विदेशी मुद्रा व्यापार में भारत

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विदेशी मुद्रा प्रबंधन की चुनौती पर निबंध | Essay on Challenge for Management of Foreign Currency in Hindi

सचमुच अब वह समय बीत गया है, जब भारत को विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए पसीना बहाना पड़ता था । अब तो विदेशी मुद्रा भारत की ओर दौड़ लगाकर आते हुए दिखाई दे रही है । इतना ही नहीं, देश में विदेशी पूंजी के बढ़ते ढेर से तरह-तरह के खतरे उत्पन्न हो रहे हैं ।

देश में निवेश का उपयुक्त माहौल, उदार नीतियां और सरल प्रक्रियाओं के साथ-साथ रुपये की मजबूती पर अंकुश लगाने के लिए रिजर्व बैंक के भारी दखल की वजह से नवम्बर 2011 में देश में विदेशी मुद्रा भंडार करीब 320 अरब डॉलर के रिकार्ड स्तर पर पहुंच चुकी है ।

अक्टूबर 2006 से विदेशी मुद्रा भडार की स्थिति उत्साहवर्द्धक है वर्ष 1991 में हमारे सामने विदेशी मुद्रा का संकट पैदा हो गया था, जब हमारा मुद्रा भंडार सिर्फ दो सप्ताह के आयात के लायक रह गया था और पर्याप्त विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए हमें सोना ब्रिटेन के पास बंधक रखना पड़ा था । अब विदेशी मुद्रा के भरपूर प्रवाह का प्रबंधन चुनौती बन गया है ।

देश में बढते विदेशी निवेश से सरकार असमंजस की स्थिति में है और अब उसे कुछ सूझ नहीं पा रहा है कि बढ़ते विदेशी मुद्रा प्रवाह का प्रबंधन कैसे किया जाये? भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. सुब्बाराव के मुताबिक आज सवाल यह नहीं है कि विदेशी मुद्रा कैसे आकर्षित की जाये बल्कि अब बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि देश में पहुंच रही विदेशी मुद्रा को उत्पादक कार्यो में कैसे लगाया जाये? उनका कहना है कि इस समय देश में कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब तीन प्रतिशत विदेशी मुद्रा प्रवाह हो रहा है, लेकिन इसमें से केवल 1.1 प्रतिशत का ही उत्पादक कार्यो में उपयोग हो पा रहा है ।

शेष विदेशी मुद्रा रिजर्व बैंक के आरक्षित भंडार में जमा हो रही है । विदेशी मुद्रा का आना शुभ है, लेकिन इस मुद्रा भंडार का बिना सदुपयोग के पड़े रहना अशुभ है । चीन के लगभग 1300 अरब डालर के भंडार की तुलना में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार खासा कम है । रूस, दक्षिण कोरिया से लेकर हांगकांग तक कई ऐसे देश हैं, जो अपने भारी भरकम मुद्रा भंडार को ठीक से संभाल रहे है ।

देश में विदेशी मुद्रा के खतरे शेयर बाजार के परिप्रेक्ष्य में और बढ़ गये हैं । शेयर बाजारों में जो हाल ही में तेजी आई है उसका कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) द्वारा भारतीय शेयर बाजारों में निवेश बढाना है । निवेश अक्टूबर 2007 तक 11 अरब डॉलर से ज्यादा हो गया था । वर्ष 2006-07 में करीब 10 अरब डॉलर का निवेश हुआ था । अनुमान था कि आगमी वर्षों में यह निवेश 15 अरब डॉलर तक पहुच जाएगा ।

अमेरिका के फेडरल रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दर में की गयी कटौती ने विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) को नये जोश से भर दिया । कम से कम भारतीय शेयर बाजारों में उनके द्वारा किये गये भारी-भरकम निवेश से तो ऐसा ही प्रतीत होता है । एफआईआई के इस जोरदार निवेश के बलबूते ही शेयर बाजारों में लम्बे समय तक लगातार तेजी देखने को मिली ।

इस निवेश के सहारे ही सेंसेक्स 2007 में 20000 का आंकड़ा लांघने में कामयाब रहा । शेयर बाजार जहां एक ओर उफान के नित नये रिकॉर्ड बनाकर नई-नई ऊंचाइयों की ओर बढता नजर आता है, वहीं दूसरी ओर गिरावट के भी ऐतिहासिक स्तर बनाने में इसका कोई साथी नहीं है । बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि इस उतार-चढाव की अहम वजह बाजार में लगा विदेशी पैसा है ।

पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम. के. नारायणन ने आशंका जाहिर की थी कि विदेशी निवेश की आड़ में भारतीय शेयर बाजार में आतंककारियों का धन लग रहा है । देश की खुफिया एजेंसियों का कहना है कि यह धन ड्रग माफियाओं, अंडरवर्ल्ड और आतंककारियों का हो सकता है । भारतीय रिजर्व बैंक का मानना है कि पार्टीसियेटरी नोट (पीएन) रूट की मार्फत हॉट मनी या हैज फंड निवेश कर सकते हैं ।

सरकार और सेबी भी इस धन के बढते हुए प्रभाव से चिंतित है । कुछ दिन पहले देश की खुफिया एजेंसियां ऐसे निवेश के प्रति सरकार को आगाह कर चुकी है । एफआईआई अधिकांश निवेश पीएन द्वारा करते हैं । इस पीएन में कौन पैसा लगाता है, इसकी कोई जानकारी एफआईआई नहीं रखते हैं ।

पिछले कुछ साल से देश में यह मंथन चल रहा है कि पीएन रूट की मार्फत विदेशी मुद्रा विश्लेषण जो ‘अंजान’ निवेश हो रहा है उसको रोका जाना चाहिए । आतकवाद से जुड़ी संदिग्ध वित्तीय गतिविधियों के कुछ मामले गृह मत्रालय, खुफिया ब्यूरो और सीबीआई को प्राप्त हुए हैं । वर्ष 2006-07 के दौरान वित्तीय खुफिया इकाई ने बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से मिली सूचना के आधार पर लेनदेन की 646 रिपोर्टों का विश्लेषण किया ।

इनमें से 39 मामलों को संदिग्ध वित्तीय गतिविधियों का मानते हुए विभिन्न एजेंसियों को विचारार्थ भेजा गया है । संदिग्ध वित्तीय लेन-देन के मुद्दे विदेशी मुद्रा विश्लेषण में शेयर बाजारों में वित्त पोषण भी शामिल है । सेबी ने एक जांच में यह पाया था कि किस तरह भारत से चला पैसा कई देशों से होते हुए वापस भारत में विदेशी कोष के रूप में आ रहा है । इस खेल को अंजाम देने वाले खिलाड़ी इसके लिए पीएन का ही रास्ता इस्तेमाल कर रहे थे ।

जहां शेयर बाजार में एफआईआई का निवेश जोखिमपूर्ण है, वहीं उफनते हुए विदेशी मुद्रा भंडार को ठीक से प्रबंधित नहीं किया गया, तो उरपसे विनिमय दर हद से ज्यादा नुकसानदायक हो सकती है और रुपये का एक हद से ज्यादा मजबूत होना निर्यात उद्योग को गंभीर हानि पहुचा सकता है । इस समय भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के बड़े हिस्से को अपेक्षाकृत कम ब्याज आय मिल रही है ।

यदि कुछ हिस्सा ढांचागत परियोजनाओं के लिए दिया जाता है तो सरकार को अच्छी आय होगी और परियोजनाओं के लिए उचित दर पर संसाधन उपलब्ध हो जायेंगे । घरेलू ऋणदाताओं को भी इससे राहत मिलेगी और उनके संसाधन भी बढेंगे ।

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विदेशी मुद्रा पदामिहित उन प्राप्तव्यों से प्राप्तियों में विलंब करने की प्रथा जिसकी मुद्राओं का मोल बढ़ने की प्रत्याशा हो और विदेशी मुद्रा के रूप में नामित विदेशी मुद्राएं जिनका मोल घटने की आशंका हो, में विलंब करने को क्या कहा जाता है ?

