सबसे अधिक लाभदायक विदेशी मुद्रा रणनीति

समर्थन मूल्य का विकल्प

समर्थन मूल्य का विकल्प

केंद्र सरकार ने नई फसल खरीद नीति को दी मंजूरी

सरकार ने देश के किसानों को राहत देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्‍यक्षता में बुधवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में “नई कृषि खरीद नीति” को मंजूरी प्रदान की गई। यह नीति बाजार मूल्‍य के सरकार द्वारा तय दाम से नीचे जाने पर भी किसानों को न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (MSP) समर्थन मूल्य का विकल्प को सुनिश्चित करेगी।

इस साल बजट में सरकार ने घोषणा की थी कि वह किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए ‘फूलप्रूफ’ (चूकमुक्त) व्यवस्था बनाएगी। सरकार ने नीति आयोग से केंद्रीय कृषि मंत्रालय और राज्यों के साथ विचार विमर्श करके किसी प्रणाली के बारे में सुझाव देने को कहा था।

नई नीति के तहत, राज्यों के पास मौजूदा मूल्य सहायता योजना (पीएसएस) चुनने समर्थन मूल्य का विकल्प का विकल्प भी होगा, जिसके अंतर्गत केंद्रीय एजेंसियां, जिंसों की कीमत एमएसपी से कम होने की स्थिति में, एमएसपी नीति के दायरे में आने वाली वस्तुओं को खरीदती हैं।राज्य पीएसएस या पीडीपी चुन सकते हैं या किसानों को एमएसपी सुनिश्चित करने के लिए खरीद के काम में निजी कंपनियों को साथ कर सकते हैं।

तिलहनों की खरीद के लिए भावांतर योजना

नई नीति में राज्य सरकारों को विकल्प होगा कि कीमतें एमएसपी से नीचे जाने पर वह किसानों के संरक्षण के लिए विभिन्न योजनाओं में से किसी का भी चयन कर सकें। सिर्फ तिलहन किसानों के संरक्षण के लिए मध्यप्रदेश की भावांतर भुगतान योजना की तर्ज पर मूल्य कमी भुगतान (पीडीपी) योजना शुरू की गई है। पीडीपी के तहत सरकार किसानों को एमएसपी तथा थोक बाजार में तिलहन के मासिक औसत मूल्य के अंतर का भुगतान करेगी। इस योजना के तहत तिलहनी फसलों की खरीद कुल उत्पादन के 25 फीसदी तक की जायेगी। इसके अलावा राज्यों को तिलहनों की खरीद करने के लिए प्रयोग के तौर पर निजी कंपनियों को साथ लेने का विकल्प दिया गया है।

बैंक गारंटी के वास्ते 16,500 करोड़ रुपये का प्रावधान

राधामोहन सिंह ने बताया कि नई खरीद नीति में मूल्य समर्थन योजना, भावांतर योजना के साथ ही निजी खरीद तथा स्टॉकिस्ट खरीद योजना को शामिल किया गया है। इस वर्ष फसलों की खरीद के लिए बैंक गारंटी देने के वास्ते अतिरिक्त 16,550 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है जिससे यह गारंटी बढ़कर कुल 45,500 करोड़ रुपये हो जायेगी। इसके अतिरिक्त बजटीय प्रावधान को भी बढ़ाकर 15,053 करोड़ रुपये किया गया है। उन्होंने बताया कि राज्यों में पायलट परियोजना के रुप में निजी खरीद स्टॉकिस्ट योजना के तहत भी अनाजों की खरीद की जायेगी।

तिलहनों की खरीद के लिए भावांतर योजना

नई नीति में राज्य सरकारों को विकल्प होगा कि कीमतें एमएसपी से नीचे जाने पर वह किसानों के संरक्षण के लिए विभिन्न योजनाओं में से किसी का भी चयन कर सकें। समर्थन मूल्य का विकल्प सिर्फ तिलहन किसानों के संरक्षण के लिए मध्यप्रदेश की भावांतर भुगतान योजना की तर्ज पर मूल्य कमी भुगतान (पीडीपी) योजना शुरू की गई है। पीडीपी के तहत सरकार किसानों को एमएसपी तथा थोक बाजार में तिलहन के मासिक औसत मूल्य के अंतर का भुगतान करेगी। इस योजना के तहत तिलहनी फसलों की खरीद कुल उत्पादन के 25 फीसदी तक की जायेगी। इसके अलावा राज्यों को तिलहनों की खरीद करने के लिए प्रयोग के तौर पर निजी कंपनियों को साथ लेने का विकल्प दिया गया है।

