बाजार के लिए वैश्विक रणनीति

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एक वैश्विक विपणन रणनीति क्या है? शेयर्स एंड बचाता है सामान्य शब्दों में, एक वैश्विक विपणन रणनीति एक व्यापार दुनिया भर में अपने उत्पादों और कंपनी के विपणन में लेता दृष्टिकोण है। अवधि भी एक कंपनी संदेश अनुरूप है जिसमें दुनिया भर में विपणन रणनीति का एक विशिष्ट रूप का वर्णन करने के लिए प्रयोग किया जाता है। अन्य लोग पढ़ रहे हैं वैश्विक विपणन के प्रकार एक कंपनी के कई देशों में चल रही है, यह लागू करता विपणन रणनीति इसकी सफलता या विफलता में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। वैश्विक विपणन रणनीतियों में से दो सामान्य प्रकार वैश्विक, या सार्वभौमिक, दृष्टिकोण और अंतरराष्ट्रीय या multidomestic दृष्टिकोण हैं। प्राथमिक अंतर एक वैश्विक रणनीति आप लगातार पदोन्नति द्वारा समर्थित एक ही मूल उत्पादों और सेवाओं की पेशकश का मतलब है, और multidomestic आप प्रत्येक विशेष रूप से बाजार फिट करने के लिए अपने विपणन दर्जी का मतलब है। वैश्विक विपणन पेशेवरों और बुरा एक multidomestic दृष्टिकोण के सापेक्ष, एक वैश्विक विपणन रणनीति प्राथमिक शक्तियों और कमजोरियों कुछ है। मुख्य ताकत में शामिल हैं: लागत कुशलता: एक वैश्विक ब्रांड प्रदान बहुत अधिक लागत प्रभावी प्रत्येक बाजार के लिए अनुकूल से अधिक है। आप एक ही माल को विकसित करने और कई बाजारों में एक विलक्षण रणनीति के साथ उन्हें प्रोत्साहित कर सकते हैं, तो आप प्रत्येक देश के लिए विज्ञापन अभियानों को डिजाइन करने के लिए नहीं है। सार्वभौमिकता: एक सुसंगत ब्रांड छवि बनाने के विपणन में महत्वपूर्ण है। प्रत्येक बाजार में अलग-अलग करने के लिए विरोध के रूप में एक वैश्विक रणनीति के साथ, आप, सार्वभौमिक रूप में अपने ब्रांड छवि को देखने। यह दृष्टिकोण समान पसन्द है कि देशों में अच्छी तरह से काम करता है। संसाधनों और सांस्कृतिक मूल्यों। प्राथमिक कमियां में शामिल हैं: अनुकूलन का अभाव: अपने स्वभाव से, आप एक वैश्विक संदेश को अनुकूलित नहीं है। इसलिए, इस रणनीति के प्रत्येक देश में अनुकूलित विपणन प्रयासों के लिए अनुमति नहीं है। व्यापार लागत लाभ के लिए एक व्यापार बंद के रूप में अनुकूलन की इस कमी को स्वीकार करता है। बाजार सीमाएं: एक वैश्विक रणनीति के लिए चयन भी आप में प्रवेश संख्या और देशों के प्रकार सीमित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, 10 से 12 देशों में एक ब्रांड बिल्डिंग कि ब्रांड छवि काम नहीं होता है, जहां बाजार में प्रवेश करने के लिए अपनी क्षमता को बाधित कर सकते हैं। मान्यता प्राप्त है और दुनिया भर में लगातार इस्तेमाल एक उत्पाद के एक वैश्विक विपणन रणनीति तैयार करने के लिए योगदान देता है।
बाजार के लिए वैश्विक रणनीति
प्लास्टिक उत्पादन और उसके बाद इससे होने वाला प्रदूषण जलवायु में बदलाव और जैव विविधता के नुकसान के लिए जिम्मेवार है। प्लास्टिक इस सप्ताह मिस्र में कॉप 27 में मुख्य चर्चा का विषय रहा।
प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने के लिए अपनी आगामी वैश्विक संधि में संयुक्त राष्ट्र से 2040 तक एक साहसिक संकल्प करने और नए प्लास्टिक प्रदूषण को शून्य पर लाने का लक्ष्य निर्धारित करने का आग्रह किया है।
