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अभौतिक खाता

अभौतिक खाता
युननान प्रांत ने चीन में अल्पसंख्यक जातियों की संस्कृतियों के संरक्षण के काम का सर्वेक्षण सब से पहले किया है।सर्वेक्षण से मालूम चला है कि पूरे प्रांत में अल्पसंख्यक जातियों के 10 हजार से अधिक किस्मों के कोई 1 लाख ऐतिहासिक ग्रंथ सुरक्षित हैं।इस के अलावा युननान प्रांत ने 660 लोक ललितकारों को 3 श्रेष्ठ श्रेणियों में बांटकर पुरस्कृत किया है और जातीय अभौतिक खाता संस्कृतियों से जुडे 80 से अधिक पारिस्थितिकी संरक्षण गांव भी स्थापित किए हैं।इन कदमों से युननान में अल्पसंख्यक जातियों की संस्कृतियों के संरक्षण में कामयाहियां हासिल हुई हैं।

consciousness or chetna is a dimension or aayaam and related to mind

सांस्कृतिक विलम्बना क्या होती है?

इसे सुनेंरोकेंसांस्कृतिक विलम्बना से इस प्रकार तात्पर्य है संस्कृति के किसी श का दूसरे से पीछे रह जाना। इन्होंने संस्कृति के दो पहलू भौतिक (Material) तथा अभौतिक (Non- material) माने हैं। प्रायः यह देखा जाता है कि अभौतिक अंश भौतिक से पिछड़ जाता है। इसे ही सांस्कृतिक विलम्बना या ‘पश्चायन’ कहते हैं।

भारतीय संस्कृति से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

इसे सुनेंरोकेंभारतीय संस्कृति से संवेदनाओं की सीख मिलती है। हम सदैव भारतीय संस्कृति की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। लेकिन वास्तविकता में लोग हमें भारतीय संस्कृति के तहत ही जानते हैं। इसलिए हमें भाषा का विरोध नहीं करना चाहिए।

संस्कृति कारन से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंसंस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र स्वरूप का नाम है, जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने के स्वरूप में अन्तर्निहित होता है। यह ‘कृ’ (करना) धातु से बना है। इस धातु से तीन शब्द बनते हैं ‘प्रकृति’ की मूल स्थिति,यह संस्कृत हो जाता है और जब यह बिगड़ जाता है तो ‘विकृत’ हो जाता है।

संस्कृति के प्रमुख प्रकार क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसंस्कृति दो प्रकार की हो सकती है : (1) भौतिक संस्कृति, तथा (2) अभौतिकसंस्कृति।

इसे सुनेंरोकेंसांस्कृतिक विलम्बना से इस प्रकार तात्पर्य है संस्कृति के किसी श का दूसरे से पीछे रह जाना। संस्कृति के भौतिक अथवा अभौतिक तत्वों में से अभौतिक खाता यदि कोई भी परस्पर पीछे रह जाये तो ‘सांस्कृतिक विलम्बना’ आ जाती है। वर्तमान में यह देखा जा रहा है कि अनौतिक संस्कृति की अपेक्षा भौतिक संस्कृति का प्रसार तीव्रता से हो रहा है।

साले संस्कृति से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंसवाल: शालेय संस्कृति से क्या समझते हैं? शालेय यह एक ऐसी इकाई है जो आपको विद्यालय की संस्कृत को प्रभावित करने वाले कारणों और अभौतिक खाता आयामों से परिचय कराती हैं। विद्यालय की संस्कृति अभी मान्य, सामूहिक मूल्य, अनुमानों और मान्यताओं से होती हैं।

शालेय शिक्षा क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसामाजिक परिवर्तन लाने हेतु : भावी नागरिकों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक व सर्वांगीण विकास के लिए विद्यालयों का कार्य ज्ञान एवं संस्कृति के संरक्षण तथा हस्तांतरण तक ही सीमित नहीं है, बल्कि परिस्थितियों के अनुरूप आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर विभिन्न क्षेत्रों के लिए सृजनशील नेतृत्व को विकसित करना तथा समानता.

विरासत शब्द से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंआसान शब्दों में यदि कहा जाए तो देश के अंदर हमारे चारों ओर मौजूद वैसी सभी वस्तुएं जो हमें हमारे पूर्वजों से प्राप्त हुआ है विरासत कहलाती है. विरासत, देश और लोगों की पहचान को परिलाक्षित करती है. किसी भी व्यक्ति के लिए विरासत उसकी पहचान होती है.

संस्कृति के कितने आयाम होते हैं?

इसे सुनेंरोकेंसारांश में संस्कृति के दो सै(ांतिक आयाम हंै – भौतिक तथा अभौतिक। जहाँ संज्ञानात्मक तथा मानकीय पक्ष अभौतिक हैं, वहीं भौतिक आयाम उत्पादन बढ़ाने तथा जीवन स्तर को उफपर उठाने के लिए महत्त्वपूणर् हैं।

इस खास जगह तक पहुंच सकते हैं आप, बस दिमाग पर करना होगा नियंत्रण

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मन के अगले आयाम को चित्त कहते हैं। चित्त का अर्थ विशुद्ध प्रज्ञा व चेतना, जो स्मृतियों से पूरी तरह बेदाग हो। यहां कोई स्मृति नहीं होती है। हर तरह की बातें कही गई हैं, जैसे- ईश्वर बड़ा दयालु है, ईश्वर प्रेम है, ईश्वर यह है, ईश्वर वह है। एक क्षण के लिए सोचिए कि किसी ने भी ये सारी बातें आपसे न कहीं होतीं और आप बिना कुछ सुने या माने बस अपने आसपास की सृष्टि को ध्यान से देखते कि कैसे एक फूल खिलता है, कैसे एक पत्ती निकलती है और कैसे एक चींटी चलती है आदि।

