निवेशकों के लिए अवसर

क्या डेट फंड्स रिस्क फ्री होते हैं?

क्या डेट फंड्स रिस्क फ्री होते हैं?
सांकेतिक तस्वीर।

म्यूचुअल फंड्स क्या हैं? – Mutual Funds kya hain?

म्यूचुअल फंड एक एैसा फंड है जो एैसेट मैनेजमेंट कंपनीस / कंपनीज (एएमसी) द्वारा मैनेज किया जाता है जिसमे ये कंपनीस कई इन्वेस्टर्स से पैसा जमा करती है और स्टॉक, बॉन्ड और शार्ट-टर्म डेट जैसी सिक्युरिटीज में पैसा इन्वेस्ट करती है।

म्यूचुअल फंड की कंबाइंड होल्डिंग्स को पोर्टफोलियो के रूप में जाना जाता है। इन्वेस्टर्स म्यूचुअल फंड के यूनिट्स खरीदते हैं। प्रत्येक यूनिट फंड में इन्वेस्टर के हिस्से के ओनरशिप और इससे होने वाली इनकम का रिप्रजेंटेशन करता है।

म्यूचुअल फंड इन्वेस्टर्स के बीच एक लोकप्रिय विकल्प (पॉपुलर ऑप्शन) हैं क्योंकि वे आम तौर पर निचे दिये गये विशेषताएं प्रदान करते हैं:

फंड प्रोफेशनल तरीके से मैनेज करते हैं:

फंड मैनेजर इन्वेस्टर्स के लिए रिसर्च करते हैं। वे सिक्युरिटीज का सिलेक्शन करते हैं और उनके परफॉरमेंस को मॉनिटर करते हैं।

फंड् diversification:

म्यूचुअल फंड आमतौर पर कई कंपनियों और इंडस्ट्रीज में इन्वेस्ट करते हैं। यह एक कंपनी के फ़ैल होने पर इन्वेस्टर्स के रिस्क को कम करने में मदद करता है।

लिक्विडिटी (Liquidity)

इन्वेस्टर्स आसान तरीके से अपने यूनिट्स को किसी भी समय रिडीम कर सकतें हैं।

इन्वेस्टर्स के पास म्यूचुअल फंड में अपना पैसा लगाने और अपनी संपत्ति बढ़ाने के कई विकल्प हैं। उदाहरण के लिए, इक्विटी (Equity) फंड्स, बॉन्ड फंड्स (फिक्स्ड इनकम फंड्स), डेट फंडस या फिर फंड्स जिनमे दोनों में इन्वेस्ट किया जा सकता हो, याने :बैलेंस फंड्स।