अन्य स्कीम भी अपना सकते हैं राज्य

नई खाद्यान्न खरीद नीति के तहत राज्यों के पास मौजूदा मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) चुनने का विकल्प भी होगा, इसके अंतर्गत केंद्रीय एजेंसियां, जिंसों की कीमत एमएसपी से नीचे जाने की स्थिति में करती हैं, तथा केंद्र सरकार इसकी भरपाई करती है।

एफसीआई बड़े पैमाने पर गेहूं और चावल की करती है खरीद

सरकार की खाद्यान्न खरीद एवं वितरण करने वाली नोडल एजेंसी, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), पहले से ही राशन की दुकानों और कल्याणकारी योजनाओं के जरिये आपूर्ति करने के लिए एमएसपी पर गेहूं और चावल खरीदती है।

23 फसलों के तय करती है सरकार एमएसपी

न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति के तहत केंद्र सरकार हर साल खरीफ और रबी की 23 फसलों के समर्थन मूल्य तय करती है। सरकार ने जुलाई में धान के एमएसपी में 200 रुपए प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी की थी।

एथनॉल के भाव में की बढ़ोतरी

कैबिनेट की बैठक में एक और बड़ा फैसला लिया गया। एथेनॉल के दाम 25 फीसदी बढ़ाने को मंजूरी दी गई। यानि बढ़ोतरी के बाद बी-हैवी मोलासिस (शीरा) से बनने वाले एथनॉल का दाम 52.4 रुपये प्रति लीटर होगा जबकि गन्ना से सीधे बनने वाले एथनॉल का दाम 59 रुपये प्रति लीटर होगा।

इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार केंद्र सरकार ने एथनॉल की कीमतों में बढ़ोतरी से इसके उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, जिसका सीधा फायदा गन्ना किसानों को होगा

इसके अलावा, कई अन्‍य किसान, अनुकूल पहल की गई हैं जिनमें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना एवं परंपरागत कृषि विकास योजना का क्रियान्‍वयन करना और मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्डों का वितरण करना भी शामिल हैं। खेती की लागत के डेढ़ गुने के फॉर्मूले के आधार पर न्‍यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करने का असाधारण निर्णय भी किसानों के कल्‍याण के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को प्रतिबिम्‍बित करता है

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद: किसान अब मोबाइल से कर सकेंगे रजिस्ट्रेशन

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद: किसान अब मोबाइल से कर सकेंगे रजिस्ट्रेशन

मध्यप्रदेश में पांच फरवरी से शुरू होंगे पंजीयन, जानें, रजिस्ट्रेशन की पूरी प्रक्रिया

देश में खरीफ की फसलों की खरीद अंतिम दौर में चल रही है और रबी की फसल खरीद की तैयारियां की जा रही है। इस बार रबी की पैदावार को लेकर उत्साहित है। खबर है कि इस बार रबी फसल की बंपर पैदावार होने का अनुमान है। इसे देखते हुए किसानों की कई राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं सहित अन्य रबी फसल बेचने को लेकर किसानों के लिए रजिस्ट्रेशन खोलने की तैयारी की जा रही है। ताकि किसान रबी फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकें ताकि उन्हें फसल बेचने में कोई परेशानी नहीं हो। इसी क्रम में मध्यप्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं सहित अन्य रबी फसलों की सरकारी खरीद के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू किए जा रहे हैं। ये रजिस्ट्रेशन 5 फरवरी से शुरू किए जाएंगे। इस बार राज्य सरकार ने किसानों को घर बैठे मोबाइल से रजिस्ट्रेशन की सुविधा दी है। आइए ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से जानते हैं पूरी जानकारी ताकि किसानों को इसका लाभ मिल सकें।