Key Points

  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में लीड और लैगआमतौर पर मुद्रा विनिमय दरों में अपेक्षित परिवर्तन का लाभ उठाने के लिए विदेशी मुद्रा में जानबूझकर तेजी या भुगतान में देरी का उल्लेख करते हैं।
  • भुगतान की जा रही मुद्रा के सुदृढ़ीकरण से विचाराधीन इकाई के लिए एक छोटा भुगतान होगा, जबकिमुद्रा के कमजोर होने से भुगतान में देरी होने पर लागत में वृद्धि होगी।
  • एक निगम या सरकार उचित सीमा के भीतर प्राप्त या किए गए भुगतानों की अनुसूची को नियंत्रित कर सकती है।
  • जब किसी विदेशी संस्था को भुगतान शामिल होता है, तो संगठन निर्धारित समय से पहले या बाद में भुगतान करने का विकल्प चुन सकता है।
  • ये परिवर्तन मुद्रा विनिमय दरों में परिवर्तन से लाभ प्राप्त करने की प्रत्याशा में किए जाएंगे।

Additional Information नेटिंग- नेटिंग में दो या दो से अधिक पक्षकारों के बीच आदान-प्रदान के कारण कई स्थितियों या भुगतानों के मूल्य को ऑफसेट करना शामिल है। इसका उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है कि बहुदलीय समझौते में किस पक्ष का पारिश्रमिक बकाया है। नेटिंग एक सामान्य अवधारणा है जिसके वित्तीय बाजारों सहित कई अन्य विशिष्ट उपयोग हैं।

जोखिम हेजिंग- हेजिंग एक जोखिम प्रबंधन रणनीति है जिसका उपयोग संबंधित परिसंपत्ति में विपरीत स्थिति लेकर निवेश में होने वाली हानि की भरपाई के लिए किया जाता है। हेजिंग द्वारा प्रदान की गई जोखिम में कमी भी आम तौर पर संभावित लाभ में कमी का परिणाम है। हेजिंग में इसके द्वारा प्रदान की जाने वाली सुरक्षा के लिए धन का भुगतान करने की आवश्यकता होती है, जिसे प्रीमियम के रूप में जाना जाता है।

अत:, सही उत्तर लैगिंग है।

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Last updated on Nov 25, 2022

University Grants Commission (Minimum Standards and Procedures for Award of Ph.D. Degree) Regulations, 2022 notified. As, per the new regulations, candidates with a 4 years Undergraduate degree with a minimum CGPA of 7.5 can enroll for PhD admissions. The UGC NET Final Result for merged cycles of December 2021 and June 2022 was released on 5th November 2022. Along with the results UGC has also released the UGC NET Cut-Off. With tis, the exam for the merged cycles of Dec 2021 and June 2022 have conclude. The notification for December 2022 is expected to be out soon. The UGC NET CBT exam consists of two papers - Paper I and Paper II. Paper I consists of 50 questions and Paper II consists of 100 questions. By qualifying this exam, candidates will be deemed eligible for JRF and Assistant Professor posts in Universities and Institutes across the country.

रुपए में गिरावट के लिए उद्योग तैयार

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मुंबईः अमेरिकी डॉलर के मुकाबले स्थानीय मुद्रा घटकर 80 रुपए पर पहुंचने के बाद भारतीय कंपनियां इससे बचने की तैयारी कर रही हैं। जिन कंपनियों के पास निर्यात से होने वाली आमदनी जैसे प्राकृतिक बचाव नहीं हैं, वे फॉरवर्ड कवर की कवायद में हैं, क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि अगले एक साल तक रुपए में धीरे-धीरे गिरावट आएगी और यह डॉलर के मुकाबले 86-87 तक पहुंच जाएगा।

सीएफओ कंपनियों को सुझाव दे रहे हैं कि लघु और मध्यम अवधि के हिसाब से वे अपने जोखिम के आधार पर सही तरह के डेरिवेटिव उत्पाद लें। इंटरनैशनल फाइनैंस पर शीर्ष कंपनियों के एक सलाहकार प्रबाल बनर्जी ने कहा, ‘अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा जैसे ही दरों में बढ़ोतरी खत्म कर दी जाएगी और बाजार द्वारा छूट दी जाएगी, अमेरिकी इक्विटी बाजार बढ़ना शुरू हो जाएगा। निवेशक भारत से अपनी पूंजी अमेरिका में डालना शुरू कर देंगे और इससे आगे रुपए में और गिरावट आएगी।

इसके अलावा भारत में महंगाई और तेल की कीमतों का नकारात्मक असर रहा है, जिसकी वजह से रुपये में गिरावट की आशंका बहुत ज्यादा होगी और इस पर दबाव बनेगा।’दिलचस्प है कि इस साल जून में जारी भारतीय रिजर्व बैंक की वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की कंपनियों द्वारा विदेश से लिया गया करीब 44 प्रतिशत धन हेजिंग वाला नहीं है, ऐसे में रुपए में गिरावट से उनकी देनदारी बढ़ती है।