इक्विटी: शेयर्स (कॉमन स्टॉक), म्युचुअल फंड (MF): किसी कंपनी के शेयर खरीदना।

  • इक्विटी शेयरस लिक्विडिटी प्रदान करता; आप इनके वैल्यू बढ़ने पर, इन्हे बेच कर पैसा कमा सकतें है। कैपिटल मार्केट में आसानी से बिकता हैं।
  • अधिक लाभ की स्थिति में इनसे हाई रेट पर प्रॉफिट प्राप्त होता है।
  • इक्विटी शेयर होल्डर्स को कंपनी के मैनेजमेंट को नियंत्रित करने का कलेक्टिव अधिकार देता ह।
  • इक्विटी शेयर होल्डर्स को दो तरह से लाभ मिलता है, वार्षिक डिविडेंट और शेयर होल्डर्स के इन्वेस्टमेंट पर उसके मूल्य में वृद्धि होने के कारन से होने वाला लाभ ।
  • इक्विटी शेयरस में हाईएस्ट रिस्क होता है।
  • म्युचुअल फंड (MF) इसके तुलना में कम रिस्की होता है।
  • बहुत सारे इन्वेस्टर्स का कलेक्टिव फंड, एसेट मैनेजिंग कंपनीज द्वारा, अलग अलग सेक्टर्स के कंपनीज के शेयर्स खरीदने के लिए इन्वेस्ट कर, इन्वेस्टर्स को लाभ दिलाने के उद्देश्य से किया जाता है।
  • डेट फंडस (स्टॉक और एमएफ) : जब किसी कंपनी को फंड्स की ज़रूरत होती है तो वह इन्वेस्टर्स के पास से पैसा उधर के तौर पर लेती है। बदले में, वे एक स्थिर और नियमित इंटरेस्ट इन्वेस्टर्स को देना का वादा करती है। इस प्रकार, सरल शब्दों में, डेट फंड्स काम करते हैं।
  • इनकम फण्ड: इसमें इंटरेस्ट पर निर्णय लिया जाता है और मुख्य रूप से एक्सटेंडेड मचुरिटी वाले डेट सिक्युरिटीज में इन्वेस्ट किया जाता। यह उन्हें डायनेमिक बॉन्ड फंड की तुलना में अधिक स्थिर बनाता है। इनकम फंड की एवरेज मैच्योरिटी लगभग पांच से छह साल की होती है।
  • शॉर्ट-टर्म और अल्ट्रा शॉर्ट-टर्म डेट फंड: ये डेट फंड हैं जो एक साल से लेकर तीन साल तक क्या डेट फंड्स रिस्क फ्री होते हैं? की कम पीरियड के मैच्योरिटी वाले इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं। कंसरवेटिव इन्वेस्टर्स शॉर्ट-टर्म फंड में इन्वेस्ट करना पसंद करते हैं, क्योंकि ये फंड इंटरेस्ट रेट के उतार-चढ़ाव से ज्यादा प्रभावित नहीं होते हैं।
  • लिक्विड फंड: लिक्विड फंड 91 दिनों से अधिक की मैच्योरिटी वाले डेट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश नहीं करते हैं। यह उन्हें लगभग रिस्क फ्री बनाता है। लिक्विड फंडों ने शायद ही कभी नेगेटिव रिटर्न दिया है । ये फंडस हायर यील्ड्स के साथ साथ लिक्विडिटी भी प्रदान करते हैं। कई म्यूचुअल फंड कमनीयाँ लिक्विड फंड इन्वेस्टमेंट पर इंस्टेंट रिडेम्पशन (तत्काल पैसा निकलपने) की फैसिलिटी प्रदान करती हैं।
  • गिल्ट फंड: ये फंड केवल हाई रेटेड क्रेडिट, सरकारी सिक्युरिटीज में, जिन में बहुत कम रिस्क होता है, में इन्वेस्टइन्वेस्ट करते है। इस वज़ह से फिक्स्ड इनकम वाले इन्वेस्टर्स के बीच लोकप्रिय हैं, क्योकि वे ज्यादा रिस्क नहीं लेना चाहतें हैं।
  • क्रेडिट अपॉर्चुनिटीज फंड (FMP): ये तुलनामूलक नए डेट फंड हैं। अन्य डेट फंडों के तुलना में, क्रेडिट अपॉर्चुनिटीज फंड डेट इंस्ट्रूमेंट्स की मेचूरिटी पीरियड के अनुसार इन्वेस्ट नहीं करते हैं। ये फंड क्रेडिट रिस्क्स के अनुसार या हाई इंटरेस्ट रेट वाले, कम-रेटेड बॉन्डस में इनवेस्टेड रह कर हाईेर रिटर्न्स कमाने का प्रयास करते हैं। क्रेडिट अपॉर्चुनिटीज फंड रीलेटिव्ली रिस्की डेट फंड हैं।
  • फिक्स्ड मेचुरीटी प्लॉनस :(FMP) क्लोज-एंडेड डेट फंड हैं। ये फंड फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में भी इन्वेस्ट करते हैं। सभी FMP का एक फिक्स्ड समय होता है, जिस दौरान आपका पैसा लॉक-इन रहता है। यह समय महीनों या वर्षों में हो सकता है। आप केवल इनिशियल ऑफ़र पीरियड के दौरान ही इसमें इन्वेस्ट कर सकते हैं। यह एक फिक्स्ड डिपाजिट की तरह है जो बेहतर, टैक्स एफिसिएंट रिटर्न दे सकता है, लेकिन हाई रिटर्न की गारंटी नहीं देता है।
  • बैलेंस्ड या हाइब्रिड म्यूचुअल फंड, वन-स्टॉप (one -stop) इन्वेस्टमेंट ऑप्शन हैं जो इक्विटी और डेट दोनों सेगमेंट में इन्वेस्टमेंट ऑफर करते हैं। हाइब्रिड फंड का मुख्य उद्देश्य रिस्क-रिवॉर्ड के रेश्यो को बैलेंस करना और इन्वेस्टमेंट पर रेतुर्न को ऑप्टिमाइज़ (optimize) करना है।