Minimum Support Price : किसान घर बैठे मोबाइल से करा सकेंगे रजिस्ट्रेशन

मध्यप्रदेश शासन द्वारा इस वर्ष किसानों को घर बैठे मोबाइल से वर्ष 2022-23 के लिए गेहूं उपार्जन पंजीयन की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। ये सुविधा 5 फरवरी से शुरू की जाएगी। पंजीयन की अंतिम तिथि 5 मार्च रखी गई है। गेहूं उपार्जन पंजीयन के लिए किसानों की समग्र आईडी होना अनिवार्य है। पंजीयन के लिए अन्य विकल्प भी हैं, जहां निशुल्क/सशुल्क पंजीयन कराया जा सकता है। इस संबंध में जिला आपूर्ति अधिकारी, जबलपुर नुजहत बानो ने मीडिया को बताया कि मध्यप्रदेश के किसान जो रबी सीजन के दौरान समर्थन मूल्य पर चना, सरसों, मसूर एवं गेहूं बेचना चाहते हैं, वे अपने मोबाइल या कम्प्यूटर से mpeuparjan.nic.in पोर्टल पर पंजीयन कर सकते हैं।

किसान यहां भी करा सकते हैं रबी फसलों के लिए रजिस्ट्रेशन

किसान यदि चाहें तो ग्राम पंचायत /जनपद पंचायत / तहसील में स्थापित सुविधा केंद्र, सहकारी समिति,एसएचजी ,एफपीओ एफपीसी द्वारा संचालित पंजीयन केंद्र पर भी निशुल्क पंजीयन करा सकते हैं। इसके अलावा गेहूं उपार्जन के पंजीयन के लिए एमपी ऑन लाइन कियोस्क, कॉमन सर्विस सेंटर, लोक सेवा केंद्र और साइबर कैफे भी विकल्प हैं, जहां 50 रुपए शुल्क देकर पंजीयन कराया जा सकता है।

रबी फसल के पंजीयन के लिए आवश्यक दस्तावेज

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर रबी फसल बेचने के लिए किसानों को पहले रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इसके लिए किसानों को जिन दस्तावेजों की आवश्यकता होगी, वे इस प्रकार से हैं-

  • आवेदन करने वाले किसान की समग्र आईडी जैसे- आधार कार्ड
  • किसान का निवास प्रमाण-पत्र
  • बैंक अकाउंट विवरण के लिए पासबुक की कॉपी
  • ऋण पुस्तिका
  • पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ
  • पंजीकृत मोबाइल नंबर आधार कार्ड से लिंक होना अनिवार्य है।

क्या है रबी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2022-23

केंद्र सरकार की ओर से रबी और खरीफ सीजन के लिए हर वित्तीय वर्ष में फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाता है और इसी एमएसपी पर सरकारी मंडियों में उपज खरीदी जाती है। केंद्र सरकार की ओर से वित्तीय वर्ष 2022-23 के रबी सीजन के लिए जो फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया गया है वे इस प्रकार से है-

  • गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2015 रुपए प्रति क्विंटल
  • जौ का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1635 रुपए प्रति क्विंटल
  • चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5230 रुपए प्रति क्विंटल
  • दाल (मसूर) का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5500 रुपए प्रति क्विंटल
  • कैनोला और सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रुपए प्रति क्विंटल
  • कुसुम के फूल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5441 रुपए प्रति क्विंटल है।


अगर आप अपनी कृषि भूमि , अन्य संपत्ति , पुराने ट्रैक्टर , कृषि उपकरण , दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।

जानि‍ए फसलों की MSP क्या है? कृषि कानून वापस होने के बाद भी क्यों गर्माया हुआ है यह मुद्दा; क्‍या है अड़चन

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) किसी फसल का न्यूनतम मूल्य होता है

केंद्र सरकार द्वारा तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले से किसान खुश तो हैं लेकिन अभी आंदोलन खत्म करने के मूड में नहीं हैं। राकेश टिकैत जैसे किसान नेता इस बारे में औपचारिक अधिसूचना और MSP की गारंटी को लेकर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं।

नई दिल्‍ली, आनलाइन डेस्‍क। केंद्र सरकार ने पिछले साल लागू हुए तीन नए कृषि कानूनों को वापस ले लिया है। पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान किया। केंद्र सरकार सितंबर 2020 में तीन नए कृषि विधेयक लाई थी, जो संसद की मंजूरी और राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद कानून बन गए लेकिन किसानों को ये कानून रास नहीं आए। उन्होंने उसी समय से इसका विरोध शुरू कर दिया। 26 नवंबर 2020 से काफी संख्‍या में किसान दिल्ली-हरियाणा बार्डर और गाजीपुर बार्डर पर लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, जिनमें बड़ी संख्‍या पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्‍तर के किसान थे।

मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा- फर्जी इंटरनेट मीडिया पोस्ट निष्पक्ष चुनाव के लिए बन रहे चुनौती

केंद्र सरकार द्वारा तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले से किसान खुश तो हैं, लेकिन अभी आंदोलन खत्म करने के मूड में नहीं हैं। राकेश टिकैत जैसे किसान नेता इस बारे में औपचारिक अधिसूचना और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी को लेकर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं।

आखिर क्या है एमएसपी?

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) किसी फसल का न्यूनतम मूल्य होता है जिस पर सरकार, किसानों से खरीदती है। यह किसानों की उत्पादन लागत के कम-से-कम डेढ़ गुना अधिक होती है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि सरकार, किसान से खरीदी जाने वाली फसल पर उसे एमएसपी से नीचे भुगतान नहीं करेगी।

गृह सचिव ने कश्मीर में सुरक्षा हालात की समीक्षा की

कौन तय करता है एमएसपी?

न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा सरकार की ओर से कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP)की सिफारिश पर साल में दो बार रबी और खरीफ के मौसम में की जाती है। गन्ने का समर्थन मूल्य गन्ना आयोग तय करता है।

क्यों तय किया जाता है एमएसपी?

किसी फसल की एमएसपी इसलिए तय की जाती है ताकि किसानों को किसी भी हालत में उनकी फसल का एक उच‍ित न्यूनतम मूल्य मिलता रहे।

रेलवे ने गति सीमा 15 किमी प्रतिघंटा बढ़ाई

किन फसलों का तय होता है एमएसपी?

सरकार फिलहाल 23 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करती है। इनमें अनाज की 7, दलहन की 5, तिलहन की 7 और 4 व्‍यावसायिक फसलों को शामिल किया गया है। धान, गेहूं, मक्का, जौ, बाजरा, चना, तुअर, मूंग, उड़द, मसूर, सरसों, सोयाबीन, सूरजमूखी, गन्ना, कपास, जूट आदि की फसलों के दाम सरकार तय करती है।

पीएम मोदी ने एक समिति बनाने की घोषणा की

NSA डोभाल ने पाकिस्तान और चीन पर साधा निशाना, कहा- अफगानिस्तान नहीं बने आतंकवाद की शरणस्थली

पीएम मोदी ने कहा है कि शून्य बजट आधारित कृषि को बढ़ावा देने, देश की बदलती जरूरतों के अनुसार खेती के तौर-तरीकों को बदलने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए एक समिति गठित की जाएगी। इस समिति में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, किसानों के प्रतिनिधियों के साथ साथ कृषि वैज्ञानिक और कृषि अर्थशास्त्री भी शामिल होंगे।

देश में कब शुरू हुआ एमएसपी का प्रावधान?

पूर्व प्रधानमंत्रियों और प्रख्यात लोगों के नाम पर थे पुरस्कार

वर्ष 1965 में हरित क्रांत‍ि के समय एमएसपी को घोषणा हुई थी। साल 1966-67 में गेहूं की खरीद के समय इसकी शुरुआत हुई। आयोग ने 2018-19 में खरीफ सीजन के दौरान मूल्य नीति रिपोर्ट में कानून बनाने का सुझाव दिया था।

जानें क्‍यों एमएसपी की कानूनी गारंटी देने में क्‍या है अड़चन?

न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की कई कारणों से कानूनी गारंटी नहीं दी जा सकती। उसके रास्‍ते में ये अड़चनें हैं

नकली करेंसी पर लगाम लगाने में ई रुपये की बड़ी भूमिका हो सकती है।रुपये छापने का खर्च भी घटेगा।

1- एमएसपी उस समय की उपज है, जब देश खाद्यान्न संकट से गुजर रहा था और सरकार किसानों से अनाज खरीद कर सार्वजनिक वितरण प्रणाली हेतु उसका भंडारण करती थी। आज अनाज की बहुलता है। यदि एमएसपी को कानूनी जामा पहनाया गया तो सरकार के लिए उसे खरीदना और भंडारण करना विकराल समस्या बन जाएगा।

2- सरकार उसका निर्यात भी नहीं कर पाएगी, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कृषि उत्पाद सस्ते हो सकते हैं। यह संभव नहीं कि सरकार महंगा खरीद कर सस्ते में निर्यात करे।

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन (फाइल फोटो)

3- यदि एमएसपी पर खरीद की कानूनी बाध्यता हो गई तो पैसा तो जनता की जेब से ही जाएगा और जो लोग एमएसपी को कानूनी बनाने का समर्थन कर रहे हैं, वे ही कल रोएंगे।

4- बड़े किसान छोटे किसानों से सस्ते दामों पर अनाज खरीद लेंगे और फिर सरकार को बढ़े एमएसपी पर बेचेंगे, जिससे मुट्ठीभर किसान पूंजीपति बन जाएंगे, जो टैक्स भी नहीं देंगे, क्योंकि कृषि आय पर टैक्स नहीं है। आज भी बड़े किसान अपनी अन्य आय को कृषि आय के रूप में दिखा कर टैक्स बचा रहे हैं और बोझ नौकरीपेशा या मध्य वर्ग पर पड़ रहा है।

Mangaluru News: सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट करना पार्षद को पड़ा महंगा

5- नए कानून किसानों को यह विकल्प देते थे कि वे अपना उत्पाद एमएसपी पर मंडी शुल्क देकर बेचें या बिना शुल्क दिए मंडी के बाहर देश में कहीं भी। यह व्यवस्था छोटे किसानों को मंडी शुल्क और मंडियों पर काबिज दबंग नेताओं/बिचौलियों से मुक्ति दिला सकती थी।

5- शांताकुमार समिति के अनुसार छह फीसद किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता है। यदि 94 प्रतिशत किसान एमएसपी से बाहर हैं तो क्या किसान नेता केवल छह फीसद किसानों के हितों को लेकर आंदोलनरत हैं?

जानि‍ए फसलों की MSP क्या है? कृषि कानून वापस होने के बाद भी क्यों गर्माया हुआ है यह मुद्दा; क्‍या है अड़चन

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) किसी फसल का न्यूनतम मूल्य होता है

केंद्र सरकार द्वारा तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले से किसान खुश तो हैं लेकिन अभी आंदोलन खत्म करने के मूड में नहीं हैं। राकेश टिकैत जैसे किसान नेता इस बारे में औपचारिक अधिसूचना और MSP की गारंटी को लेकर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं।

नई दिल्‍ली, आनलाइन डेस्‍क। केंद्र सरकार ने पिछले साल लागू हुए तीन नए कृषि कानूनों को वापस ले लिया है। पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान किया। केंद्र सरकार सितंबर 2020 में तीन नए कृषि विधेयक लाई थी, जो संसद की मंजूरी और राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद कानून बन गए लेकिन किसानों को ये कानून रास नहीं आए। उन्होंने उसी समय से इसका विरोध शुरू कर दिया। 26 नवंबर 2020 से काफी संख्‍या में किसान दिल्ली-हरियाणा बार्डर और गाजीपुर बार्डर पर लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, जिनमें बड़ी संख्‍या पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्‍तर के किसान थे।

मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा- फर्जी इंटरनेट मीडिया पोस्ट निष्पक्ष चुनाव के लिए बन रहे चुनौती

केंद्र सरकार द्वारा तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले से किसान खुश तो हैं, लेकिन अभी आंदोलन खत्म करने के मूड में नहीं हैं। राकेश टिकैत जैसे किसान नेता इस बारे में औपचारिक अधिसूचना और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी को लेकर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं।

आखिर क्या है एमएसपी?

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) किसी फसल का न्यूनतम मूल्य होता है जिस पर सरकार, किसानों से खरीदती है। यह किसानों की उत्पादन लागत के कम-से-कम डेढ़ गुना अधिक होती है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि सरकार, किसान से खरीदी जाने वाली फसल पर उसे एमएसपी से नीचे भुगतान नहीं करेगी।

गृह सचिव ने कश्मीर में सुरक्षा हालात की समीक्षा की

कौन तय करता है एमएसपी?

न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा सरकार की ओर से कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP)की सिफारिश पर साल में दो बार रबी और खरीफ के मौसम में की जाती है। गन्ने का समर्थन मूल्य गन्ना आयोग तय करता है।

क्यों तय किया जाता है एमएसपी?

किसी फसल की एमएसपी इसलिए तय की जाती है ताकि किसानों को किसी भी हालत में उनकी फसल का एक उच‍ित न्यूनतम मूल्य मिलता रहे।

रेलवे ने गति सीमा 15 किमी प्रतिघंटा बढ़ाई

किन फसलों का तय होता है एमएसपी?