पोर्ट्समाउथ विश्वविद्यालय में ग्लोबल प्लास्टिक पॉलिसी सेंटर के निदेशक प्रोफेसर स्टीव फ्लेचर ने महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। विश्वविद्यालय की टीम ने प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए वैश्विक समझौते की संभावित संरचना और सामग्री सहित प्लास्टिक नीति पर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, जी20 और विश्व बैंक को सलाह दी है।
प्रोफेसर स्टीव फ्लेचर कहते हैं, संधि का लक्ष्य महत्वाकांक्षी और सार्थक होना चाहिए, हम संयुक्त राष्ट्र से 2040 तक नए प्लास्टिक प्रदूषण को शून्य प्रतिशत करने का आह्वान कर रहे हैं। उन्होंने कहा इसे हासिल करने के लिए, नीति निर्माताओं, व्यवसायों, शोधकर्ताओं और व्यापक समाज को इसमें शामिल होना होगा।
मौजूदा उपलब्ध सबसे अच्छी तकनीक और अभ्यास से परे और प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए एक साझा वैश्विक रणनीति विकसित करने के लिए उनकी सोच में क्रांतिकारी बदलाव लाना है।
वैश्विक संधि का उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करना है, लेकिन अभी तक कोई निर्धारित लक्ष्य नहीं है, यह एक ऐसी चीज है जिस पर अभी भी चल रही बातचीत के दौरान चर्चा की जानी है। प्रोफेसर फ्लेचर कहते हैं, वैश्विक प्लास्टिक संधि को एक ऐसे लक्ष्य की आवश्यकता है जो स्पष्ट रूप से परिभाषित हो।
वर्तमान बाजार के लिए वैश्विक रणनीति में, इस बारे में अस्पष्टता है कि 'प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने' का वास्तव में क्या अर्थ है। संधि के काम करने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि एक ही लक्ष्य और एक सहमति हो।
अध्ययन के मुताबिक एक कड़े लक्ष्य के साथ-साथ प्रगति को मापने के लिए मैट्रिक्स को संरेखित करने की आवश्यकता है और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों को राष्ट्रीय स्तर पर सामंजस्यपूर्ण कार्रवाई द्वारा वितरित किया जाना चाहिए। यह माना जाता है कि इन तीन चीजों को एक साथ मिलाकर एक प्रणालीगत बदलाव की ओर ले जाना चाहिए जो प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने के लिए आवश्यक है।
संधि को आगे बढ़ाने के लिए लगभग 200 देशों ने वायदा किया है। विभिन्न वित्तीय, सामाजिक और राजनीतिक प्राथमिकताओं और बाधाओं के साथ काम करने वाले प्रत्येक देश के साथ, यूनिवर्सिटी ऑफ पोर्ट्समाउथ की टीम का मानना है कि सरकारों को प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने की अपने काम पर अधिक सक्रिय रहना होगा।
ग्लोबल प्लास्टिक पुलिस सेंटर के प्रोफेसर फ्लेचर और टीम का कहना है कि वर्तमान राष्ट्रीय प्लास्टिक नीतियां प्लास्टिक प्रदूषण के एक हिस्से का ही समाधान करती हैं। उनका मानना है कि महत्वाकांक्षा सीमित है और नीतियां अक्सर समस्या के मुख्य कारण से निपटने के बजाय प्लास्टिक के प्रदूषण बनने से पहले केवल समय बढ़ाती हैं।
शोधकर्ता विश्व स्तर पर समान दृष्टिकोण का आह्वान कर रहे हैं जो अंतरराष्ट्रीय प्लास्टिक मूल्य श्रृंखला की पूरे हिस्से को नियंत्रित करता है और गलत प्लास्टिक नीतियों के पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक प्रभावों का सामना करते हैं।
पोर्ट्समाउथ विश्वविद्यालय के ग्लोबल प्लास्टिक पॉलिसी सेंटर के प्रमुख अध्ययनकर्ता अंताया मार्च ने चुनौतियों को दूर करने के तरीके बताए। प्लास्टिक अत्यंत उपयोगी है, लेकिन कुप्रबंधन ने वैश्विक प्रदूषण संकट को जन्म दिया है जो जलवायु परिवर्तन को बढ़ा रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण को मूल रूप से कम करने या समाप्त करने के लिए सर्कुलर प्लास्टिक अर्थव्यवस्था की आवश्यकता है।
शोध सहयोगी का मानना है कि स्थानीय मुद्दे अक्सर अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का परिणाम होते हैं। मार्च कहती हैं कि प्लास्टिक के महत्व की श्रृंखलाएं आम तौर पर विभिन्न कानूनों, नियमों और मानदंडों के साथ कई न्यायालयों से गुजरती हैं।
सबसे खराब परिस्थिति में वे अंतरराष्ट्रीय कानूनी और नीतिगत विसंगतियां पैदा करते हैं जो प्लास्टिक कचरे को सुरक्षित रूप से निपटाने के लिए कम से कम क्षमता वाले स्थानों पर धकेलते हैं।
यह अनुमान लगाया गया है कि प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए मौजूदा वादों से सामान्य रूप से व्यापार की तुलना में 2040 तक पर्यावरण में प्रवेश करने वाले प्लास्टिक में लगभग 7 प्रतिशत की कमी आएगी। यही कारण है कि हमें एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य की आवश्यकता है, जिसके लिए सभी राष्ट्र काम कर सकें।
प्रोफेसर फ्लेचर कहते हैं, यह एक बड़ी उपलब्धि है कि प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक कानूनी रूप से अनिवार्य संधि का विकास चल रहा है। लेकिन प्रभावी होने के लिए, वैश्विक संधि को साक्ष्य का समर्थन करने के लिए पारदर्शिता और सहयोग के नए स्तर की आवश्यकता है।
प्रणाली में परिवर्तन की जरूरत है जो मौलिक रूप से हमारे व्यवहार और प्लास्टिक के उपयोग करने के तरीके को बदल दे। यह शोध नेचर रिव्यु अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है।
रेपो रेट में अब तक 1.90 फीसदी की बढ़त: ऑटो, बैंक, रक्षा सेक्टर में निवेश की बनाएं रणनीति
महंगाई पर काबू पाने की रणनीति के तहत रिजर्व बैंक लगातार दरें बढ़ा रहा है। इससे फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज दरें बढ़ गई हैं। हालांकि, बावजूद इसके शेयर बाजार रिटर्न देने में अच्छा साबित हो सकता है। ऐसे में किस-किस सेक्टर में निवेश करने का यह सही समय है, उसकी गणित बताती अजीत सिंह की रिपोर्ट-
विश्लेषकों का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने लगातार चार बार में रेपो दर में 1.90 फीसदी की बढ़त कर वैश्विक केंद्रीय बैंकों की आक्रामक मौद्रिक नीतियों का समर्थन किया है। आगे भी कुछ समय तक दरों में इसी तरह की आक्रामक नीति अपनाई जाएगी, जब तक कि महंगाई दर केंद्रीय बैंकों के लक्ष्य के अंदर नहीं आ जाती है। अब तक जो घटनाएं घट चुकी हैं, वे आने वाले दिनों में वैश्विक स्तर पर होने वाले किसी बड़े बदलाव के संकेत दे रहे हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं होगी कि अगर मौजूदा रिकवरी में तेजी आती है तो निफ्टी निकट भविष्य में 17,500 के आस-पास आ जाएगा। ऐसे में पोर्टफोलियो रणनीति की बात करें तो बाजार के मौजूदा उथल-पुथल के माहौल में ऑटो, बैंक, रक्षा, इंजीनियरिंग, रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में निवेशकों को दांव लगाना चाहिए। ये ऐसे क्षेत्र हैं जो रक्षात्मक और अर्थव्यवस्था की वृद्धि होने पर अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।
पहले ही बाजार पर पड़ चुका है दरों को बढ़ाने का असर
इस बार जब आरबीआई ने रेपो दर में 0.50 फीसदी का इजाफा किया तो इसका बाजार पर सकारात्मक असर देखा गया। सेंसेक्स एक हजार अंक से ऊपर बढ़कर बंद हुआ। साथ ही रुपया भी मजबूत हुआ। दरअसल, पहले से ही अनुमान था कि आरबीआई दरों को बढ़ाएगा। साथ ही तीन बार पहले भी दरें बढ़ीं थीं, जिनका बाजार पर जो भी असर होना था वो हुआ। इसलिए इस बार बाजार ने आरबीआई के फैसले को सकारात्मक लिया बाजार के लिए वैश्विक रणनीति और बाजार में भयंकर तेजी देखी गई।
दूसरी छमाही में स्थितियां सुधरने की उम्मीद
आरबीआई का यह कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था स्थिर बनी हुई है। पहली तिमाही में वास्तविक जीडीपी वृद्धि आरबीआई की अपेक्षाओं से पीछे रही है। हालांकि, क्षमताओं के बेहतर उपयोग और पूंजीगत खर्च पर सरकार जोर दे रही है। ऐसे में दूसरी छमाही यानी अक्तूबर से मार्च तक में स्थितियां सुधरने की उम्मीद है। बावजूद इसके खुदरा महंगाई आरबीआई के दायरे से ऊपर बनी हुई है, इसलिए आगे इसकी राह कैसी होगी, इस पर अभी अनिश्चितताओं के बादल हैं।
निवेशक सुरक्षित रूख अपना रहे हैं
निवेशकों ने सुरक्षात्मक रूख अपनाना शुरू कर दिया है। अमेरिकी डॉलर दो दशक के उच्च स्तर पर तेजी से मजबूत हुआ है। कई उभरते हुए बाजारों की मुद्राओं की साख हाल के समय निचले स्तर तक गिर गई है। उभरते बाजार की अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक विकास में काफी चुनौतियों का सामना कर रही हैं। ऐसे माहौल में निवेशकों को लंबे समय वाले डेट फंड से दूर रहना चाहिए। क्योंकि डेट फंड में उतार-चढ़ाव रह सकता है।
बैंक जमा पर ज्यादा ब्याज
आरबीआई की घोषणा के बाद बैंक के जमा पर ज्यादा ब्याज मिलने की उम्मीद है। हालांकि, लंबे समय यानी दो से तीन साल की अवधि में बेहतर रिटर्न पाने के लिए शेयर बाजार ही सही हैं। भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था का सीधा असर बाजार पर होता है। ऐसे में थोड़े समय के लिए निवेशक भले ही बैंक जमा की ओर जा सकते हैं, पर लंबे समय में उनको इक्विटी का ही रास्ता अपनाना होगा।
बैंकिंग सेक्टर के लिए सकारात्मक
आरबीआई वर्तमान में प्रावधान के लिए बैंकों द्वारा अपनाए जाने वाले संभावित घाटे के नजरिए पर एक चर्चा पत्र जारी करेगा। यह एक रूढ़िवादी नजरिया प्रतीत हो रहा है। इससे बैंकों की आय का मार्ग आसान हो जाएगा। बैंकिंग प्रणाली में जून-जुलाई के दौरान 3.8 लाख करोड़ रुपये की अधिक तरलता थी। अगस्त -सितंबर में यह 2.3 लाख करोड़ रुपये तक कम हो गई। इसके लिए भी आरबीआई कोशिश कर रहा है।
30-35 बीपीएस की और बढ़ोतरी होगी
आरबीआई अगली मौद्रिक नीति की बैठक में एक बार और दरों को 0.35 फीसदी तक बढ़ा सकता है। ऐसे में निवेशक बैंक जमा पर ज्यादा ब्याज का लाभ ले सकते हैं। बैंक जमा पर ब्याज अब एक उचित स्तर पर पहुंच जाएगा।
- गौरव दुआ, पूंजी बाजार रणनीति प्रमुख, शेयरखान बीएनपी पारिबा
विस्तार
विश्लेषकों का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने लगातार चार बार में रेपो दर में 1.90 फीसदी की बढ़त कर वैश्विक केंद्रीय बैंकों की आक्रामक मौद्रिक नीतियों का समर्थन किया है। आगे भी कुछ समय तक दरों में इसी तरह की आक्रामक नीति अपनाई जाएगी, जब तक कि महंगाई दर केंद्रीय बैंकों के लक्ष्य के अंदर नहीं आ जाती है। अब तक जो घटनाएं घट चुकी हैं, वे आने वाले दिनों में वैश्विक स्तर पर होने वाले किसी बड़े बदलाव के संकेत दे रहे हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं होगी कि अगर मौजूदा रिकवरी में तेजी आती है तो निफ्टी निकट भविष्य में 17,500 के आस-पास आ जाएगा। ऐसे में पोर्टफोलियो रणनीति की बात करें तो बाजार के मौजूदा उथल-पुथल के माहौल में ऑटो, बैंक, रक्षा, इंजीनियरिंग, रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में निवेशकों को दांव लगाना चाहिए। ये ऐसे क्षेत्र हैं जो रक्षात्मक और अर्थव्यवस्था की वृद्धि होने पर अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।
पहले ही बाजार पर पड़ चुका है दरों को बढ़ाने का असर
इस बार जब आरबीआई ने रेपो दर में 0.50 फीसदी का इजाफा किया तो इसका बाजार पर सकारात्मक असर देखा गया। सेंसेक्स एक हजार अंक से ऊपर बढ़कर बंद हुआ। साथ ही रुपया भी मजबूत हुआ। दरअसल, पहले से ही अनुमान था कि आरबीआई दरों को बढ़ाएगा। साथ ही तीन बार पहले भी दरें बढ़ीं थीं, जिनका बाजार पर जो भी असर होना था वो हुआ। इसलिए इस बार बाजार ने आरबीआई के फैसले को सकारात्मक लिया और बाजार में भयंकर तेजी देखी गई।
दूसरी छमाही में स्थितियां सुधरने की उम्मीद
आरबीआई का यह कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था स्थिर बनी हुई है। पहली तिमाही में वास्तविक जीडीपी वृद्धि आरबीआई की अपेक्षाओं से पीछे रही है। हालांकि, क्षमताओं के बेहतर उपयोग और पूंजीगत खर्च पर सरकार जोर दे रही है। ऐसे में दूसरी छमाही यानी अक्तूबर से मार्च तक में स्थितियां सुधरने की उम्मीद है। बावजूद इसके खुदरा महंगाई आरबीआई के दायरे से ऊपर बनी हुई है, इसलिए आगे इसकी राह कैसी होगी, इस पर अभी अनिश्चितताओं के बादल हैं।
निवेशक सुरक्षित रूख अपना रहे हैं
निवेशकों ने सुरक्षात्मक रूख अपनाना शुरू कर दिया है। अमेरिकी डॉलर दो दशक के उच्च स्तर पर तेजी से मजबूत बाजार के लिए वैश्विक रणनीति हुआ है। कई उभरते हुए बाजारों की मुद्राओं की साख हाल के समय निचले स्तर तक गिर गई है। उभरते बाजार की अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक विकास में काफी चुनौतियों का सामना कर रही हैं। ऐसे माहौल में निवेशकों को लंबे समय वाले डेट फंड से दूर रहना चाहिए। क्योंकि डेट फंड में उतार-चढ़ाव रह सकता है।
बैंक जमा पर ज्यादा ब्याज
आरबीआई की घोषणा के बाद बैंक के जमा पर ज्यादा ब्याज मिलने की उम्मीद है। हालांकि, लंबे समय यानी दो से तीन साल की अवधि में बेहतर रिटर्न पाने के लिए शेयर बाजार ही सही हैं। भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था का सीधा असर बाजार पर होता है। ऐसे में थोड़े समय के लिए निवेशक भले ही बैंक जमा की ओर जा सकते हैं, पर लंबे समय में उनको इक्विटी का ही रास्ता अपनाना होगा।
बैंकिंग सेक्टर के लिए सकारात्मक
आरबीआई वर्तमान में प्रावधान के लिए बैंकों द्वारा अपनाए जाने वाले संभावित घाटे के नजरिए पर एक चर्चा पत्र जारी करेगा। यह एक रूढ़िवादी नजरिया प्रतीत हो रहा है। इससे बैंकों की आय का मार्ग आसान हो जाएगा। बैंकिंग प्रणाली में जून-जुलाई के दौरान 3.8 लाख करोड़ रुपये की अधिक तरलता थी। अगस्त -सितंबर में यह 2.3 लाख करोड़ रुपये तक कम हो गई। इसके लिए भी आरबीआई कोशिश कर रहा है।
30-35 बीपीएस की और बढ़ोतरी होगी
आरबीआई अगली मौद्रिक नीति की बैठक में एक बार और दरों को 0.35 फीसदी तक बढ़ा सकता है। ऐसे में निवेशक बैंक जमा पर ज्यादा ब्याज का लाभ ले सकते हैं। बैंक जमा पर ब्याज अब एक उचित स्तर पर पहुंच जाएगा।
- गौरव दुआ, पूंजी बाजार रणनीति प्रमुख, शेयरखान बीएनपी पारिबा
वैश्विक बाजार में गेहूं की कीमतों में भारी उछाल, पढ़ें पूरी जानकरी
नई दिल्ली: भारत ने गेंहू के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया जिसके बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमतों में बड़ा उछाल आया है. वैश्विक बाजार में गेहूं की आपूर्ति बाधित होने से खाद्य संकट गहराता जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में मिलने वाले एक बुशल (1 Bushel- 27.216 KG) गेहूं की कीमत शिकागो में 5.9 फीसदी तक बढ़कर 12.47 डॉलर हो गई है. भारत की तरफ से निर्यात प्रतिबंध के बाद वैश्विक बाजार में गेहूं की कीमतों में लगभग 6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.
रूस और यूक्रेन वैश्विक बाजार में गेहूं के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में से एक हैं. दोनों देश मिलकर दुनिया के गेहूं निर्यात जरूरत के एक तिहाई हिस्से की पूर्ति करते हैं. फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के कारण इस वर्ष गेहूं की कीमतों में 60 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हुई है.
भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है. पिछले साल खराब मौसम के कारण गेहूं के बड़े उत्पादक, जिनमें यूक्रेन भी शामिल था, वैश्विक बाजार में गेहूं की पर्याप्त आपूर्ति नहीं कर पाए थे. लेकिन भारत में गेहूं की अच्छी पैदावार हुई जिससे वैश्विक बाजार में आपूर्ति नहीं रूकी और कीमतों में बढ़ोतरी भी नहीं हुई.
लेकिन, इस साल भारत की घरेलू महंगाई 8 वर्षों के अपने उच्चतम स्तर पर है और देश में गेहूं की कीमतें बढ़ गई हैं. इसे देखते हुए सरकार ने गेहूं के निर्यात को रोक दिया है. भारत में पिछले दो महीनों में काफी गर्मी पड़ी है जिससे तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक चला गया है. इससे गेहूं की फसल को नुकसान हुआ है. गेहूं उत्पादक राज्यों में गर्म हवाओं ने फसल को कमजोर कर दिया है. भारत में मानसून के आने में भी हफ्तों लग सकते हैं.
निर्यात पर प्रतिबंध को लेकर भारत सरकार का कहना है कि कुछ अपवादों को छोड़कर उसने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है. जिन देशों के साथ गेहूं को लेकर डील हो गई है और जो कमजोर देश खाद्य सुरक्षा के लिए गेंहू की मांग करेंगे, उन्हें छोड़कर भारत अब किसी देश को गेहूं का बाजार के लिए वैश्विक रणनीति निर्यात नहीं करेगा.
ऑस्ट्रेलियाई बैंक वेस्टपैक में बाजार रणनीति के वैश्विक प्रमुख रॉबर्ट रेनी भारत के गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध को लेकर कहते हैं, 'इस प्रतिबंध से विशेष रूप से विकासशील देशों के लोगों के लिए भोजन की कमी का जोखिम बढ़ जाएगा.'
कॉमनवेल्थ बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया में कृषि रणनीति के निदेशक टोबिन गोरे का कहना है कि गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध वैश्विक बाजारों के लिए एक बड़ा बदलाव होगा.
गोरे ने कहा, 'इस स्थिति से निपटने के लिए हमें भारतीय गेहूं की जगह किसी और जगह से गेहूं लेकर इस कमी को पूरा करना होगा. मुझे डर है कि ये प्रतिबंध वैश्विक बाजार में गेहूं को लेकर शुरू में हड़बड़ाहट पैदा करेगा. कमी का आकलन करने के लिए बाजार के लिए वैश्विक रणनीति बाजार को कुछ समय लगेगा.'
गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध का भारत का ये फैसला अमेरिकी कृषि विभाग के एक पूर्वानुमान के कुछ ही दिनों बाद आया है. पूर्वानुमान में कहा गया था कि 2022-23 में चार साल में पहली बार वैश्विक गेहूं उत्पादन में गिरावट आएगी. संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम ने भी इस महीने कहा था कि यूक्रेन में युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की नाजुकता को अचानक से उजागर कर दिया है और खाद्य सुरक्षा पर इसके गंभीर परिणाम होंगे.
वेस्टपैक के रॉबर्ट रेनी ने कहा है कि भारतीय प्रतिबंध का असर अफ्रीका और मध्य पूर्व के विकासशील बाजारों पर सबसे ज्यादा असर पड़ने की संभावना है. उन्होंने कहा, 'यह मानवीय मुद्दे हैं जो हमारे सामने हैं. दुर्भाग्य से, हमने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है. मुझे लगता है कि इस पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है.'
मल्टी असेट रणनीति का है साल 2022, निवेशकों को मिल सकता है बेहतर रिटर्न
घरेलू सेक्टरों जैसे ऑटो, बैंकों, टेलीकॉम और कुछ अन्य रक्षात्मक क्षेत्रों पर केंद्रित हैं और फार्मा और हेल्थकेयर जैसे क्षेत्रों की ओर भी बढ़ सकते हैं.
TV9 Bharatvarsh | Edited By: संजीत कुमार
Updated on: Feb 13, 2022 | 8:51 AM
पिछले दशक के दौरान हमने आसान नकदी और वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा दरों में कटौती की स्थिति देखी है. इसकी वजह से सामान्य रूप से इक्विटी बाजार को प्रदर्शन के लिए सकारात्मक माहौल मिला. अगर विशेष रूप से देखें तो पिछले 1 साल के दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं (Global Economy) ने प्रचुर मात्रा में नकदी मुहैया कराई, जिससे कोविड-19 महामारी (COVID-19 Pandemic) से उपजी वृद्धि संबंधी चुनौतियों पर काबू पाया जा सके. ज्यादातर उभरती हुई और विकसित अर्थव्यवस्थाएं आज डिफ्लेशन से रिफ्लेशन की ओर बढ़ने की गवाह बन रही हैं. पर्याप्त मात्रा में नकदी के कारण बढ़ती महंगाई (Inflation) पर काबू पाने के लिए वैश्विक केंद्रीय बैंकों व सरकारों ने धीरे-धीरे बाजार से अतिरिक्त नकदी वापस लेने के संकेत दिए हैं. यह ऐसा कदम है, जिससे भारत सहित वैश्विक बाजारों पर असर पड़ सकता है.
इन परिस्थितियों में जब हम भारतीय बाजारों को वैल्युएशन, सायकल, ट्रिगर्स और सेंटीमेंट (वीसीटीएस) फ्रेमवर्क के आधार पर देखते हैं तो भारत मजबूत पायदान पर नजर आता है.
वैल्युएशन- अगर हम संपत्तियों को उनके दीर्घावधि औसत से तुलना करें तो सभी संपत्ति वर्ग का मूल्यांकन बेहतर नजर आता है. ऐतिहासिक रूप से देखें तो जब भी किसी संपत्ति वर्ग का मूल्य पूरी तरह निर्धारित होता है तो वे उतार-चढ़ाव वाले होते हैं. हमारा इक्विटी वैल्युएशन इंडेक्स दिखाता है कि मूल्यांकन हल्का नहीं है और यह इशारा करता है कि इक्विटी में दीर्घावधि पहलुओं के हिसाब से निवेश किया जाना चाहिए, जबकि संपत्ति आवंटन ढांचे का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए.
सायकल- भारत में व्यापार चक्र अनुकूल हो गया है जो इस मोड़ पर एक प्रमुख सकारात्मक बात है. कंपनियों ने अपना कर्ज घटाया है, सरकार का राजकोषीय घाटा नियंत्रण में है और वित्तीय क्षेत्र के गैर निष्पादित कर्ज का चक्र भी नियंत्रण में है. विभिन्न सरकारी पहलों की घोषणाएं बुनियादी ढांचा विकास व अन्य क्षेत्रों से से जुड़ी हुई हैं, जिससे साफ संकेत मिलता है कि सरकार की मंशा वृद्धि को समर्थन देने की है. कॉर्पोरेट कमाई में वृद्धि भी पिछले वित्त वर्ष के अंतिम समय के बाद से टिकाऊ तरीके से बहाल हुई है .
ट्रिगर्स- अमेरिकी फेड दरों (US Fed Rates) में बढ़ोतरी की मात्रा व गति, अमेरिका के 10 साल ट्रेजरी यील्ड्स का अनुमान और कोविड की नई किस्म की गंभीरता और इसका असर प्रमुख ट्रिगर्स हैं, जिन पर नजर रखने की जरूरत है.
सेंटीमेंट्स- पिछले 6 महीनों के दौरान निवेशक आईपीओ (IPO) में निवेश कर रहे हैं, जिसमें आक्रामक कीमत वाले आईपीओ भी शामिल हैं, जो सेंटीमेंट के हिसाब से चिंताजनक बात है.
मार्केट आउटलुक
हमारे विचार से इक्विटी बाजार लंबी अवधि तक बेहतर काम कर सकता है, लेकिन मध्यावधि के पहलुओं के हिसाब से हम सावधानी बरत रहे हैं. घरेलू और वैश्विक बाजारों में गतिशील वातावरण को देखते हुए हमारा मानना है कि मौजूदा परिदृश्य सक्रिय निवेश प्रबंधन और मल्टी असेट रणनीतियों का माहौल बना रहा है, जिससे कम अवधि के हिसाब से निवेशकों को बेहतर नतीजे मिल सकते हैं.
इस साल के दौरान बिना कमाई के आईपीओ के विकल्प, डेरिवेटिव सेग्मेंट के माध्यम से ज्यादा लिवरेज और केवल इक्विटी में निेवेश कर संपत्ति के आवंटन की उपेक्षा (डेट, गोल्ड व नकदी की उपेक्षा) करने जैसे कदमों से निवेशकों को निवेश का नकारात्मक अनुभव हो सकता है. अगर आपके पोर्टफोलियो में जोखिम वाली संपत्तियों में ज्यादा निवेश है तो यह उचित समय नजर आता है जब आप जोखिम में कमी कर दें.
एकल संपत्ति वर्ग पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय ऐसी रणनीति अपनाना उचित रहेगा, जो निवेशक को विभिन्न संपत्ति वर्ग में निवेश की अनुमति प्रदान करे. अगर आप इक्विटी संबंधी निवेश पर विचार कर रहे है तो ऐसी श्रेणी की योजना का विकल्प चुनें, जिसमें बाजार पूंजीकरण और थीमों में निवेश को लेकर लचीलापन हो.
सेक्टर के हिसाब से देखें तो हम घरेलू सेक्टरों जैसे ऑटो, बैंकों, टेलीकॉम और कुछ अन्य रक्षात्मक क्षेत्रों पर केंद्रित हैं और फार्मा और हेल्थकेयर जैसे क्षेत्रों की ओर भी बढ़ सकते हैं. हम कंज्यूमर नॉन-ड्यूरेबल्स की उपेक्षा कर सकते हैं, क्योंकि हमारा मानना है कि महामारी के असर के बाद आबादी के निचले तबके की ओर नकदी प्रवाह कम है और इसकी वजह से बाजार के लिए वैश्विक रणनीति खपत को लेकर दबाव है.
दीर्घावधि के हिसाब से एक निवेशक के लिए हमारा मानना है कि 2022 सक्रिय प्रबंधन, बड़ी और छोटी रणनीतियों, मल्टी असेट व असेट आवंटन रणनीतियों का साल है. इस साल जो निवेशक पैसे बनाएंगे, बाजार के लिए वैश्विक रणनीति वे ऐसे निवेशक होंगे, जो संपत्ति आवंटन, मुनाफे वाली कंपनियों में निवेश और सभी संपत्ति वर्गों में निवेश पर ध्यान देंगे और साथ ही जोखिमों पर विचार करते हुए और उनकी उपेक्षा न करते हुए नकदी पर ध्यान बनाए रखेंगे.