वित्त प्रबंधन

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जिला आपदा प्रबंधन सलाहकार (संविदा पद) की भर्ती हेतु साक्षात्कार के लिए पात्र अभियार्थियों को साक्षात्कार दिनांक 25/02/2022 को समय 12:00 बजे आस्था हाल में उपस्थित होने की सुचना । कार्यालय कलेक्टर (वित्त शाखा) जिला बस्तर(छ.ग.)
वित्तीय प्रबंधन समाधान
हम अपने एसएमई ग्राहकों को वित्तीय नियोजन के लिए विशेषज्ञ सलाहकार सेवाएं प्रदान करते हैं। इसका उद्देश्य आपको अपने व्यवसाय के लिए क्रेडिट और वित्तीय रणनीतियों को समझने और योजना बनाने में मदद करना है ताकि आप सोच-समझकर निर्णय ले सकें।
हम कई प्रकार के क्षेत्रों को कवर करने वाले समाधान प्रदान करते हैं जैसे कि:
- ऋण संरचना
- नकद स्थिति में सुधार और ब्याज लागत में कमी
- इस क्षेत्र के लिए सरकार के प्रोत्साहन उपलब्ध हैं
जोखिम प्रबंधन समाधान
हमारे पास अनुकूलित बीमा समाधानों के माध्यम से जोखिम कम करने वाली रणनीतियों के लिए इन-हाउस विशेषज्ञता है। इसका उद्देश्य व्यापार और परिस्थितिजन्य जोखिमों को कम करने के लिए संतुलित रणनीति बनाना है।
महिंद्रा इंश्योरेंस ब्रोकर्स लिमिटेड की हमारी सहायक कंपनियों के माध्यम से पेशकश किए जाने वाले जोखिम न्यूनीकरण समाधान नीचे सूचीबद्ध हैं।
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वित्त प्रबंधन
भारत की 9 करोड़ से अधिक की आबादी 60 साल से ऊपर की आयु वाले लोगों की है और 2025 तक इस वर्ग में और 11 करोड़ लोगों के जुड़ने का अनुमान है।
इससे यह साफ हो जाता है कि भारत के लिए उम्रदराज लोगों के संकट की शुरुआत होने जा रही है। यह उस तरीके का संकट नहीं है जो पश्चिमी देशों में देखने को मिलता है बल्कि भारत के संदर्भ में समस्या यह है कि ये लोग सेवानिवृत्ति के बाद अपना भरण पोषण किस तरीके से करेंगे।
देश की तकरीबन 45 करोड़ की कुल कार्य आबादी में से केवल 2.4 करोड़ लोग, जो प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष तौर पर (उदाहरण के लिए स्कूली शिक्षक) सरकार से रोजगार प्राप्त हैं, सेवानिवृत्ति के बाद अपना खर्चा उठा पाएंगे क्योंकि इन्हें अपनी आखिरी तनख्वाह का 50 फीसदी आजीवन पेंशन के तौर पर मिलेगा।
कर्मचारी पेंशन फंड के दायरे में आने वाले 1.5 करोड़ लोगों को भी इस वर्ग में शामिल नहीं किया जा सकता है क्योंकि ईपीएफ के जरिए औसतन 26,000 रुपये के सेवानिवृत्ति भुगतान से यह स्पष्ट है कि इन लोगों को 200 रुपये की मासिक पेंशन भी नहीं मिल सकेगी।
यही वजह है कि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने नई पेंशन नीति के तहत खाता खोलने वाले हर व्यक्ति को 3 सालों तक सालाना 1,000 रुपये का सहयोग देने की जो घोषणा की है उसका स्वागत किया गया है। कुछ साल पहले राजस्थान ने भी इसी तरह की एक योजना की शुरुआत की है हालांकि वहां सरकार की ओर से सहयोग 30 से 40 सालों के लिए वित्त प्रबंधन है।
