचाने में मदद कर सकते हैं। प्रदीप चौधरी ने बताया कि कैंसर व डेंगू आदि के मरीज भी इस फल का सेवन करते हैं।

ड्रैगन फ्रूट के खेत में प्रदीप चौधरी

इस तरह कर सकते हैं खेती

प्रदीप चौधरी ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए मिट्टी की अच्छी तरह से जुताई कर लेना चाहिए। उसके बाद जमीन को समतल करके जैविक खाद डालना चाहिए। भुरभुरी मिट्टी में ड्रैगन फ्रूट के पेड़ से कलम को काटकर लगाया जाता है।

ड्रैगन फ्रूट

पौधों को लगाने के लिए करीब 70 सेंटीमीटर गहरा व 60 सेंटीमीटर चौड़ा गड्ढा खोद लिया जाता है। कलम को लगाते समय मिट्टी डालने के बाद 100 ग्राम सुपर फास्फेट डालना चाहिए। इसके बगल सीमेंट के पोल लगाया जाता है। इस पर लता फैलती है। एक वर्ष में फल आना शुरू हो जाते हैं। अच्छी बात यह है कि इसमें कोई रोग नहीं लगता।

जैविक खेती और डेयरी फार्मिंग से 30 लाख रुपए सलाना कमा रहा यह किसान, पीएम मोदी कर चुके हैं सम्मानित

2 गायों के साथ डेयरी फार्मिंग की शुरुआत करने वाले जयराम के पास आज 60 से अधिक गाय हैं. 30 एकड़ भूमि में से 9 एकड़ पर जैविक खेती और दुग्ध उत्पादन करने वाले इस किसान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम रहते हुए भी सम्मानित कर चुके हैं.

जैविक खेती और डेयरी फार्मिंग से 30 लाख रुपए सलाना कमा रहा यह किसान, पीएम मोदी कर चुके हैं सम्मानित

मध्य प्रदेश (Madhya अब कमा रहे लाखों रुपए Pradesh) के बैतूल में एक किसान ने खेती को लाभ का धंधा बना दिया है. बैतूल के बघोली गांव में रहने वाले जयराम गायकवाड पढ़े-लिखे किसान हैं. उन्होंने एमए इतिहास से की है. पढ़ाई के बाद उनको 3 सरकारी नौकरी का ऑफर मिला था, लेकिन उन्होंने इन नौकरी को ठुकरा दिया और खेती को चुना. पारंपरिक खेती की जगह उन्होंने कुछ अलग चुना. उन्होंने खेती को चुना. आज वे जैविक खेती (Organic Farming) और डेयरी फार्मिंग से 30 लाख रुपए सालाना कमा रहे हैं. जयराम का जब यह सफर अब कमा रहे लाखों रुपए शुरू हुआ तो उनके पास 2 गाय थी और 30 एकड़ खेत. उन्होंने डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming) की शुरुआत की और आज 60 से अधिक गायों के मालिक हैं. 30 एकड़ भूमि में से 9 एकड़ पर जैविक खेती और दुग्ध उत्पादन करने वाले इस किसान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम रहते हुए भी सम्मानित कर चुके हैं.

54 साल के किसान जयराम के पिता पारंपरिक खेती किया करते थे. पढ़ाई के दौरान उन्हें CRPF में नौकरी का मौका मिला. इसके बाद आर्मी और फिर रेलवे में क्लर्क. जयराम का मन नौकरी करने का तो हुआ, लेकिन वे अपनी माटी को छोड़ नहीं पाए. उन्होंने नौकरी छोड़कर खेती करने का निर्णय लिया. उनका एक बेटा लोकेश गायकवाड भी उन्हीं की राह पर चलते हुए रीवा वेटनरी कॉलेज से ग्रेजुएशन कर अब कमा रहे लाखों रुपए रहा है.

