अनुगामी रोक

कश्मीर में जन्मा कल्याणी के चालुक्य राजा विक्रमादित्य का दरबारी कवि। उसने 'विक्रमांक-चरित' नामक रचना में अपने संरक्षक के युद्धों और आखेट यात्राओं का वर्णन किया है। उक्त पुस्तक की प्रतिलिपि वृह्लर को एक जैन पुस्तकालय में उपलब्ध हुई थी और उसने उसका सम्पादन भी किया था।
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स्टॉप-लॉस ऑर्डर (Stop Loss Order) मतलब जब स्टॉक एक निश्चित कीमत पर पहुंच जाता है तो उसे खरीदने या बेचने के लिए एक ऑर्डर दिया जाता है जिसे स्टॉप-लॉस ऑर्डर कहते है । स्टॉप-लॉस एक सुरक्षा स्थिति पर निवेशक के नुकसान को सीमित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। उदाहरण के लिए, जिस कीमत पर आपने स्टॉक खरीदा था, उस कीमत से १०% कम के लिए स्टॉप-लॉस ऑर्डर (Stop Loss Order) सेट करना आपके नुकसान को १०% तक सीमित कर देगा।
मान लीजिए आपने अभी-अभी टाटा मोटर्स के शेयर्स ₹ ३०० प्रति शेयर पर खरीदा है। स्टॉक खरीदने के ठीक बाद, आप ₹ २७० के लिए स्टॉप-लॉस ऑर्डर दर्ज करते हैं। यदि स्टॉक ₹ २७० से नीचे आता है, तो आपके शेयर प्रचलित बाजार मूल्य पर बेचे जाएंगे।
स्टॉप-लिमिट ऑर्डर स्टॉप-लॉस ऑर्डर के (Stop Loss Order) समान हैं। हालाँकि, जैसा कि उनके नाम में कहा गया है, उस कीमत की एक सीमा है जिस पर वे निष्पादित करेंगे। स्टॉप-लिमिट ऑर्डर में निर्दिष्ट दो मूल्य हैं: स्टॉप प्राइस, जो ऑर्डर को सेल ऑर्डर में बदल देगा, और लिमिट प्राइस जहा आर्डर निष्पादित किया जायेगा । ऑर्डर बेचने के लिए मार्केट ऑर्डर के बजाय वो एक लिमिट ऑर्डर (Limit Order) बन जाता है जो केवल लिमिट प्राइस पर ही निष्पादित होगा।
स्टॉप-लॉस ऑर्डर के लाभ ( Advantages of the Stop-Loss Order)
स्टॉप-लॉस (Stop Loss) ऑर्डर का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि इसे लागू करने के लिए कुछ भी खर्च नहीं होता है। शेयर मूल्य स्टॉप-लॉस मूल्य तक पहुंचने के बाद ही आपसे नियमित कमीशन लिया जाता है और स्टॉक को बेचा जाता अनुगामी रोक है ।
स्टॉप-लॉस ऑर्डर (Stop Loss Order) का एक अतिरिक्त लाभ यह है कि यह निर्णय लेने को किसी भी भावनात्मक प्रभाव से मुक्त होने की अनुमति देता है। लोग स्टॉक के साथ “प्यार में पड़ जाते हैं”। उदाहरण के लिए, अनुगामी रोक वे इस गलत धारणा को बनाए रख सकते हैं कि यदि वे स्टॉक को एक और मौका देते हैं, तो यह अपनी दिशा में जाएगा। वास्तव में, यह देरी केवल नुकसान का कारण बन सकती है।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस प्रकार के निवेशक हैं, आपको आसानी से यह पहचानने में सक्षम होना चाहिए कि आपके पास स्टॉक क्यों है। एक वैल्यू इन्वेस्टर का क्राइटेरिया ग्रोथ इन्वेस्टर के क्राइटेरिया से अलग होगा, जो एक एक्टिव ट्रेडर के क्राइटेरिया से अलग होगा। रणनीति कोई भी हो, रणनीति तभी काम करेगी जब आप रणनीति पर टिके रहेंगे। इसलिए, यदि आप एक कट्टर बाय-एंड-होल्ड निवेशक हैं, तो आपके लिए स्टॉप-लॉस ऑर्डर (Stop Loss Order) बेकार हैं।
स्टॉप-लॉस ऑर्डर भी मुनाफे में लॉक करने का एक तरीका है ( Stop-Loss Orders Are Also a Way to Lock In Profits)
स्टॉप-लॉस ऑर्डर (Stop Loss Order) को पारंपरिक रूप से अनुगामी रोक नुकसान को रोकने के तरीके के रूप में माना जाता है। हालांकि, इस टूल का एक अन्य उपयोग मुनाफे में लॉक करना है। इस मामले में, कभी-कभी स्टॉप-लॉस ऑर्डर को “ट्रेलिंग स्टॉप” कहा जाता है। यहां, स्टॉप-लॉस ऑर्डर मौजूदा बाजार मूल्य से नीचे प्रतिशत स्तर पर सेट किया गया है (उस कीमत पर नहीं जिस पर आपने इसे खरीदा है)। अनुगामी रोक स्टॉप-लॉस की कीमत स्टॉक की कीमत में उतार-चढ़ाव के रूप में समायोजित होती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यदि कोई स्टॉक ऊपर जाता है, तो आपको एक अवास्तविक लाभ होता है।
एक अनुगामी स्टॉप का उपयोग करने से आप मुनाफे को चलने दे सकते हैं, जबकि साथ ही, कम से कम कुछ वास्तविक पूंजीगत लाभ की गारंटी दे सकते हैं।
ऊपर से हमारे टाटा मोटर्स के उदाहरण के साथ जारी रखते हुए, मान लीजिए कि आपने मौजूदा कीमत से १०% कम के लिए एक पिछला स्टॉप ऑर्डर सेट किया है, और स्टॉक एक महीने के भीतर ₹ ३३० तक बढ़ जाता है। आपका पिछला-स्टॉप ऑर्डर तब ₹ २७० प्रति शेयर (₹ ३३० – (१०% x ₹ ३०० ) = ₹ २७० ) पर लॉक हो जाएगा। क्योंकि यह सबसे खराब कीमत है जो आपको प्राप्त होगी, भले ही स्टॉक में अप्रत्याशित गिरावट आई हो, आप लाल रंग में नहीं होंगे। बेशक, ध्यान रखें कि स्टॉप-लॉस ऑर्डर अभी भी एक मार्केट ऑर्डर (Market Order) है – यह केवल निष्क्रिय रहता है और ट्रिगर मूल्य तक पहुंचने पर ही सक्रिय होता है।
स्टॉप-लॉस ऑर्डर के नुकसान ( Disadvantages of Stop-Loss Orders)
स्टॉप-लॉस ऑर्डर (Stop Loss Order) का एक फायदा यह है कि आपको बार बार यह देखने की ज़रूरत नहीं है कि कोई स्टॉक रोजाना कैसा प्रदर्शन कर रहा है। यह सुविधा विशेष रूप से तब उपयोगी होती है जब आप छुट्टी अनुगामी रोक पर होते हैं या ऐसी स्थिति में होते हैं जब आपको एक विस्तारित अवधि के लिए अपने स्टॉक को देखना मुश्किल हो जाता है।
मुख्य नुकसान यह है कि स्टॉक की कीमत में अल्पकालिक उतार-चढ़ाव के कारन स्टॉप प्राइस को सक्रिय कर देता है। स्टॉप-लॉस स्टॉक को दिन-प्रतिदिन उतार-चढ़ाव करने की अनुमति देता है, जबकि जितना संभव हो उतना नकारात्मक जोखिम को भी रोकता है। ऐसे स्टॉक पर ५% स्टॉप-लॉस ऑर्डर (Stop Loss Order) सेट करना जिसका एक सप्ताह में १०% या उससे अधिक उतार-चढ़ाव का हो रहा हो, ये सबसे अच्छी रणनीति नहीं हो सकती है। इसी वजह से आप अपने स्टॉप-लॉस ऑर्डर के निष्पादन से उत्पन्न कमीशन पर पैसे खो सकते है ।
अनुगामी रोक
(3) अनुशासन का महत्त्व
(4) अनुशासन के प्रकार
(5) अनुशासन का तात्पर्य
(6) विद्यार्थी एवं अनुशासन
(1) प्रस्तावना :- समस्त सृष्टि नियमबद्ध तरीके से संचालित हो रही है। सूर्य एवं चन्द्र नियमित रूप से उदय होकर दुनिया को प्रकाश लुटाते हैं। जिस प्रकार प्रकृति के नियम हैं उसी भाँति समाज, देश तथा धर्म की भी मर्यादाएँ होती हैं। कुछ नियम होते हैं, कुछ आदर्श निर्धारित होते हैं। इन आदर्शों के अनुरूप जीवन ढालना अनुशासन की परिधि में आता है।
(2) अनुशासित जीवन :- वास्तव में अनुशासित जीवन बहुत ही मनोहर तथा आकर्षक होती है। इससे जीवन दिन-प्रतिदिन प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होता है। अनुशासन के पालन से जीवन में मान-मर्यादा मिलती है। जो जीवन अनुशासित नहीं होता, वह धिक्कार तथा तिरस्कार का पात्र बनता है।
(3) अनुशासन का महत्त्व :- अनुशासन का जीवन से गहरा लगाव है। जो समाज अथवा राष्ट्र अनुशासन में बँधा होता है, उसकी उन्नति अवश्यम्भावी है। दुनिया की कोई भी ताकत उसे बढ़ने से रोक नहीं पाती। यदि अनुशासन का उल्लंघन किया जाय तो राष्ट्र तथा समाज अनुगामी रोक पतन की दिशा में बढ़ता चला जाता है।
बिखरे मोती : बहुवित से भी श्रेष्ठ है, चित्तपावन व्यवहार
व्याख्या:- अधिकांशत:इस संसार में ऐसे लोग बहुत मिल जाएंगे जो बहुत कुछ जानते हैं, और उसे अपनी वाणी से अभिव्यक्त भी करते हैं तथा अनुगामी रोक स्वयं को श्रेष्ठ होने का मिथ्या दम्भ पाले रखते हैं किन्तु वास्तव में वही व्यक्ति श्रेष्ठ है,जो अपने चित्त का स्वामी है, जिसका चित्त स्थिर है, दृढ़ संकल्प – शक्ति का धनी है, जो ठान लेता है, उसे करके दिखाता है। भाव यह है कि, जिसके मन – वचन और कर्म में एकरूपता है, आदर्श को आचरण में अर्थात् व्यवहार में जीता है। उसे आत्मसात करता है। ऐसा व्यक्ति चाहे बहुवित (बहुत अधिक जानने वाला) न हो बेशक अल्पवित (कम जानने वाला) हो लोग उसका विश्वास करते हैं और जो बहुवित हैं किन्तु व्यवहार में शून्य है उसे लोग ‘बकवादी’ कहते हैं -‘थोता चना, बाजे घना’ कहते हैं। इससे सिद्ध होता है कि प्रभाव शब्द का नहीं आचरण का पड़ता है। ऐसे व्यक्ति की बात को लोग सांस रोक कर बड़े ध्यान से सुनते हैं और उसके अनुयायी बनकर पीछे-पीछे चलते हैं। उसके शब्दों पर विश्वास करते है। याद रखो! यह संसार उसी का है जिसका विश्वास होता है। इसलिए कहा गया है – विश्वास पर दुनिया कायम है। सारांश यह है कि, आचारहीन ज्ञानी से आचारवान कम ज्ञानी व्यक्ति अधिक श्रेष्ठ है।
अनुगामी रोक
मौर्य राजवंश के प्रवर्तक चन्द्रगुप्त मौर्य का पुत्र और उत्तराधिकारी। उसकी गतिविधियों के बारे में बहुत कम जानकारी है। इस तथ्य से कि उसने 'अमित्रघात' की पदवी ग्रहण की थी, अनुमान होता है कि उसने अपने अनेक शत्रुओं का घात किया था और उसके शासन-काल में संभवतः कलिंग को छोड़कर दक्षिण भारत मौर्य साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया गया था। उसने अपने साम्राज्य के पश्चिम में स्थित यवन (यूनानी) राज्यों से मैत्री-सम्बन्ध कायम रखे। उसके दरबार में डायमेत्रस नामक यूनानी राजदूत रहता था। उसका उत्तराधिकारी उसका प्रसिद्ध पुत्र अशोक था।
मगध का राजा, जिसके शासनकाल में मगध राज्य का उत्कर्ष आरम्भ हुआ। उसने अंग (पूर्वी बिहार) को अपने राज्य में मिला लिया, कोशल तथा वैशाली से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये और आधुनिक पटना जिले में स्थित राजगृह को अपनी नयी राजधानी बनाया। उसके शासनकाल में मगध एक समृद्ध राज्य बन गया। जैनों के अंतिम तीर्थंकर वर्धमान महावीर तथा बौद्धधर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध उसके समकालीन थे। सिंहली दंतकथाओं के अनुसार बिम्बसार गौतम बुद्ध के निर्वाण के साठ वर्ष पूर्व सिहासनारूढ़ हुआ था। गौतम बुद्ध का निर्वाण काल ४८६ ई. पू. माना जाता है। इस आधार पर बिम्बसार लगभग ५४६ ई. पू. में सिंहासनारूढ़ हुआ। जनश्रुतियों के अनुसार वृद्धावस्था में उसके पुत्र एवं उत्तराधिकारी अजातशत्रु ने उसकी हत्या कर दी। पुराणों के अनुसार बिम्बसार शैशुनाग वंश (दे.) का पांचवा राजा था, परंतु सिंहली ग्रंथों तथा अश्वघोष के साक्ष्य के अनुसार वह हर्यक वंश (दे.) का था। वह मगध का प्रथम महान सम्राट था। (राय चौधरी, पृ. ११५)
महाभारत शल्य पर्व अध्याय 26 श्लोक 23-42
राजन् ! उसने उस महासमर में पाण्डुपुत्र के धनुष को काटकर कटे हुए धनुष वाले भीमसेन को बीस बाणों से घायल कर दिया । तब महाबली भीमसेन दूसरा धनुष लेकर आपके पुत्र पर बाणों की वर्षा करने लगे और बोले-‘खड़ा रह, खड़ा रह’। उस समय उन दोनों में विचित्र, भयानक और महान् युद्ध होने लगा। पूर्वकाल में रणक्षेत्र में जम्भ और इन्द्र का जैसा युद्ध हुआ था, वैसा ही उन दोनों का भी हुआ । उन दोनों के छोड़े हुए यमदण्ड के समान तीखे बाणों से सारी पृथ्वी, आकाश, दिशाएं और विदिशाएं आच्छादित हो गयी । राजन ! तदनन्तर क्रोध में भरे हुए श्रुतर्वा ने धनुष लेकर अपने बाणों से रणभूमि में भीमसेन की दोनों भुजाओं और छाती में प्रहार किया । महाराज ! आपके धनुर्धर पुत्र द्वारा अत्यन्त घायल कर दिये जाने पर भीमसेन का क्रोध भड़क उठा और वे पूर्णिमा के दिन उमड़ते हुए महासागर के समान बहुत ही क्षुब्ध हो उठे । आर्य ! फिर रोष से आविष्ट हुए भीमसेन ने अपने बाणों द्वारा आपके पुत्र के सारथि और चारों घोड़ों को यमलोक पहुंचा दिया । अमेय आत्मबल से सम्पन्न भीमसेन श्रुतर्वा को रथहीन हुआ देख अपने हाथों की फुर्ती दिखाते हुए उसके ऊपर पक्षियों के पंख से युक्त होकर उड़ने वाले बाणों की वर्षा करने लगे।राजन् ! रथहीन हुए श्रुतर्वा ने अपने हाथों में ढाल और तलवार ले ली। वह सौ चन्द्राकार चिन्हों से युक्त ढाल तथा अपनी प्रभा से चमकती हुई तलवार ले ही रहा था कि पाण्डुपुत्र भीमसेन ने एक क्षुरप्र द्वारा उसके मस्तक को धड़ से काट गिराया । महामनस्वी भीमसेन के क्षुरप्र से मस्तक कट जाने पर उसका धड़ वसुधा को प्रतिध्वनित करता हुआ रथ से नीचे गिर पड़ा । उस वीर के गिरते ही आपके सैनिक भय से व्याकुल होने पर भी संग्राम में जूझने की इच्छा से भीमसेन की ओर दौड़े। मरने से बचे हुए सैन्य-समूह से निकलकर अनुगामी रोक शीघ्रतापूर्वक अपने ऊपर आक्रमण करते हुए उन कवचधारी योद्धाओं को प्रतापी भीमसेन ने आगे बढ़ने से रोक दिया । वे योद्धा भीमसेन के पास पहुंचकर उन्हें चारों ओर से घेर कर खड़े हो गये । तब जैसे इन्द्र असुरों को नष्ट करते हैं, उसी प्रकार घिरे हुए भीमसेन ने पैने बाणों द्वारा आपके उन समस्त सैनिकों को पीडि़त करना आरम्भ किया । तदनन्तर भीमसेन ने आवरणों सहित पांच सौ विशाल रथों का संहार करके युद्ध में सात सौ हाथियों की सेना को पुनः मार गिराया। फिर उत्तम बाणों द्वारा एक लाख पैदलों और सवारों सहित आठ सौ घोड़ों का वध करके पाण्डव भीमसेन विजयश्री से सुशोभित होने लगे । प्रभो ! इस प्रकार कुन्तीपुत्र भीमसेन ने युद्ध में आपके पुत्रों का विनाश करके अपने आपको कृतार्थ और जन्म को सफल हुआ समझा । नरेश्वर ! इस तरह युद्ध और आपके पुत्रों का वध करते हुए भीमसेन कोआपके सैनिक देखने का भी साहस नहीं कर पाते थे । समस्त कौरवों को भगाकर और उनके अनुगामी सैनिकों का संहार करके भीमसेन बड़े-बड़े हाथियों को डराते हुए अपनी दोनों भुजाओं द्वारा ताल ठोंकने का शब्द किया । प्रजानाथ ! महाराज ! आपकी सेना के अधिकांश योद्धा मारे गये और बहुत थोड़े सैनिक शेष रह गये; अतः वह सेना अत्यन्त दीन हो गयी थी ।