इनवेस्ट इंडिया इकनॉमिक फाउंडेशन द्वारा किए गए एक अखिल भारतीय सर्वेक्षण से पता चलता है कि करीब 3 करोड़ लोग ऐसे हैं जो एनपीएस के मौजूदा स्वरूप के पैसे जमा करना चाहते हैं (सालाना 6,000 रुपये का न्यूनतम सहयोग) और 6.1 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इसमें 3,000 रुपये सालाना तक जमा कर सकते हैं।
अगर ऐसा माना जाए कि एनपीएस के मौजूदा ढांचे में बदलाव किया जाएगा और सालाना औसत बचत 3,000 रुपये रखी जाएगी तो ऐसे में 3 फीसदी के वास्तविक रिटर्न की दर से 30 सालों में एनपीएस का खजाना तकरीबन 285 अरब डॉलर का हो जाएगा। वहीं एक आम आदमी अगर 30 सालों तक इतनी ही बचत करता है तो उसे 15 सालों के लिए हर महीने 1,045 रुपये की वित्त प्रबंधन पेंशन मिल सकती है।
मान लें कि कोई व्यक्ति अपनी तनख्वाह का 5 फीसदी एनपीएस में जमा करता है तो वित्त प्रबंधन उसे मौजूदा मासिक आय की 21 फीसदी रकम पेंशन के तौर पर मिलेगी। हालांकि यह रकम भी बहुत छोटी है मगर कुछ नहीं से तो कुछ बेहतर है और केंद्र या फिर राज्य सरकारों की ओर से इसमें जितना अधिक योगदान मिलेगा यह रकम उतनी ही बड़ी होगी।
उदाहरण के लिए अगर सरकार सालाना इस खाते में 1,000 रुपये का योगदान करती है तो मासिक पेंशन बढ़कर 1,394 रुपये हो जाएगी। मगर फिर भी ऐसा क्यों है कि फिलहाल एनपीएस के केवल 3,000 सदस्य ही हैं और आखिर क्या वजह है कि सरकार पिछले पांच सालों में पेंशन फंड रेग्युलेटरी अथॉरिटी बिल पास नहीं करवा पाई है।
अधिकांश सुधारक और अंतरिम पीएफआरडीए के सदस्य भी इसे एक बड़ी कमी मानते हैं। कुछ लोगों की दलील है कि वित्त प्रबंधन पीएफआरडीए के पास किसी तरह के वैधानिक अधिकार नहीं हैं, इस वजह से अगर कोई पेंशन फंड प्रबंधक फंड लेकर भाग जाता है तो ऐसी स्थिति में वह अपनी ओर से तत्काल कोई कार्रवाई नहीं कर वित्त प्रबंधन सकता है।
इस मसले को दीवानी अदालत में दाखिल करना होगा और वहीं इस पर कोई फैसला लिया जा सकेगा और इसमें काफी समय लग सकता है। यह काफी हद तक सही भी है मगर कुछ लोगों का कहना है कि यह दलील उचित नहीं है क्योंकि रकम एक ट्रस्ट फंड में जमा होती है और निवेश फैसलों पर कड़ी नजर रखी जाती है। अगर आप इसे सच मान भी लें तो भी वित्त मंत्रालय की इस शाखा के बारे में काफी कुछ कहने लायक है।
इसकी वजह बहुत साधारण सी है: भले ही यह अनिवार्य कर दिया गया हो कि जनवरी 2004 के बाद सरकारी नौकरी में आने वाले सभी लोग सरकारी एनपीएस के सदस्य होंगे (उनकी पेंशन उनकी आखिरी तनख्वाह पर नहीं बल्कि उनके द्वारा इस खाते में जमा की गई रकम पर निर्भर करेगी) पर अब भी यह केंद्र सरकार और 3-4 राज्यों के 7 लाख कर्मचारियों के लिए ही शुरू हो पाया है।
अव्वल तो केंद्र समेत कई राज्यों ने अब तक लोगों के लिए एनपीएस खाता नहीं खोला है वहीं अधिकांश राज्यों में जहां ये खाते खोले गए हैं, वहां अब तक पेंशन के लिए राशि जमा करनी शुरू नहीं की गई है। इसका मतलब यह है कि वे फिलहाल यह फैसला नहीं कर सकते हैं कि वे किस फंड प्रबंधक के पास अपनी रकम जमा कराएंगे या फिर वे अपनी बचत से किस तरीके का निवेश करेंगे।
दूसरी ओर पीएफआरडीए वित्त मंत्रालय का एक हिस्सा है और इसकी कमान सचिव या फिर अतिरिक्त सचिव रैंक के अधिकारी होते हैं, इस काम में ज्यादा सक्षम नजर वित्त प्रबंधन आता है। इस तरह से देश में पीएफआरडीए कानून लागू किया जाना एक बेहतर विकल्प हो सकता है मगर फिलहाल यह एक ज्वलंत मुद्दा नहीं है।
एनपीएस की राह में सबसे बड़ी बाधा इससे जुड़े प्रोत्साहन को लेकर है। फिलहाल सेंट्रल रिकॉर्ड कीपिंग एजेंसी को सबसे अधिक कमीशन (हर खाते के लिए पहले साल में 440 रुपये और प्रति तिमाही एक सौदा मानते हुए सालाना 390 रुपये) मिलता है। जबकि खाता खोलने वाले ग्राहकों के लिए वितरकों को पहले साल में 120 रुपये और उसके बाद सालाना 80 रुपये मिलते हैं।
वहीं फंड प्रबंधकों को 0.009 फीसदी (10 लाख रुपये के वित्त प्रबंधन पर 9 रुपये) दिया जाता है। यह जीवन बीमा और म्युचुअल फंड जैसे उत्पादों पर उन्हें मिलने वाले कमीशन से काफी कम है।
वित्त मंत्री ने 3 सालों के लिए 1,000 रुपये देने का जो वादा किया है उससे एसबीआई और कोटक के लिए अधिक प्रोत्साहन का मसला हल नहीं होता है। और चूंकि ये 3,000 रुपये 30 से 40 साल वित्त प्रबंधन बाद इस्तेमाल किए जा सकेंगे तो कोई भी इसमें खास उत्साह नहीं दिखा पा रहा है।
सार्वजनिक वित्त पोषित अनुसंधान संस्थान (पीएफआरआई)
सार्वजनिक वित्त पोषित संस्थानों, विश्वविद्यालयों , आईआईटी, आईआईएस, बैंगलोर, क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कालेज (हस्पतालों को छोड़कर) डीएसआईआर के साथ एक साधारण पंजीकरण के माध्यम से रिसर्च के उद्देश्य के लिए इनपुट/उपकरणों की खरीद, अतिरिक्त एवं सहायकों एवं उपभोग्यों पर सीमा शुल्क एवं केन्द्रीय उत्पाद शुल्क की छूट प्राप्त करने के लिए पात्र हैं। सार्वजनिक वित्त पोषित संस्थान/सांगठन जो डीएसआईआर के साथ विधिवत रूप से पंजीकृत हैं वे संगत अधिसूचनाओं के अनुसार आर एंड डी उत्पादों की ड्यूटी फ्री आयात के लिए प्रमाणित कर सकता है।
दिशा निर्देश:
पीएफआरआई स्कीम के अंतर्गत आवेदन करने के लिए दिशा निर्देश।
ऑनलाईन आवेदन के लिए पंजीकरण:
डीएसआईआर के पीएफआरआई के तहत पंजीकरण के लिए प्रथम बार आने वाली शोध संस्थाएं अथवा संगठन।
आनलाईन आवेदन का प्रस्तुतीकरण:
डीएसआईआर में पीएफआरआई स्कीम के तहत पंजीकरण अथवा नवीकरण के लिए आवेदन करने के इच्छुक संस्थान/संगठन से अनुरोध है कि वे अपने आवेदन को ऑनलाईन प्रस्तुत करें। आवेदन को ऑनलाईन प्रस्तुत करने पर वे इसका प्रिंट आउट लें और संस्थान के प्रमुख से हस्ताक्षर करवाएं और एक हार्डकापी सभी संबंधित दस्तावेजों, अनुबंधों ओर संलग्नकों इत्यादि के साथ डीएसआईआर को स्पीड पोस्ट के माध्यम से भेज दें।
अतिरिक्त सूचना के लिए संपर्क करें:
दूरभाष: (011) 26529753, 26590656
फैक्स: (011) 26960629
ई-मेल: ksm[at]nic[dot]in
डा. राजेश कुमार
वैज्ञानिक 'ई' एवं सदस्य सचिव
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान विभाग
कमरा नं 15- बी, एस एंड टी ब्लॉक 1
टेक्नोलॉजी भवन, न्यू मैहरोली मार्ग
नई दिल्ली – 110016
दूरभाष: (011) 26565329, 26590266
फैक्स: (011) 26960629
ई-मेल: rajeshkr38[at]nic[dot]in