रासायनिक खाद का नहीं करते इस्तेमाल

जयराम ने बताया कि खेती को जैविक तरीके से आधुनिक बनाने का आइडिया उन्हें कृषि विभाग के टूर प्रोग्राम और खुद की जिज्ञासा से आया. वह अपने भाइयों के साथ 30 एकड़ खेत में केमिकल्स और फर्टिलाइजर्स का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं करते. गाय के गोबर से बनी वर्मी कंपोस्ट खाद से ही खेती करते हैं. 30 में से 9 एकड़ में तो सिर्फ गेहूं और गन्ने की खेती होती है. जैविक खेती की वजह उनका गेहूं 30 रुपए किलो बिकता है. वहीं, गुड़ की कीमत 60 रुपए किलो है. इसके अलावा वे बाकी खेत में टमाटर, बैंगन समेत अन्य फल और सब्जियां उगाते हैं. उनकी सालाना कमाई 30 लाख रुपए है .

जयराम ने वर्ष 2012 में 2 गायों से गौपालन की शुरुआत की थी, जिसके बाद उन्होंने खेती के साथ-साथ गोपालन को अपना जुनून बना लिया. महज 10 साल में वह 60 से ज्यादा हाइब्रिड और देसी गाय सहित कई बछड़ों के मालिक बन गए. वे गोबर गैस के जरिए घरेलू गैस और बिजली बनाते हैं. साथ ही गोबर से वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाकर अपनी फसलों में जान डालते हैं.

गोबर गैस का करते हैं अपने काम में इस्तेमाल

उन्होंने गायों के लिए शेड का निर्माण कुछ इस तरह से कराया है कि जानवरों का वेस्ट नालियों के जरिए सीधे शेड के पीछे बने गोबर अब कमा रहे लाखों रुपए गैस प्लांट में जमा होता है. गैस प्लांट से बचा वेस्ट आगे बने टैंकों में चला जाता है, जो वर्मी कम्पोस्ट की प्रारंभिक प्रक्रिया है. यहां से यह वेस्ट जैविक खाद के रूप में तैयार हो जाता है. यही खाद उनकी फसलों के लिए रामबाण औषधि बन जाती है. उन्होंने अपने यहां 8 लड़कों को भी रोजगार दिया है.

ये भी पढ़ें

भारत से एक्सपोर्ट बैन के बाद विदेशी बाजारों में गेहूं की कीमत रिकॉर्ड ऊंचाई पर, G7 देशों ने की दिल्ली की आलोचना तो चीन आया साथ

भारत से एक्सपोर्ट बैन के बाद विदेशी बाजारों में गेहूं की कीमत रिकॉर्ड ऊंचाई पर, G7 देशों ने की दिल्ली की आलोचना तो चीन आया साथ

सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने से बच जाएंगे किसान, UP सरकार लॉन्च कर रही खास पोर्टल, मिलेंगी तमाम सुविधाएं

सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने से बच जाएंगे किसान, UP सरकार लॉन्च कर रही खास पोर्टल, मिलेंगी तमाम सुविधाएं

बिना तालाब के इस खास विधि से करें मछली पालन, लागत से पांच गुना अधिक तक होगी कमाई

बिना तालाब के इस खास विधि से करें मछली पालन, लागत से पांच गुना अधिक तक होगी कमाई

कई मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने के बाद शुरू किया बकरी पालन, अब कर रहे लाखों में कमाई

कई मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने के बाद शुरू किया बकरी पालन, अब कर रहे लाखों में कमाई

जयराम ने ये भी बताया कि रोज 150 लीटर दूध का उत्पादन होता है. इससे वह मावा, पनीर, दही और घी सहित अन्य डेयरी प्रोडक्ट्स बनाते हैं. जयराम गोबर गैस से वह बिजली का उत्पादन कर जनरेटर चलाते हैं, जिससे मावा मशीन चलती है. दाना बारीक करने के लिए चक्की चलाते हैं. जयराम का कहना है कि उनके यहां 60 गायों से रोज गोबर निकलता है, जिससे बड़ी मात्रा में वर्मी कंपोस्ट बनता है और महीने में 300 क्विंटल खाद तैयार हो जाता है.

रेटिंग: 4.66
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 93
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा| अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *