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रूस दलालों

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चित्रणः रमनदीप कौर और प्रज्ञा घोष । दिप्रिंट

यूक्रेन छोड़ने वाले भारतीय छात्र रूस में शिक्षा जारी रख सकते हैं: रूसी राजनयिक

उन्होंने रूसी तेल आयात पर जयशंकर की टिप्पणी की भी सराहना की. जयशंकर ने कहा कि भारत सरकार एक जिम्मेदार सरकार है और इसे भारतीय उपभोक्ताओं के हितों की देखभाल करनी है. रूसी महावाणिज्य दूत ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कैसे छात्र पढ़ाई के लिए रूस जाते रहते हैं.

चेन्नई (तमिलनाडु) : फरवरी में यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के बाद पहली बार, रूस ने गुरुवार को कहा कि यूक्रेन छोड़ने वाले भारतीय छात्र रूस में अपनी शिक्षा जारी रख सकते हैं. उन्होंने कहा कि चिकित्सा पाठ्यक्रम है दोनों देशों में समान है. रूसी महावाणिज्यदूत ओलेग अवदीव ने चेन्नई में कहा कि यूक्रेन छोड़ने वाले भारतीय छात्र रूस में अपनी शिक्षा जारी रख सकते हैं क्योंकि चिकित्सा पाठ्यक्रम लगभग समान है. उन्होंने कहा कि रूस में भारतीय छात्रों का स्वागत है.

फरवरी 2022 के अंत में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया और कई छात्रों को यूक्रेन से भारत आना पड़ा. इनमें हजारों भारतीय मेडिकल छात्र थे. जिनका भविष्य अभी अधर में लटका हुआ है. रूसी तेल निर्यात पर एक सवाल के जवाब में, रूसी राजनयिक ने कहा कि इस साल की शुरुआत से, रूसी तेल का निर्यात 2 से बढ़कर 22 पीसी हो गया है, जो बहुत बड़ी वृद्धि है. उन्होंने कहा कि अब रूस ने कच्चे तेल के प्रमुख उत्पादकों के रूप में इराक और सऊदी अरब का स्थान ले लिया है.

उन्होंने रूसी तेल आयात पर जयशंकर की टिप्पणी की भी सराहना की. जयशंकर ने कहा कि भारत सरकार एक जिम्मेदार सरकार है और इसे भारतीय उपभोक्ताओं के हितों की देखभाल करनी है. रूसी महावाणिज्य दूत ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कैसे छात्र पढ़ाई के लिए रूस जाते रहते हैं. उन्होंने कहा कि जहां तक ​​छात्रों की बात है तो छात्र पढ़ाई के लिए रूस जाते रहते हैं. और साल दर साल इनकी संख्या में बढ़ोतरी ही हुई है. हर साल, कई भारतीय छात्र चिकित्सा और अन्य विशिष्ट पाठ्यक्रमों का अध्ययन करने के लिए यूक्रेन और रूस दोनों की यात्रा करते हैं.

ओलेग अवदीव ने बताया कि काफी लोग पढ़ाई के लिए रूस जाते हैं. रूस में ज्यादा से ज्यादा छात्र स्कॉलरशिप के लिए आवेदन कर रहे हैं. हर साल, कई भारतीय छात्र मेडिकल और कई कोर्स की पढ़ाई रूस दलालों करने के लिए यूक्रेन और रूस दोनों देशों का रुख करते हैं. युद्ध के चलते छात्र पढ़ाई पूरी करने के लिए यूक्रेन वापसी नहीं कर पा रहे हैं. भारत से कई छात्र यूक्रेन में पढ़ाई करने जाते रहे हैं. भारत के मुकाबले यूक्रेन में एमबीबीएस (MBBS) से लेकर अन्य मेडिकल शिक्षा पाना काफी सस्ता है.

हजारों भारतीयों की पढ़ाई हुई प्रभावित : भारत के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस करने के लिए जहां करीब 80 लाख रुपये देने होते हैं यूक्रेन में यह करीब 25 लाख रुपये में हो जाती है.जानकारी के मुताबिक युद्ध के दौरान कुल 90 फ्लाइट्स की मदद से 22 हज़ार 500 भारतीयों को यूक्रेन से भारत लाया गया. इसमें सबसे ज्यादा वह लोग थे जो यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे. अब यह छात्र पिछले 9 महीनों से अपनी पढ़ाई पूरी होने के लिए कानूनी लड़ाई भी लड़ रहे हैं.

भारत ने फिर रूस का दिया साथ, यूक्रेन को क्षतिपूर्ति वाले प्रस्ताव पर वोटिंग से बनाई दूरी

संयुक्त राष्ट्रः भारत सोमवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में पेश उस मसौदा प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहा, जिसमें रूस को यूक्रेन पर हमला करके अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने के लिए जवाबदेह ठहराने और कीव को युद्ध से हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति करने का आह्वान किया गया था। यूक्रेन द्वारा पेश मसौदा प्रस्ताव ‘फरदरेंस ऑफ रेमेडी एंड रिपेरेशन फॉर अग्रेशन अगेंस्ट यूक्रेन' को 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सोमवार को मंजूरी दे दी। 94 वोट प्रस्ताव के पक्ष में और 14 इसके खिलाफ पड़े। वहीं, 73 सदस्य मतदान में अनुपस्थित रहे, जिनमें भारत, बांग्लादेश, भूटान, ब्राजील, मिस्र, इंडोनेशिया, इजराइल, नेपाल, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका शामिल हैं।

बेलारूस, चीन, क्यूबा, उत्तर कोरिया, ईरान, रूस और सीरिया ने इस मसौदा प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। भारत ने मतदान से दूर रहने के अपने फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए सवाल किया कि क्या क्षतिपूर्ति की प्रक्रिया टकराव का हल निकालने की कोशिशों में योगदान देगी। उसने इस तरह के प्रस्तावों के माध्यम से मिसाल कायम करने के प्रयासों के प्रति आगाह भी किया। संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने कहा, “हमें निष्पक्ष रूप से विचार करने की जरूरत है कि क्या महासभा में मतदान के माध्यम से एक क्षतिपूर्ति प्रक्रिया संघर्ष के समाधान के प्रयासों में योगदान देगी।

इसके अलावा, महासभा में लाए गए एक प्रस्ताव के जरिये इस तरह की प्रक्रिया की कानूनी वैधता को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है।” कंबोज ने कहा, “इसलिए हमें अंतरराष्ट्रीय कानून के पर्याप्त पुनरीक्षण के बिना ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनानी चाहिए या मिसाल कायम नहीं करनी चाहिए, जिसका संयुक्त राष्ट्र के भविष्य के कामकाज और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली पर प्रभाव पड़ता है। हमें उन कदमों से बचने की जरूरत है, जो इस संघर्ष के अंत के लिए बातचीत की संभावना को घटाते हैं या फिर खतरे में डालते हैं।”

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Russia Ukraine War: यूक्रेन में कब्जे वाले क्षेत्र में क्रेमलिन अधिकारियों ने मनाया ‘रूस दिवस’, पासपोर्ट बांटने का काम शुरू

Ukraine War: दक्षिण और पूर्व में कब्जे वाले शहरों में, रूस ने रूबल (रूसी मुद्रा) को आधिकारिक मुद्रा के रूप में पेश किया, रूसी समाचार प्रसारित किए गए और एक रूसी स्कूल पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए भी कई कदम उठाए हैं.

Russia Ukraine War: यूक्रेन में कब्जे वाले क्षेत्र में क्रेमलिन अधिकारियों ने मनाया

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है. इस बीच रूस ने दुन‍ियाभर के पर्यटकों को आमंत्रि‍त करने के लि‍ए यह वीड‍ियो पोस्‍ट क‍िया है.

TV9 Bharatvarsh | Edited By: Ramdeep Mishra

Updated on: Jun 13, 2022 | 10:42 AM

रूस (Russia) के कब्जे वाले दक्षिणी यूक्रेन क्षेत्र में क्रेमलिन द्वारा तैनात किए गए अधिकारियों ने रविवार को रूस दिवस मनाया और एक शहर के उन निवासियों को रूसी पासपोर्ट जारी करना शुरू कर दिया, जिन्होंने उसके लिए अनुरोध किया था. रूस देश के कब्जे वाले हिस्सों पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है. रूस की सरकारी समाचार एजेंसी आरआईए नोवोस्ती के अनुसार, खेरसॉन शहर के एक बड़े चौक पर रूसी बैंड ने रूस दिवस मनाने के लिए प्रस्तुति दी. सोवियत संघ के विघटन के बाद एक संप्रभु देश के रूप में रूस के उदय को चिह्नित करने के लिए रूस दिवस मनाया जाता है.

जापोरिज्जिया में तैनात रूस के अधिकारियों ने मेलिटोपोल शहर में एक रूसी झंडा फहराया. यूक्रेन के अन्य कब्जे वाले हिस्सों में भी रूस दिवस मनाया गया, जिसमें मारियुपोल का तबाह दक्षिणी बंदरगाह भी शामिल है. वहां बाहरी क्षेत्रों में रंगो से रूस के झंडे बनाए गए हैं और शहर की ओर जाने वाले राजमार्ग पर भी रूसी ध्वज लगाए गए. इसके अलावा, मेलिटोपोल में रूसी प्रशासन ने रूसी नागरिकता के लिए आवेदन करने वाले लोगों को रूसी पासपोर्ट जारी करना शुरू कर दिया है.

आरआईए नोवोस्ती ने एक रूस समर्थित अधिकारी का वीडियो साझा किया, जिसमें वह नए रूसी नागरिकों को बधाई देते नजर आ रहे हैं. उन्होंने नागरिकों से कहा, रूस कहीं नहीं जाएगा. हम यहां बेहतरी के लिए हैं. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस साल की शुरुआत में खेरसॉन और जापोरिज्जिया क्षेत्रों के निवासियों को रूसी नागरिकता देने का काम तेज करने की बात कही थी.

मेलिटोपोल में पुलिस मुख्यालय के पास कूड़ेदान में विस्फोट हुआ

दक्षिण और पूर्व में कब्जे वाले शहरों में, रूस ने रूबल (रूसी मुद्रा) को आधिकारिक मुद्रा के रूप में पेश किया, रूसी समाचार प्रसारित किए गए और एक रूसी स्कूल पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए भी कई कदम उठाए हैं. स्थानीय निवासियों के बीच विद्रोह के संकेतों और विरोध के बावजूद, खेरसॉन और जापोरिज्जिया क्षेत्रों में क्रेमलिन के प्रशासकों ने क्षेत्रों को रूस में शामिल करने की योजना बनाई है.

इस बीच, रूस द्वारा तैनात किए गए अधिकारियों ने रविवार को बताया कि मेलिटोपोल में शहर के पुलिस मुख्यालय के पास कूड़ेदान में एक विस्फोट हुआ, जिसमें दो स्थानीय लोग घायल हो गए. रूस के नियंत्रण वाले बर्दियांस्क शहर में एक विद्युत सबस्टेशन में भी एक विस्फोट हुआ. क्रेमलिन समर्थित प्रशासन ने इसे एक आतंकवादी हमला बताया और अधिकारियों ने कहा कि शहर के कुछ हिस्सों में बिजली बंद कर दी गई है.

रूस-यूक्रेन युद्ध पर तीन तरीके से हो सकता है विचार- शुरुआत ‘खराब छवि वाले’ पुतिन से

पुतिन की महत्वाकांक्षाएं भले परवान न चढ़ीं हों, लेकिन मैकाइंडर ने जर्मनी और रूस के बीच वास्तव में ‘बफर’ जोन’ बनाने का जो सुझाव दिया था, वह आज भी प्रासंगिक बना हुआ है

चित्रणः रमनदीप कौर और प्रज्ञा घोष । दिप्रिंट

यूक्रेन युद्ध पर तीन पहलुओं से विचार किया जा सकता है. पहला तो जाहिर है कि व्लादिमीर पुतिन एक बुरे शख्स हैं जिन्होंने एक स्वतंत्र को देश को रहस्यपूर्ण ढंग से एक देश न माते हुए उस पर हमला कर दिया है. उन्होंने पश्चिमी खेमे में शामिल होने के इच्छुक यूक्रेनियों का गलत आकलन किया और सामरिक गलती कर बैठे. इसका मतलब यह हुआ कि अब उन्हें हमले को और खतरनाक रूप से तेज करना पड़ेगा और/या अपने घर में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. जो भी हो, उनके देश और उसकी अर्थव्यवस्था को—जिसे पश्चिमी देशों ने अछूत घोषित कर दिया है— कठिन भविष्य का सामना करना पड़ेगा. कोई भी विवेकपूर्ण नेता अपनी जनता को ऐसी दुरावस्था में डालना नहीं चाहेगा.

दूसरा पहलू भू-राजनीति से जुड़ा है जिसके लिहाज से इन घटनाओं को आंका जा सकता है. तीन दशक पहले जब सोवियत संघ का विघटन हुआ था, हेनरी किसिंगर और बिग्न्यु ब्रेज़ेंस्की सरीखे जानकारों ने ने कहा था कि इस विघटन का अर्थ यह नहीं है कि रूस से सामरिक खतरा खत्म हो गया. वास्तव में, वे 1904 में ब्रिटिश साम्राज्यवादी भूगोलशास्त्री हलफोर्ड मैकिंडर द्वारा दिए गए इस सिद्धांत को आगे बढ़ा रहे थे कि पृथ्वी दो हिस्सों में बंटी है. एक हिस्सा यूरेशियाई ‘हार्टलैंड’ है जिसमें पूर्वी यूरोप और अंतर्देशीय एशिया शामिल है; और दूसरा हिस्सा समुद्र से घिरे अमेरिका जैसे भूभाग का है जो नौसैनिक ताकत पर निर्भर हैं. आज के संदर्भ में प्रासंगिक बात उनकी यह है कि उन्होंने स्वतंत्र देशों की एक पट्टी बनाने का सुझाव दिया था, जो जर्मनी और रूस के बीच वास्तव में ‘बफर’ जोन’ का काम करे.

पश्चिमी ताकतों ने पिछले तीन दशकों में इस सुझाव की अनदेखी की और यूरोपीय संघ तथा ‘नाटो’ का पूरब की ओर विस्तार करके रूस के दरवाजे तक पहुंचा दिया. वास्तव में, वे चाहती हैं कि यूरेशियाई ‘हार्टलैंड’ ताकत यानी रूस पुराने सोवियत संघ की तरह उन्हें चुनौती देने की स्थिति में न रह जाए. पुतिन ने चेतावनी दी थी कि उनके देश पर दबिश न बढ़ाई जाए. अपने एक अहम भाषण में उन्होंने यूरेशियाई ‘हार्टलैंड’ के विचार का खास तौर से जिक्र किया था, और रूस के पश्चिम में रूसी प्रभाव क्षेत्र बनाना चाहते थे. पिछले कुछ महीनों से किसिंगर रूस और पश्चिमी देशों के बीच तटस्थ देशों का ‘बफर ज़ोन’ बनाए रखने पर ज़ोर दे रहे थे, लेकिन उसका कोई असर नहीं हो रहा था. अब आगे यह हो सकता है कि युद्ध इस शर्त पर खत्म हो कि यूक्रेन (और बेलारूस) को बफर ज़ोन घोषित किया जाए, जो रूस चाहता रहा है. देखने वाली बात यह होगी कि रूस के खिलाफ प्रतिबंध इस तरह के समझौते के बाद भी जारी रहेंगे या नहीं. अगर वे जारी रहते हैं तो इसका अर्थ यह होगा कि रूस की घेराबंदी करने की भू-राजनीतिक मंशा कायम है.

तीसरा पहलू सभ्यतागत विचारों से जुड़ा है जिनके चश्मे से यूरोपीय नव दक्षिणपंथ और उसके कई रूपों के विकास पर नज़र डाली जा सकती है. हंगरी जैसे देशों में सत्ता उन दलों ने हासिल कर ली है जो प्रभावी उदारवादी लोकतांत्रिक विचार को चुनौती देते रहे हैं, और दूसरी जगहों पर भी जर्मनी, फ्रांस, और स्वीडन में स्थानीय-राष्ट्रीय दृष्टिकोण वाले दलों के जरिए आकर्षण बटोर रहे हैं. इस चुनौती के लिए वैचारिक आधार एकदम भिन्न बौद्धिक परंपरा से मिलता है जिसमें वैकल्पिक विमर्श एक सदी पहले रूसी, जर्मन, और फ्रांसीसी दर्शनिकों, इतिहासकारों, और पत्रकारों ने तय किया था, जिनमें से कुछ ने अपनी पहचान नाजियों और यूरोपीय फासीवाद के साथ जोड़ ली थी.

ये लेखक उदारवाद, समतावाद, और व्यक्तिगत रूस दलालों स्वाधीनताओं पर ज़ोर देने वाले ‘मानवाधिकारों’ की अवधारणाओं पर सवाल उठाते है, और इसकी जगह समाज के प्रति सामुदायिक दृष्टि, हिंसा के उपयोग, राष्ट्रीय महानता या नियति, और नेता की व्यक्तिपूजा के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करते हैं. वे ‘राष्ट्रीय लोकलुभावनवाद के विद्रोह’ की बात करते हैं और सार्वभौमिक मूल्यों को ‘भिन्नता का विनाश’ बताकर खारिज करते हैं, और स्थानीय-राष्ट्रवाद की वकालत करते हैं जो वास्तविक दुनिया से मुक्त रूस दलालों हो. और यह सब मजबूत भविष्य की खातिर किया जाता है.

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भारत में इस सबकी प्रतिध्वनि स्वतः गूंज रही है. इसे विचारों और रुझानों में (तथ्यों से बेपरवाह दावों में) सुना जा सकता है, जो व्यक्तिगत अधिकारों को प्राथमिकता देने वाले उदार लोकतंत्र की मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था को चुनौती देते हैं. लेकिन पुतिन खुद ऐसे लेखकों को उदधृत करने के माध्यम बने हों और उनके विचारों को रूस को विश्व विकास का स्वायत्त केंद्र बनाने के अपने लक्ष्य के लिए इस्तेमाल कर रहे हों. फिर भी, उनके भाषणों में यूरेशियाई और दूसरी अवधारणाओं का जिक्र होता है और वे रूस के इतिहास को यूक्रेन के इतिहास के बरअक्स रखते हैं, जो ‘केवल तथ्यों’ से आगे भी जाते हैं. उनकी महत्वाकांक्षाएं भले परवान न चढ़ीं हों, लेकिन मैकिंडर की विश्वदृष्टि और बड़ी वैचारिक चुनौतियां कायम हैं.

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