इन सारे प्रकार के म्यूच्यूअल फंड्स में भी और खास तरह के फंड्स में इन्वेस्ट किया जा सकता है, जैसे सेक्टर-फंड् – जैसे फार्मा, हैल्थ केयर, बैंकिंग, आई टी, आदि, विशेष प्रकार के इंडस्ट्री में इन्वेस्ट करने का मौका देता है और ग्रोथ-फंड्स इन्वेस्टर्स को उन कम्पनीज के शेयर्स में इन्वेस्टमेंट पर फोकस प्रदान करता है जिनके कैपिटल वैल्यू में वृद्धि (Capital appreciation) हो ।

Debt Mutual Funds: 5 साल में हुई शानदार कमाई, इन स्‍कीम्‍स में 500 रु से शुरू कर सकते हैं SIP

Best performing Debt Mutual Funds: वॉलेटाइल मार्केट में डेट म्‍यूचुअल फंड्स में निवेश के एक बेहतर विकल्‍प है. इक्विटी फंड्स के मुकाबले इस स्‍कीम्‍स में जोखिम कम रहता है.

Mutual Funds Investment: म्‍यूचुअल फंड्स की इक्विटी स्‍कीम्‍स में रिटर्न और रिस्‍क दोनों ही ज्‍यादा होता है. शेयर बाजार में जब उतार-चढ़ाव हो तो निवेशकों को कुछ ऐसी स्‍कीम्‍स का भी ऑप्‍शन चुनना चाहिए, जिनमें रिस्‍क कम और रिटर्न बेहतर हो. हाई वॉलेटाइल मार्केट में डेट म्‍यूचुअल फंड्स (Debt Mutual Funds) में निवेश के एक बेहतर विकल्‍प है. इक्विटी फंड्स के मुकाबले इस स्‍कीम्‍स में जोखिम कम रहता है. डेट फंड्स में फंड मैनजर डिबेंचर्स, सरकारी बॉन्ड और अन्य फिक्‍स्‍ड इनकम एसेट्स में निवेश करते हैं. इसलिए डेट फंड्स में इक्विटी फंड्स के मुकाबले कम जोखिम रहता है. डेट म्‍यूचुअल फंड्स में कई ऐसी स्‍कीम्‍स हैं, जिनका 5 साल का रिटर्न 8 से 9 फीसदी सालाना रहा है. बड़े कॉमर्शियल बैंकों के 5 साल की एफडी के मुकाबले 3-4 फीसदी ज्‍यादा रिटर्न रहा. यहां ऐसे 5 डेट फंड्स के प्रदर्शन की बात कर रहे हैं, जिनमें 500 रुपये से SIP शुरू की जा सकती है.

SBI Magnum Medium Duration Fund

SBI मैग्‍नम मीडियम ड्यूरेशन फंड ने 5 साल में 8.79 फीसदी का सालाना रिटर्न दिया है. इसमें 1 लाख रुपये का निवेश बढ़कर 1.52 लाख रुपये हो गया. वहीं, 10,000 रुपये मंथली SIP की वैल्‍यू आज 7.50 लाख रुपये हो गई है. इस स्‍कीम में मिनिमम निवेश 5000 रुपये किया जा सकता है. जबकि, मिनिमम 500 रुपये से SIP शुरू कर सकते हैं.

Edelweiss Banking and PSU Debt Fund

एडलवाइस बैंकिंग एंड PSU डेट फंड ने 5 साल में 8.66 फीसदी का सालाना रिटर्न दिया है. इसमें 1 लाख रुपये का निवेश बढ़कर 1.51 लाख रुपये हो गया. वहीं, 10,000 रुपये मंथली SIP की वैल्‍यू आज 7.56 लाख रुपये हो गई है. इस स्‍कीम में मिनिमम निवेश 5000 रुपये किया जा सकता है. जबकि, मिनिमम 500 रुपये से SIP शुरू कर सकते हैं.

Baroda Credit Risk Fund- Plan B

बड़ौदा क्रेडिट रिस्‍क फंड- प्‍लान बी ने 5 साल में 8.34 फीसदी का सालाना रिटर्न दिया है. इसमें 1 लाख रुपये का निवेश बढ़कर 1.49 लाख रुपये हो गया. वहीं, 10,000 रुपये मंथली SIP की वैल्‍यू आज 7.65 लाख रुपये हो गई है. इस स्‍कीम में मिनिमम क्या डेट फंड्स रिस्क फ्री होते हैं? निवेश 5000 रुपये किया जा सकता है. जबकि, मिनिमम 500 रुपये से SIP शुरू कर सकते हैं.

HDFC Credit Risk Debt Fund

HDFC क्रेडिट रिस्‍क फंड ने 5 साल में 8.11 फीसदी का सालाना रिटर्न दिया है. इसमें 1 लाख रुपये का निवेश बढ़कर 1.49 लाख रुपये हो गया. वहीं, 10,000 रुपये मंथली SIP की वैल्‍यू आज 7.57 लाख रुपये हो गई है. इस स्‍कीम में मिनिमम निवेश 5000 रुपये किया जा सकता है. जबकि, मिनिमम 500 रुपये से SIP शुरू कर सकते हैं.

Edelweiss Government Securities Fund

एडलवाइस गवर्नमेंट सिक्‍युरिटीज फंड ने 5 साल में 8.23 फीसदी का सालाना रिटर्न दिया है. इसमें 1 लाख रुपये का निवेश बढ़कर 1.51 लाख रुपये हो गया. वहीं, 10,000 रुपये मंथली SIP की वैल्‍यू आज 7.56 लाख रुपये हो गई है. इस स्‍कीम में मिनिमम निवेश 5000 रुपये किया जा सकता है. जबकि, मिनिमम 500 रुपये से SIP शुरू कर सकते हैं.

(नोट: यहां फंड्स के परफॉर्मेंस की जानकारी वैल्‍यू रिसर्च से ली गई है. रिटर्न का आंकड़ा 25 नवंबर 2021 तक का है.)

(डिस्‍क्‍लेमर: यहां किसी भी तरह से निवेश से सलाह नहीं दी गई है. म्‍यूचुअल फंड में निवेश बाजार के जोखिमों के अधीन है. निवेश से पहले अपने एडवाइजर से परामर्श कर लें.)

डेट फंड्स में कॉर्पोरेट डिफॉल्ट का रिस्क, फिर भी फायदेमंद

रिस्क प्रोफाइल और जरूरत को देखते हुए डेट म्यूचुअल फंड्स में निवेश किया जा सकता है। हालांकि, यह भी याद रखना चाहिए कि इंट्रेस्ट रेट में उतार-चढ़ाव और समय-समय पर किसी कंपनी के बॉन्ड पर डिफॉल्ट होने से नेट एसेट वैल्यू में शॉर्ट टु मिड टर्म में गिरावट आ सकती है।

Debt-Fund

सांकेतिक तस्वीर।

डिफॉल्ट एक फीचर है, बग नहीं
आइए, इस सवाल पर दूसरे एंगल से गौर करते हैं। अगर कॉर्पोरेट बॉन्ड में जीरो डिफॉल्ट होने लगे तो क्या कोई कंपनी सरकारी बॉन्ड से अधिक ब्याज ऑफर करेगी? हम सब जानते हैं कि कई कंपनियों को बैंकों ने कर्ज दिया था, जो आज बैड लोन में बदल चुके हैं। ऐसे में क्या यह उम्मीद करना ठीक है कि म्यूचुअल फंड्स ने जिन कंपनियों के बॉन्ड खरीदे हैं, उनमें से कोई डिफॉल्ट नहीं करेगी? मुझे लगता है कि डिफॉल्ट, कॉर्पोरेट बॉन्ड का एक फीचर है, यह बग नहीं है। क्या डेट फंड्स रिस्क फ्री होते हैं? इसका मतलब यह नहीं है कि म्यूचुअल फंड्स ने कुछ मामलों में गलती नहीं की है। मैं नीचे कुछ पॉइंट्स दे रहा हूं, जिनसे आपको डेट फंड्स में निवेश का फैसला करने में मदद मिलेगी।

1. डेट फंड्स के रिस्क के बारे में साफ-साफ जानकारी दी जानी चाहिए। इनमें इंट्रेस्ट रेट के साथ क्रेडिट रिस्क भी होता है। इन फंड्स को रिस्क फ्री बताकर नहीं बेचा जाना चाहिए। इतना जान लें कि इनमें इक्विटी फंड्स की तुलना में कम रिस्क होता है।

2. क्रेडिट रिस्क का मैंडेट होने का मतलब यह नहीं क्या डेट फंड्स रिस्क फ्री होते हैं? है कि फंड मैनेजर कुछ खास कंपनियों तक पोर्टफोलियो को सीमित रखें या कुछ ही सेक्टर में उनका एक्सपोजर हो। उन्हें निवेश करते समय रेटिंग एजेंसियों से बॉन्ड को मिली रेटिंग पर आंखें बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए। उन्हें बॉन्ड्स में निवेश करने की बजाय क्वासी-लेंडिंग ऑपरेशंस भी नहीं चलाने चाहिए।

3. बोर्ड और ट्रस्टी को डिफॉल्ट होने पर डेट सिक्यॉरिटीज के वैल्यूएशन के लिए मानक प्रक्रिया तय करनी चाहिए। साइड पॉकेटिंग रेग्युलेशंस पर सही तरीके से अमल होना चाहिए।

रिस्क घटाकर करें निवेश
रिस्क प्रोफाइल और जरूरत को देखते हुए डेट म्यूचुअल फंड्स में निवेश किया जा सकता है। हालांकि, यह भी याद रखना चाहिए कि इंट्रेस्ट रेट में उतार-चढ़ाव और समय-समय पर किसी कंपनी के बॉन्ड पर डिफॉल्ट होने से नेट एसेट वैल्यू में शॉर्ट टु मिड टर्म में गिरावट आ सकती है। अगर रिस्क कम करने के उपाय किए जाएं तो निवेशक बेफिक्र होकर इनमें पैसा लगा सकेंगे और बार-बार डेट फंड्स आर्थिक अखबारों की सुर्खियां भी नहीं बनेंगे।

(लेख पराख पारिख ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी के डायरेक्टर हैं)

टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स में निवेश करने के फ़ायदे क्या हैं?

टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स में निवेश करने के फ़ायदे क्या हैं?

पिछले कुछ वर्षों में, निवेशक बेहतर टैक्स -एडजस्टेड रिटर्न की तलाश में फिक्स्ड डिपॉज़िट्स, PPF और पोस्ट ऑफ़िस सेविंग स्कीम्स जैसे पारम्परिक बचत उत्पादों को छोड़कर डेट फंड्स में जा रहे हैं। हालांकि, यह शिफ़्ट करने के दौरान रिटर्न्स की अनिश्चितता और अपनी मूल राशि गँवाने का जोखिम उन पर भारी पड़ता है। टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स (TMF) निष्क्रिय डेट फंड्स होते हैं जो FMP सहित अन्य डेट फंड्स की तुलना में कई लाभ प्रदान करते हैं।

इससे पहले कि हम टार्गेट मैच्योरिटी फंड के लाभों के बारे में बात करें, आइए देखें कि डेट फंड्स की इस श्रेणी की परिभाषित विशेषता क्या है। टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स की एक निर्दिष्ट मैच्योरिटी की तारीख़ होती है और उनके पोर्टफोलियो में बॉन्ड्स की एक्सपायरी डेट को इस मैच्योरिटी की तारीख़ के साथ संरेखित (अलाइन) किया जाता है। इसलिए, जैसे-जैसे समय बढ़ता है फंड की मैच्योरिटी की अवधि या समय घटता रहता है। साथ ही, पोर्टफोलियो में बॉन्ड्स मैच्योरिटी तक रखे जाते हैं।