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अभौतिक खाता

दोस्तो,चीन के दक्षिण-पश्चिमी छोर पर युननान प्रांत स्थित है।इस में हान लोगों के अलावा 25 अल्पसंख्य जातियों के लोग भी बसे हुए हैं।इस लिहास से वह अभौतिक खाता विश्व में जातीय संस्कृतियों से संपन्न एक प्रमुख विशेष क्षेत्र माना गया है।लम्बे अभौतिक खाता अरसे से इस प्रांत का प्रशासन इन संस्कृतियों के संरक्षण व विकास को भारी महत्व देता रहा है और संबंधित काम में उपलब्धियां हासिल हुई हैं।

युननान अभौतिक खाता प्रांत के अभौतिक सांस्कृतिक विरासत संरक्षण-केंद्र के प्रभारी श्री नी चिंग-ख्वी ने कहा कि देश भर में लोकप्रिय `युननान की छाप` नामक एक भव्य गीतनृत्य में अल्पसंख्यक जातियों की जो विचित्र कलाएं दर्शाई गई हैं,उन से युननान प्रांत अभौतिक खाता में जातीय संस्कृतियों के संरक्षण में प्राप्त उपलब्धियों की झलक मिल सकती है।युननान प्रांत में जातीय संस्कृतियों के संरक्षण के साथ-साथ इन संस्कृतियों से जुड़े उद्योग का भी जोरदार विकास किया जा रहा है।`युननान की छाप` नामक जैसे जातीय गीतनृत्य का व्यापारिक मंचन किया जाने और जातीय संस्कृतियों के संरक्षण को स्थानीय आर्थिक विकास से जोड़ा जाने की अर्थतंत्र व संस्कृति के साथ-साथ विकास में अच्छी भूमिका हो रही है।श्री नी चिंग-ख्वी ने कहाः

संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा

प्रसिद्ध मानवशास्त्री एडवर्ड बनार्ट टायलर ( 1832-1917 ) के द्वारा सन् 1871 में प्रकाशित पुस्तक Primitive Culture में संस्कृति के संबंध में सर्वप्रथम उल्लेख किया गया है।

टायलर द्वारा दी गयी संस्कृति की परिभाषा

टायलर मुख्य रूप से संस्कृति की अपनी परिभाषा के लिए जाने जाते हैं , इनके अनुसार ,

संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान , विश्वास , कला आचार , कानून , प्रथा और अन्य सभी क्षमताओं तथा आदतों का समावेश होता है जिन्हें मनुष्य समाज के नाते प्राप्त कराता है। "

  • टायलर ने संस्कृति का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया है। इनके अनुसार सामाजिक प्राणी होने के नाते व्यक्ति अपने पास जो कुछ भी रखता है तथा सीखता है वह सब संस्कृति है। इस परिभाषा में सिर्फ अभौतिक तत्वों को ही सम्मिलित किया गया है।

फिर लौटकर आती है आत्मा

यहां मृत व्यक्ति की आत्मा मृत्यु के 12 दिनों तक प्रेतावस्था में परिवार वालों के बीच में रहती है और परिजनों द्वारा दिए गए पिंडदान को खाते हैं और दिए गए जल को पीते हैं जिससे अंगूठे के आकार का इनका अभौतिक शरीर तैयार होता है जिन्हें व्यक्ति के द्वारा जीवित अवस्था में किए गए कर्मों का फल भोगना होता है। इसी अभौतिक शरीर को यम के दूत 12वें दिन यमपास अभौतिक खाता में बांधकर यममार्ग पर ले जाते हैं। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि यममार्ग का सफर बहुत ही कठिन होता है। इस मार्ग पर व्यक्ति अभौतिक खाता को उनके कर्मों के अनुसार कष्ट प्राप्त होता है। 12 महीने में 16 नगरों और कई नरकों को पार करके आत्मा यमलोक पहुंचती है।

आत्मा के लिए वो 12 दिन

आत्मा के लिए अभौतिक खाता वो 12 दिन

गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मृत्यु के बाद हर व्यक्ति को 12 दिनों के लिए प्रेत योनी में जाना होता है। यह 12 दिन मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति की आत्मा को अभौतिक शरीर दिलाने के लिए होता है। यही अभौतिक शरीर पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग और पाप अभौतिक खाता के प्रभाव से नरकगामी होता है। कर्म भोगने वाले इस शरीर द्वारा कर्म के फल को भोग लिए जाने के बाद फिर से जीवात्मा को नया शरीर प्राप्त होता है। स्वर्ग गए लोग अपने पुण्य के प्रभाव से धनवान और सुखी परिवार में जन्म लेते हैं या अपने कर्मों से धनवान होते हैं।

मृत्यु के बाद आत्मा का सफर

मृत्यु के बाद आत्मा का सफर

गरुड़ पुराण जिसमें मृत्यु के बाद की स्थिति का वर्णन किया गया है, उसमें बताया गया है, जो लोग पुण्यात्मा होते अभौतिक खाता हैं केवल वही भगवान विष्णु के दूतों द्वारा विष्णु लोक को जाते हैं। इन्हें प्रेत योनी में नहीं जाना होता है बाकी सभी लोगों को मृत्यु के बाद प्रेत योनी से गुजरना ही होता है। मृत्यु के बाद जब आत्मा को यमलोक लाया जाता है तो यम के दूत एक दिन में उस अभौतिक शरीर को एक दिन में 1600 किलोमीटर चलाते हैं। महीने में एक दिन मृत्यु तिथि के दिन आत्मा को ठहरने का मौका दिया जाता है।

इसलिए मृत्यु के बाद श्राद्ध तर्पण जरूरी

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