बड़ी संख्या में मझोली और छोटी कंपनियां फॉरवर्ड कवर नहीं लेती हैं क्योंकि इससे उनकी लागत बढ़ जाती है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक बकाया वाह्य वाणिज्यिक उधारी(ईसीबी) की कुल राशि 180 अरब डॉलर के करीब है और इसमें से करीब 79 अरब डॉलर बगैर हेजिंग वाला कर्ज है। ईसीबी का करीब 80 प्रतिशत अमेरिकी डॉलर में है, जबकि शेष ऋण यूरो और जापानी येन में है।

बीपीसीएल के निदेशक (वित्त) वत्स रामकृष्ण गुप्त ने कहा कि उनकी कंपनी के मामले में मुद्रा में गिरावट पहले ही उनकी उधारी में अहम बन गई है। गुप्त ने कहा, ‘औसतन जब हम 10 साल की अवधि के लिए विदेशी मुद्रा में उधारी लेते हैं तो मुद्रा में 3.5 से 4 प्रतिशत की गिरावट मानकर चलते हैं। हम उम्मीद कर रहे हैं कि 80-81 के स्तर पर अगले 3 से 4 महीने में रुपया स्थिर हो जाएगा। इसका जितना असर पड़ना था, वह जून में समाप्त पहली तिमाही में पड़ चुका है।’

रिलायंस इंडस्ट्रीज और वेदांता जैसी भारत की तेल व गैस कंपनियों ने निर्यात से अपने राजस्व का उल्लेखनीय हिस्सा कमाया है और रुपया कमजोर होने की स्थिति में उनके पास प्राकृतिक कवर है। बीपीसीएल के अधिकारियों ने कहा कि उनकी खरीद और कीमत आयात मूल्य पर निर्भर है। उन्होंने कहा, ‘हमारे खरीद भंडार व कीमतों के हिसाब से विदेशी मुद्रा में उतार चढ़ाव को लेकर कोई जोखिम नहीं है। एकमात्र जोखिम विदेशी मुद्रा में ली गई उधारी के मामले में है।

सामान्यतया हम फॉरवर्ड कवर की ओर नहीं जाते। अगर हम फॉरवर्ड की ओर जाएंगे तो फॉरवर्ड की लागत ही जोखिम की तुलना में बहुत ज्यादा होगी। यहां विदेशी मुद्रा विश्लेषण तक कि अगर हम विदेशी मुद्रा उधारी का विकल्प अपनाते हैं तो किसी चीज को हम हेज नहीं करेंगे।’

विश्लेषकों का कहना है कि भारत की मुद्रा में इस साल तेज गिरावट बुनियादी ढांचा कंपनियों के लिए बुरी खबर है, क्योंकि पिछले 2 साल के दौरान उन्होंने डॉलर में कर्ज लिया है। इन कंपनियों की कमाई रुपये में होगी। हालांकि कई कंपनियां वित्तीय हेज व अन्य तरीके अपनाकर कमजोर होते रुपये के दुष्प्रभाव से बचने में सक्षम होंगी।

मूडीज के एक विश्लेषण के मुताबिक, ‘रेटिंग वाले जारीकर्ताओं के छोटे उपसमूह को नकारात्मक दबाव का सामना करना पड़ सकता है, अगर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये पर नकारात्मक दबाव पड़ता है और रुपया 80 की सीमा से ऊपर जाता है।’सरकार की बिजली उत्पादक एनटीपीसी जैसी कंपनियां रुपये में गिरावट का प्रबंधन करने के मामले में बेहतर स्थिति में हैं क्योंकि इस उद्योग के नियामक का इतिहास रहा है कि मुद्रा की गति के कारण बढ़ी लागत की वसूली के लिए अनुमति देता रहा है। एनटीपीसी की 90 प्रतिशत से ज्यादा आमदनी नियमन के दायरे में आने वाले स्रोतों से होती है।

विश्लेषकों का कहना है कि नियामकीय संरक्षण का असर सेक्टर और नियामक के मुताबिक अलग अलग होगा। उदारहण के लिए दिल्ली इंटरनैशनल एयरपोर्ट जैसी कंपनियां भी फाइनैंशियल हेज का इस्तेमाल करती हैं, जिससे मुद्रा के जोखिम का प्रबंधन हो सके।

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