TMF का सबसे पहला और सबसे आशाजनक लाभ यह है कि ब्याज दर में बदलाव उन्हें प्रभावित नहीं करता। चूँकि पोर्टफोलियो मैच्योरिटी तक रखा जाता है और उसकी अवधि घटती रहती है, वह साथ-साथ ब्याज दर में बदलावों के प्रति कम संवेदनशील होता है। दूसरा, बाकी डेट फंड्स की तुलना में TMF की बेहतर रिटर्न दृश्यता होती है क्योंकि बॉन्ड्स का पोर्टफोलियो मैच्योरिटी तक रखा जाता है। यह किसी भी समय रिटर्न की अपेक्षाओं को फंड की यील्ड-टू-मैच्योरिटी (YTM) के अनुरूप रखता है। तीसरी बात, निष्क्रिय स्वरूप होने के कारण, टार्गेट मैच्योरिटी बॉन्ड फंड्स मूलभूत बॉन्ड इंडेक्स की संरचना के आधार पर अपनी पूँजी को नियोजित करते हैं। इसलिए इन फंड्स का पोर्टफोलियो उन सरकारी सिक्युरिटीज में भारी निवेश क्या डेट फंड्स रिस्क फ्री होते हैं? करता है जो भारत के ज़्यादातर बॉन्ड इंडेक्स में शामिल होती हैं। वर्तमान में टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स के लिए सरकारी बॉन्ड्स, PSU बॉन्ड्स और राज्य विकास ऋण में निवेश करना अनिवार्य है। अन्य डेट फंड्स की तुलना में यह TMF के डिफ़ॉल्ट और क्रेडिट जोखिम को घटाता है।

चूँकि टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स ओपन-एंडेड और इंडेक्स फंड्स या ETF के रूप में उपलब्ध होते हैं, इसलिए विशेष रूप से FMP की तुलना में वे नकदी प्रस्तुत करते हैं। साथ ही, अपने मैच्योरिटी प्रोफ़ाइल के संबंध में वे अधिक फ्लेक्सिबिलिटी प्रदान करते हैं ताकि निवेशक ऐसा फंड चुन सकें जिसकी मैच्योरिटी की तारीख़ उनके निवेश की अवधि के लिए सबसे उपयुक्त हो। जो निवेशक कुछ समय के लिए निवेश में बने रहना चाहते हैं और स्थिर रिटर्न की उम्मीद करते हैं उन्हें अपने मूल डेट फंड निवेश पोर्टफोलियो में टार्गेट मैच्योरिटी डेट इंडेक्स फंड या टार्गेट मैच्योरिटी ETF को शामिल करने के बारे में सोचना चाहिए।

कम रिस्क उठाने में दिलचस्पी रखने वालों के लिए डेट फंड बेहतर विकल्प

[ उमा शशिकांत ]इक्विटी मार्केट को भले ही ज्यादा तवज्जो मिलती हो, लेकिन इंस्टीट्यूशनल प्लेयर्स के बीच बड़े एक्शन तो डेट मार्केट में होते हैं। पहले .

इक्विटी मार्केट को भले ही ज्यादा तवज्जो मिलती हो, लेकिन इंस्टीट्यूशनल प्लेयर्स के बीच बड़े एक्शन तो डेट मार्केट में होते हैं। पहले इस सेगमेंट में टैक्स सेविंग बॉन्ड के अलावा किसी और चीज में रिटेल इनवेस्टर्स की दिलचस्पी या सीधी भागीदारी नहीं होती थी। डेट फंड्स ने इसका हिसाब बदल दिया लेकिन लोगों को अब भी इसके बारे में बहुत कम जानकारी है।

डेट फंड के जरिए होने वाला निवेश बॉन्ड या डेट इंस्ट्रूमेंट्स के पोर्टफोलियो में जाता है। उधारी दो तरह की होती है: एक में उधार लेनेवाला लेंडर से कॉन्टैक्ट करता है और लोन लेता है। दूसरे में बॉरोअर बॉन्ड या इंस्ट्रूमेंट जारी करता है जिसमें लेंडर इनवेस्ट करते हैं। डेट फंड का पैसा सिर्फ बॉन्ड/इंस्ट्रूमेंट लगता है। डेट फंड को लोन देने की इजाजत नहीं है और लोन देने से ज्यादा पारदर्शी तरीका सिक्योरिटी खरीदना होता है।

डेट फंड को रोज कॉस्ट हटाकर पोर्टफोलियो का वैल्यू डिक्लेयर करना होता है। यह वैल्यू नेट एसेट वैल्यू यानी एनएवी कहलाती है। नियमानुसार फंड की होल्डिंग करेंट मार्केट वैल्यू के हिसाब से तय होती है। इसे सुनिश्चित करने के लिए जटिल सिस्टम, प्रोसेस और रूल्स होते हैं।

डेट फंड्स का क्लासिफिकेशन पोर्टफोलियो होल्डिंग के हिसाब से होता है। लिक्विड फंड में आनेवाला निवेशकों का पैसा बहुत ही शॉर्ट टर्म इंस्ट्रूमेंट्स में लगता है। गिल्ट फंड सरकारी इंस्ट्रूमेंट्स में इनवेस्ट करते हैं जबकि कॉरपोरेट बॉन्ड फंड कंपनियों के डेट में पैसा लगाते हैं।

बैंक डिपॉजिट में इनवेस्टर्स बैंक को एक तरह से लोन देते हैं। बैंक इसका इस्तेमाल फिक्स्ड पीरियड के लिए करता है और उस ब्याज देता है। बैंक क्या करता है, किसे लोन देता है, इनवेस्टमेंट का परफॉर्मेंस कैसा होता है, इन सबसे उसके इनवेस्टर्स पर सीधा असर नहीं होता। जब तक कोई डिफॉल्ट नहीं होता, इनवेस्टर्स बेफिक्र रहते हैं।

अगर कोई डेट फंड आधा पर्सेंट चार्ज वसूल करता है और वह रकम उसी मार्केट में लगा देता है क्योंकि बैंक डिपॉजिटर को पेमेंट करने से पहले सालाना 3 पर्सेंट का नेट इंटरेस्ट मार्जिन कमाता है तो डेट फंड में पैसा लगाना बेहतर विकल्प होगा।

जरा हजारों करोड़ की उस रकम के बारे में सोचिए जो कॉरपोरेट और इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स लिक्विड फंड्स में लगाते हैं। उन्हें अपने निवेश के हर रुपये पर रोज ब्याज मिलता है। रिटेल इनवेस्टर्स मनी मार्केट को सीधे एक्सेस नहीं कर सकते इसलिए वे अपना पैसा बैंक में पड़ा रहने देते हैं।

डेट फंड में रोज ब्याज चढ़ता है और t+1 का रिडेम्पशन पीरियड होता है, इनवेस्टर्स बैंक जैसी इंटरमीडियरी से कम रिटर्न कमाने के बजाय डेट फंड्स में निवेश के लिए मार्केट को एक्सेस कर सकते हैं। लेकिन इसमें एक पेच है: डेट फंड्स का रिस्क। बहुत से लोग जटिलताओं के चलते इसे समझने की कोशिश नहीं करते। हम आसान शब्दों में बता रहे हैं।

पैसा बॉन्ड में लगाना या डिपॉजिट डालकर मैच्योरिटी तक ब्याज कमाया जा सकता है। जब तक डिफॉल्ट नहीं होता, ब्याज वादे के मुताबिक मिलता रहता है। मान लेते हैं कि तीन साल के डिपॉजिट या बॉन्ड पर 7% इंटरेस्ट चल रहा है। इनवेस्टर को मैच्योरिटी पर प्रिंसिपल रिपेमेंट तक हर 100 पर 7 रुपये का कैश फ्लो हासिल होगा।

7% क्यों? बॉन्ड या डिपॉजिट के समय तीन साल की उधारी पर इतने का मार्केट रेट था। यह सबको पता है कि समय समय पर इंटरेस्ट रेट चेंज होता रहता है और फ्यूचर में अलग रेट होगा। लेकिन बॉन्ड से ब्याज पहले जितने तय रेट पर ही मिलेगा।

मान लेते हैं कि छह महीने बाद ब्याज दर बढ़ती हैं। डिपॉजिट या बॉन्ड ढार्इ साल का रह गया है। मान लेते हैं कि इतने के लिए 8% देना होता है। नए बॉन्ड इसी रेट पर आएंगे लेकिन पुराने पर 7% का ही इंटरेस्ट मिलेगा। तो फिर कोई 8% वाला बॉन्ड नहीं लेगा? ऐसे में 7% वाले बॉन्ड का बाजार भाव घटेगा। यह डेट फंड का रिस्क होता है।

जब जब रेट चढ़ता है, पुराने बॉन्ड की वैल्यू तब तब घटती है और डेट फंड का एनएवी भी कम हो जाता है। डेट फंड इनवेस्टर्स को बॉन्ड से मिलनेवाली इंटरेस्ट इनकम का लाभ मिलता है। साथ ही बॉन्ड की वैल्यू में चेंज होने से नफा और नुकसान दोनों होता है।

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