सरकार फिलहाल 23 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करती है। इनमें अनाज की 7, दलहन की 5, तिलहन की 7 और 4 व्‍यावसायिक फसलों को शामिल किया गया है। धान, गेहूं, मक्का, जौ, बाजरा, चना, तुअर, मूंग, उड़द, मसूर, सरसों, सोयाबीन, सूरजमूखी, गन्ना, कपास, जूट आदि की फसलों के दाम सरकार तय करती है।

पीएम मोदी ने एक समिति बनाने की घोषणा की

NSA डोभाल ने पाकिस्तान और चीन पर साधा निशाना, कहा- अफगानिस्तान नहीं बने आतंकवाद की शरणस्थली

पीएम मोदी ने कहा है कि शून्य बजट आधारित कृषि को बढ़ावा देने, देश की बदलती जरूरतों के अनुसार खेती के तौर-तरीकों को बदलने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए एक समिति गठित की जाएगी। इस समिति में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, किसानों के प्रतिनिधियों के साथ साथ कृषि वैज्ञानिक और कृषि अर्थशास्त्री भी शामिल होंगे।

देश में कब शुरू हुआ एमएसपी का प्रावधान?

पूर्व प्रधानमंत्रियों और प्रख्यात लोगों के नाम पर थे पुरस्कार

वर्ष 1965 में हरित क्रांत‍ि के समय एमएसपी को घोषणा हुई थी। साल 1966-67 में गेहूं की खरीद के समय इसकी शुरुआत हुई। आयोग ने 2018-19 में खरीफ सीजन के दौरान मूल्य नीति रिपोर्ट में कानून बनाने का सुझाव दिया था।

जानें क्‍यों एमएसपी की कानूनी गारंटी देने में क्‍या है अड़चन?

न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की कई कारणों से कानूनी गारंटी नहीं दी जा सकती। उसके रास्‍ते में ये अड़चनें हैं

नकली करेंसी पर लगाम लगाने में ई रुपये की बड़ी भूमिका हो सकती है।रुपये छापने का खर्च भी घटेगा।

1- एमएसपी उस समय की उपज है, जब देश खाद्यान्न संकट से गुजर रहा था और सरकार किसानों से अनाज खरीद कर सार्वजनिक वितरण प्रणाली हेतु उसका भंडारण करती थी। आज अनाज की बहुलता है। यदि एमएसपी को कानूनी जामा पहनाया गया तो सरकार के लिए उसे खरीदना और भंडारण करना विकराल समस्या बन जाएगा।

2- सरकार उसका निर्यात भी नहीं कर पाएगी, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कृषि उत्पाद सस्ते हो सकते हैं। यह संभव नहीं कि सरकार महंगा खरीद कर सस्ते में निर्यात करे।

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन (फाइल फोटो)

3- यदि एमएसपी पर खरीद की कानूनी बाध्यता हो गई तो पैसा तो जनता की जेब से ही जाएगा और जो लोग एमएसपी को कानूनी बनाने का समर्थन कर रहे हैं, वे ही कल रोएंगे।

4- बड़े किसान छोटे किसानों से सस्ते दामों पर अनाज खरीद लेंगे और फिर सरकार को बढ़े एमएसपी पर बेचेंगे, जिससे मुट्ठीभर किसान पूंजीपति बन जाएंगे, जो टैक्स भी नहीं देंगे, क्योंकि कृषि आय पर टैक्स नहीं है। आज भी बड़े किसान अपनी अन्य आय को कृषि आय के रूप में दिखा कर टैक्स बचा रहे हैं और बोझ नौकरीपेशा या मध्य वर्ग पर पड़ रहा है।

Mangaluru News: सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट करना पार्षद को पड़ा महंगा

5- नए कानून किसानों को यह विकल्प देते थे कि वे अपना उत्पाद एमएसपी पर मंडी शुल्क देकर बेचें या बिना शुल्क दिए मंडी के बाहर देश में कहीं भी। यह व्यवस्था छोटे किसानों को मंडी शुल्क और मंडियों पर काबिज दबंग नेताओं/बिचौलियों से मुक्ति दिला सकती थी।

5- शांताकुमार समिति के अनुसार छह फीसद किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता है। यदि 94 प्रतिशत किसान एमएसपी से बाहर हैं तो क्या किसान नेता केवल छह फीसद किसानों के हितों को लेकर आंदोलनरत हैं?

रेटिंग: 4.55
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 830
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा| अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *